भोजन मुफ्त में नहीं मिलता

अमरदीप जौली


एक बार एक राजा ने इतिहास की सारी समझदारी भरी बातों को लिखवाने का निर्णय लिया ताकि आने वाली पीढ़ियों तक उसे पहुंचाया जा सके। उन्होने अपने सलाहकारों को बुला कर ये सारी बातें बतायी। सलाहकारों ने काफी मेहनत के बाद इतिहास की सारी समझदारी भरी बातों पर कईं किताबें लिखी और राजा के समक्ष पेश किया।
इतनी सारी किताबों को देखकर राजा को लगा की इतनी सारी किताबें लोग पढ़ नहीं पायेंगे इसीलिए उन्होने अपने सलाहकारों को इसे और छोटा कर लाने को कहा । सलाहकारों ने इसपर फिर से काम किया और इस बार उन सारी किताबों को संक्षिप्त करके एक किताब में तब्दील कर फिर से राजा के समक्ष पेश किया गया। राजा को वो एक किताब भी काफी मुश्किल लगी। सलाहकारों ने फिर से उस पर काम किया और इस बार उस एक किताब को एक चैप्टर (अध्याय) मे तब्दील कर फिर से राजा के समक्ष पेश किया पर ये भी राजा को काफी लंबा लगा। राजा को कुछ ऐसा चाहिए था जिसे आने वाली पीढ़ियाँ समझ सकें। फिर से सलाहकारों ने उस पर काम करके उसे सिर्फ एक पन्ने मे संक्षिप्त करके राजा के समक्ष पेश किया पर राजा को ये भी काफी लंबा लगा।
आखिरकार वे राजा के पास सिर्फ एक वाक्य ले कर आए और राजा उस वाक्य से पूरी तरह से संतुष्ट हो गया । राजा ने निर्णय लिया की आने वाली पीढ़ियों तक अगर समझदारी भरी सिर्फ एक वाक्य पहुंचाना हो तो वह यह वाक्य होगा, “भोजन मुफ्त मे नहीं मिलता”!

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