इतिहास दोहराया जाता है …

अमरदीप जौली

जिनको लगता है कि बंगलादेश में जो नरसंहार हो रहा है वह पहली बार हो रहा है … तो उन्हें पँजाब का यह इतिहास जरूर पढ़ना चाहिए ! आज से 262 साल पहले, मलेरकोटला के पास कूप रोहिडा गाँव में, 5 और 6 फरवरी, 1762 को मात्र दो दिनों में 35000 हज़ार सिंघों सिंघनियों ने अब्दाली की सेना से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की। अब्दाली यह इरादा करके आया था कि वह खालसा फौज का समूल एवं संपूर्ण नाश कर देगा। इस नरसंहार के पीछे खालसा फौज द्वारा अफ़गान आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली की सेना से गुलाम बनाई गयी महिलाएं और अन्य लूट का सामान छीनने का परिणाम था। साल 1757 में अब्दाली जब अपने चौथे आक्रमण के बाद वापिस लौट रहा था तो खालसा फौज ने अब्दाली की सेना को लूट कर महिलाओं को छुड़वा लिया था और लूट कर ले जाई जा रही संपदा को भी वापिस ले लिया था। अमृतसर स्थित पवित्र हरिमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) भी अब्दाली के आक्रमण की जद में आ गया था। अब्दाली की सेना ने गायों को काट कर पवित्र सरोवर में डाल दिया। इस हरकत से समूचे खालसा पंथ में अब्दाली की ईंट से ईंट खड़काने का ज़ज्बा पैदा हो गया। उस दौर में खालसा जंगलों में घोड़ों की काठी पर ही निवास करते थे और जब भी मौका मिलता निआसरों नियोटो की ओट बन कर खड़े हो जाते थे।

अब्दाली अपने छठे आक्रमण 1762 में पूरा मन बना कर आया कि एक बहुत बड़े नरसंहार को अंजाम देकर खालसा पंथ का संपूर्ण नाश कर देगा। उसे खबर मिली कि रोहिडा पिंड में लगभग 35000 की संख्या खालसा परिवार की है। उसने मात्र दो दिनों में बड़ा हमला करके इतना दबाव बनाया और जुल्म किया कि 35000 सिंह सिंघनिया बच्चे बुजुर्ग वीरगति को प्राप्त हुए।

इतिहासकारों ने इस घटना को वड्डा घल्लूघारा कह कर दर्ज किया। अब्दाली को लगा कि इतने बड़े नर संहार के बाद सिख कभी भी सर उठाने की जुर्रत नहीं करेंगे। लेकिन अगले ही दिन सिंहों ने सरहिंद के गवर्नर जैन उद दीन खां को टपका के गड्डी चढ़ा दिया। इस बात से अब्दाली को बहुत धक्का लगा। 262 साल से भी पहले, जब अहमद शाह अब्दाली की सेनाएँ सिंघों का नर संहार कर रही थी तब नजदीक के कुथला गाँव में हस्त लिखित श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश हो रखा था।इतिहास में यह बात दर्ज है कि दसवें गुरु, सरबंस दानी धन धन श्री गोबिंद सिंह जी महाराज जी के पास दमदमा साहिब में लिखी गई गुरु ग्रंथ साहिब की पाँच प्रतियाँ थीं। इन प्रतियों में नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर की रचनाएँ शामिल थीं। गुरु गोबिंद सिंह ने इन पाँच प्रतियों को सुरक्षा के लिए सिखों के अलग-अलग समूहों को सौंप दिया। इनमें से एक प्रति बाबा सुधा सिंह जी के पास थी, जो 19 सिखों के समूह का नेतृत्व कर रहे थे। बड़े घल्लूघारा में जब अब्दाली की सेना ने कूप-रोहिरडा गाँव पर हमला किया तो वो 19 सिंघ जिनके पास श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की मूल प्रति थी सभी के सभी वीरगति को प्राप्त हुए। बाबा सुधा सिंघ जी घल्लूघारे से इस पवित्र प्रति को निकाल कर कुथला गाँव में लाने में कामयाब रहे। यह पवित्र बीड़ आज भी कुथला गाँव में प्रकाशमान है।

इस देश की जनता को अपना इतिहास खोज खोज कर पढ़ना होगा तभी भविष्य की सही दिशा दिखाई पड़ेगी।वरना याद रखिये …. इतिहास दोहराया जाता है…

श्री राम गोपाल जी

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