यह प्रश्न प्रायःसभी के मन में उठता है चलिए इस विषय पर थोड़ी चर्चा करते हैं-:-पहले जानते हैं कि वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना क्यों की?
उत्तर-: वेदव्यास जी ने जब देखा कि आने वाले समय में लोगों की आयु बहुत कम हो जाएगी बुद्धि बहुत छोटी हो जाएगी उनमें सोच विचार का अधिक सामर्थ्य नहीं बचेगा लोग वेदों को पढ़ने और समझने में असमर्थ हो जाएंगे। उपनिषद स्मृतियां वेदांत को समझाना मुश्किल हो जाएगा तो उन लोगों को यह सब चीज आसानी से समझ में आ जाए इसलिए वेदव्यास जी ने महाभारत को रचा। अगर हम ही महाभारत नहीं पढ़ेंगे तो इतना लिखने का उनका क्या अर्थ रहा। अब कुछ लोग तर्क करते हैं कि महाभारत में युद्ध का वर्णन है इसलिए महाभारत नहीं पढना चाहिए। यह बात भी बिल्कुल ही सारहीन है। महाभारत एक लाख श्लोक का काव्य है अर्थात महाभारत में एक लाख से भी अधिक श्लोक है। इन श्लोक में वेदव्यास जी ने पूरे वेदों का सार , उपनिषदों का सार 18 पुराणो का सार, समय गणना का विधान, सभी स्मृतियों का सार, ग्रह नक्षत्र आदि ज्योतिषीय तत्वों का ज्ञान, शिक्षा, चिकित्सा, दान, आयुर्वेद, तीर्थ पुण्य देश, नदियों, पर्वतों, वनों और समुद्रों का भी वर्णन किया है। राजनीतिक दर्शन कर्म योग दर्शन भक्ति दर्शन अध्यात्म दर्शन आर्य जाति का इतिहास आदि अनेकों चीज़ इसमें वर्णित है। इतनी सब चीजों का वर्णन वेदव्यास जी ने महाभारत में किया मात्र कौरव और पांडवों के युद्ध का ही वर्णन महाभारत में नहीं है इतनी सब चीज महाभारत में वर्णित है तभी यह एक लाख श्लोक का काव्य बना अगर यह सिर्फ कौरव और पांडवों का इतिहास ही होता तो कुछ हजार श्लोक में ही यह काव्य लिखकर खत्म हो चुका होता। पर इसमें हमारी भी गलती नहीं है टेलीविजन आदि के माध्यम से हमें यही दिखाया गया और यही हमारे दिमाग में डाला गया की महाभारत तो सिर्फ कौरव और पांडवों का युद्ध ही है और कुछ नहीं। आपको पता है जो विष्णु सहस्त्रनाम हम रोज पढ़ते हैं वह महाभारत से ही है जो शिव सहस्त्रनाम रोज पढ़ते हैं वह महाभारत से है श्री गीता जी महाभारत का एक छोटा सा अंश है। वेदव्यास जी ने इतनी बड़ी रचना सिर्फ इसलिए की आने वाली पीढ़ी को बड़ी आसानी से सारा ज्ञान एक ही किताब में सब कुछ मिल जाए। जितनी मेहनत हमारे पूर्व ऋषियों ने की अलग – अलग ग्रन्थो को पढ़कर उतनी मेहनत हमें ना करना पड़े इसलिए पर आज दुर्भाग्य की बात है कि हम ही लोग महाभारत जैसे श्रेष्ठ ग्रंथ को झगड़ा कराने वाला ग्रंथ बोलकर अध्ययन नहीं करते हैं और उसका मजाक उड़ाते हैं। अरे भैया जिसके रचयिता स्वयं विघ्नहर्ता गणेश हो और बोलने वाले स्वयं श्री नारायण अवतार वेदव्यास जी हो उसे ग्रंथ को पढ़ने से हमारे जीवन में अमंगल और विघ्न कैसे उत्पन्न हो सकता है। महाभारत की एकमात्र ग्रंथ है जिसे भगवान के ही दो स्वरूपों ने मिलकर रचा है पहले मंगल मूर्ति विघ्नहर्ता गणेश और दूसरे स्वयं नारायण अवतार व्यास जी तो ऐसे ही पुण्यमय ग्रंथ का अध्ययन तो करना ही चाहिए। आज हमने इस पोस्ट में सामान्य रूप से महाभारत की विषयों की चर्चा की। अगली पोस्ट में मैं महाभारत पढने से मिलने वाले पुण्य का वर्णन करूगा जो शास्त्रों में वर्णित हैं इस से आपकों और चीजे स्पष्ट हो जाएंगी।
साभार: श्री रामगोपाल जी