कई लोग सरकारी सेवा से अवकाश को सक्रिय जीवन की समाप्ति मान लेते हैं; पर कुछ उसे नये क्षेत्र में जाने का एक अवसर मानते हैं। ये लोग प्रायः कुछ ऐसा कर दिखाते हैं, जो समाज के लिए लाभकारी और दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाता है। ब्रिगेडियर पोगुला गणेशम् ऐसे ही एक व्यक्ति हैं। उनका जन्म दस नवम्बर, 1949 को मद्रास रियासत के भूमपल्ली गांव में हुआ था। अब यह तेलंगाना में है। उस्मानिया वि.वि. से इंजीनियर बनकर उन्होंने दिल्ली वि.वि. से एम.बी.ए. की डिग्री प्राप्त की। उन दिनों बंगलादेश मुक्ति का संग्राम चल रहा था। इससे प्रेरित होकर वे फौज में भरती हो गये और फिर 35 साल वहीं कार्यरत रहे। बख्तरबंद लड़ाकू वाहनों के वे विशेषज्ञ थे। वे कई बार कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों में शामिल हुए। करगिल युद्ध के बाद उन्होंने सेना के लिए ‘विंडी’ नामक वाहन विकसित किया, जिसे अंतरराष्ट्रीय पेटेंट प्राप्त हुआ। यह भारतीय सेना को प्राप्त पहला पेटेंट था। इसे 2004 की गणतंत्र दिवस परेड में भी प्रदर्शित किया गया। 2005 में गणतंत्र दिवस पर उन्हें ‘विशिष्ट सेवा मेडल’ से सम्मानित किया गया।31 अक्तूबर, 2005 को उन्होंने अवकाश लिया; पर उनका मन युवा था। अतः कुछ मित्रों के साथ 20 नवम्बर, 2005 को ‘पल्ले सृजना’ नामक संस्था बनाई और गांवों, बस्तियों और निर्धन वर्ग के बीच रचनात्मक कौशल तलाशने लगे। तीन साल उन्होंने डायनेमिक्स लिमिटेड हैदराबाद में निदेशक पद पर काम किया; पर 60 साल का होते ही सब छोड़कर पूरी तरह समाजसेवा में जुट गये। यद्यपि यह आसान नहीं था। कई लोग समझते थे कि वे राजनीति में आना चाहते हैं। कई लोगों ने निरुत्साहित भी किया; पर उनकी पत्नी अरुणा ने उनका साथ दिया। इस प्रकार एक नयी यात्रा शुरू हो गयी।उन्होंने संस्था के नाम से ही द्वैमासिक तेलुगु पत्रिका भी शुरू की, जिसका काम उनकी पत्नी देखती हैं। इसमें उन प्रयोगों की चर्चा होती है, जिसे गांव में कम शिक्षित लोग, बुजुर्ग या महिलाएं अपने कौशल या परंपरा से कर रहे हैं। उन्होंने जिस पहले प्रयोग को प्रचारित किया, वह साड़ी बुनाई की एक छोटी मशीन थी, जिसे चिंताकिंडी मल्लेशम् ने अपनी मां को कष्ट से बचाने के लिए बनाया था। 2007 में राष्ट्रपति महोदय ने मल्लेशम् को इसके लिए सम्मानित किया। इससे संस्था का नाम और काम बढ़ गया। अब तक संस्था 300 नये आविष्कारों को प्रस्तुत कर चुकी है। 2,000 ऐसे प्रयोगों को अभिलेखित भी किया है। वे आंध्र और तेलंगाना के 1,200 गांवों में 4,000 कि.मी. पदयात्रा कर लगभग एक लाख छात्रों को संबोधित कर चुके हैं। 3,000 स्वयंसेवी उनके साथ काम कर रहे हैं। हर तीसरे महीने वे ‘चिन्ना शोधयात्रा’ करते हैं। ऐसी यात्राओं में उन्होंने जो नवविज्ञानी खोजे हैं, उनमें से 13 ‘राष्ट्रपति पुरस्कार’ तथा दो ‘पद्म श्री’ प्राप्त कर चुके हैं। उनके नाम 26 पेटेंट भी हैं। कई उत्पाद बाजार में आ गये हैं। उन्होंने सिंकदराबाद के अपने घर में इन आविष्कारों के नमूने भी रखे हैं। वे इन नवविज्ञानियों और उनके उत्पादों को प्रदर्शिनी और प्रतियोगिताओं में ले जाते हैं। कोरोना काल में भी वे वेबनार के माध्यम से काम करते रहे। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की राज्य सैनिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य के नाते वे पूर्व सैनिकों के कल्याण में भी सक्रिय हैं। उनके नवाचार अब तक 10 करोड़ रु. से अधिक का कारोबार कर चुके हैं, जिससे हजारों लोगों को रोजगार मिला है और लाखों परिवारों के जीवन में नयी आशा की किरण उत्पन्न हुई है। सैन्य जीवन को वे पहला और इसे दूसरा जीवन कहते हैं। उनके दोनों जीवन सफल ही नहीं सार्थक भी हैं।
साभार: पवन अग्रवाल, गाज़ियाबाद