15 मार्च 1977 को केरल के कोझीकोड में एक ऐसे शख्स का जन्म हुआ जिसने अपना जीवन देश को समर्पित कर दिया. वह अपने मां-बाप की इकलौती संतान थे और इसके बाद भी कभी देश सेवा से पीछे नहीं हटे. आज भी उनकी बहादुरी की मिसाल लोगों को दी जाती है.वह बचपन से ही आर्मी ऑफिसर बनना चाहते थे. आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि 12 जुलाई 1999 को जब कारगिल की जंग चल रही थी, मेजर उन्नीकृष्णन को सेना में कमीशन हासिल हुआ था.एक लेफ्टिनेंट बन मेजर उन्नीकृष्णन कारगिल पहुंचे और ऑपरेशन विजय का हिस्सा बने. मेजर उन्नीकृष्णन 7 बिहार रेजीमेंट के साथ थे और उनके साथी आज तक उन्हें नहीं भूल सके हैं. 26 नवंबर 2008 को जब मुंबई पर आतंकी हमला हुआ तो मेजर संदीप की उम्र बस 31 साल थी.कुछ वर्षों तक सेना का हिस्सा रहने के बाद उन्होंने साल 2007 में नेशनल सिक्यारिटी गार्ड (एनएसजी) को बतौर कमांडो ज्वॉइन किया. मेजर उन्नीकृष्णन को जब कारगिल की जंग में भेजा गया तो उन्हें फॉरवर्ड पोस्ट्स पर तैनाती दी गई. यहां पर दुश्मन की तरफ से भारी आर्टिलरी फायरिंग की जा रही थी. पाकिस्तान के जवान लगातार भारतीय जवानों पर छोटे हथियारों से भी हमले कर रहे थे । इस जंग के बाद 31 दिसंबर 1999 को मेजर उन्नीकृष्णन ने छह जवानों की एक टीम की मदद से 200 मीटर दूर एलओसी पर उस पोस्ट पर फिर से कब्जा किया था जिस पर पाक के जवान जबरन आकर बैठ गए मेजर उन्नीकृष्णन की शहादत उनके माता-पिता के लिए दुख से ज्यादा गर्व की अनुभूति कराने वाली है. मेजर उन्नीकृष्णन ने कारगिल की जंग में भी हिस्सा लिया था.मुंबई हमले के दौरान लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी होटल ताज महल पैलेस में छिप गए और कुछ लोगों को बंधक बना लिया. बहादुर कमांडोज, मेजर की अगुवाई में 28 नवंबर को होटल ताज में दाखिल में हुई थी. होटल की तीसरी मंजिल पर कुछ महिलाओं को आतंकियों ने बंधक बनाकर रखा था और कमरा अंदर से बंद था.दरवाजा तोड़ने के बाद जब मेजर संदीप अपने साथी कमांडो सुनील यादव के साथ अंदर दाखिल हो रहे थे, तभी यादव को गोली लग गई. मेजर संदीप ने आतंकियों को गोलीबारी में बिजी रखा और यादव को वहां से बाहर निकलवाया. इसके बाद एनकाउंटर के दौरान जब वह दूसरी मंजिल पर पहुंचे तभी उनकी पीठ पर आतंकियों की गोली लग गई. गोली लगने के बाद भी मेजर संदीप ने अपने साथियों से कहा, ‘ऊपर मत आना मैं उन्हें संभाल लूंगा.28 नवम्बर 2008 को आपका परलोक गमन हुआ। मेजर उन्नीकृष्णन मुंबई में हुए 26/11 आतंकी हमलों में शहीद हो गए थे. इस हमले के दौरान उनके आखिरी शब्द आज भी लोगों को प्रेरणा देने वाले हैं.आज भी देश उनके योगदान को कभी नहीं भुला पाएगा. उनके अंतिम संस्कार के समय लाखों लोगों का हुजूम इकट्ठा था और उनके साथी आज भी उस मंजर को याद करते हैं.ऑपरेशन टॉरनेडो में अदम्य साहस का प्रदर्शन करने की वजह से मेजर उन्नीकृष्णन को अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था l
मेजर संदीप उन्नीकृष्णन

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