अन्याय का विरोध

अमरदीप जौली


यह उस समय की घटना है, जब देश पर अंग्रेजों का शासन था। वे लोग भारतीयों पर तरह-तरह के अत्याचार करते और अधिसंख्य भारतीय उन्हें चुपचाप सहन करते थे। विरोध करने की हिम्मत किसी की नहीं होती थी।
एक दिन प्रतापगढ़ रेलवे स्टेशन पर एक अंग्रेज़ सार्जेंट केले खा रहा था। खाते-खाते उसने केले का छिलका पास ही खड़ी भारतीय युवती पर फैंक दिया। उसकी ऐसी हरकत से युवती सहम गई और कुछ बोलते हुए वहां से दूर हट गई। और अब वह दूर खड़ी युवती के ठीक सामने पहुंच गया और ज़ोर से सीटी बजाई। स्टेशन पर अनेक लोग उपस्थित थे, लेकिन किसी ने सार्जेंट की इस उद्दंडता का विरोध नहीं किया।
तभी अचानक एक नव युवक का वहां आना हुआ और उसने सार्जेंट को डांटते हुए कहा-तुम यह बदतमीजी क्यों कर रहे हो ?
सार्जेंट अकड़ में आकर नव-युवक को गुस्सा दिखाने लगा तो नवयुवक ने एक ज़ोरदार थप्पड़ उसे रसीद कर दिया। थप्पड़ खाकर पहले तो सार्जेंट लड़खड़ाया, फिर संभलकर उस नवयुवक पर झपटा। नवयुवक पहले ही से तैयार था, फिर उस नवयुवक ने सार्जेंट की ऐसी धुलाई की कि उसे उस युवती से क्षमा मांगनी पड़ी।
वास्तव में अन्याय के विरुद्ध निडर होकर आवाज़ उठाने वाला वह नवयुवक था– चंद्रशेखर आज़ाद। कहने का भाव यह है कि अन्याय को सहन करना उस का साथ देने के समान ही है। इस लिए यह आवश्यक है कि अन्याय का पूरे साहस के साथ पुरजोर विरोध किया जाए।

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