राष्ट्रनायक नरेश दाहिर सेन

अमरदीप जौली


इतिहास के पन्नों में राजा दाहिर सेन को वो स्थान नहीं मिला जिसके वो हक़दार थे. सातवीं और आठवीं सदी साक्षी रही इस परम् प्रतापी राजा दाहिर ने 679 ईस्वी में जब सिंध की राजसत्ता संभाली तो उनके सामने अनेक चुनौतियाँ थी. किन्तु सत्ता संभालने के पश्चात् उन्होंने अपनी सूझबूझ और दूरदर्शिता से इन चुनौतियों से पार जाने में सफल रहे.
अपनी मातृभूमि की आन, बान और शान की ख़ातिर उन्होंने इस्लामी आक्रांताओं से दुश्मनी मोल ली और युद्ध-भूमि में उनको घुटने टेकने पर मजबूर किया.
सिंधु नदी के पूर्व में बसा सिंध आज बेशक पाकिस्तान के हिस्से में है, लेकिन वैदिक-काल में ये भूमि हमारे ऋषि-मुनियों की तपो-भूमि हुआ करती थी. मान्यता है कि वेदों की अलौकिक और कालातीत ऋचाओं की रचना सिंधु नदी के तट पर बसे सिंध के सुरम्य, मनोरम और पतित पावन वातावरण में हुई.
मान्यता ये भी है कि त्रेतायुग में अवध के महाराज दशरथ की पत्नी कैकेयी सिंध देश की ही पुत्री थीं. इसी सिंध क्षेत्र पर सातवीं शताब्दी के आखिरी दो दशक और आठवीं शताब्दी के कुछ वर्षों तक एक परम् प्रतापी, प्रजापालक और नीतिज्ञ राजा का शासन था नाम था दाहिर सेन.
भारत वर्ष की आठवीं सदी के वीर नायक के रूप में जाना जाता था राजा दाहिर सेन को. राजा दाहिर सेन के शासन के दौरान इस्लामी आक्रांताओं ने 15 बार सिंध पर आक्रमण किया. इस शूरवीर ने 14 बार इन आक्रमणकारियों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया.
15 वें आक्रमण में ये शूरवीर 20 जून 1721 को वीरगति को प्राप्त हो गया. राजा दाहिर सेन ने अपने शासन काल में हिन्दू धर्म का परचम लहराया था और उनके शासन में प्रजा हर प्रकार से सुखी थी.
सिंध की जिस पावन भूमि पर हमारे मनीषी कभी वेद की ऋचाओं की रचना करते थे… वहां मानवता कराह उठी. इतिहास में कहीं तो इस बात का भी जिक्र है कि अरब के आतताई जब अलोर में घुसे तो वहां की वीरांगनाओं ने हथियारबंद होकर मोर्चा संभाला. लेकिन खूंखार और क्रूर अरबी सेना के आगे भोली-भाली महिलाएं भला कहां तक टिक पातीं. सिंध की रानियों को जब लगा कि अब खलीफा की सेना उन्हें बंदी बना लेगी तो सतीत्व और सम्मान की रक्षा के लिए उन्होंने जौहर कर लिया.
अरब के आक्रांताओं ने हैवानियत का नंगा नाच किया. लेकिन सिंध के सपूत मानवता का मरहम लगा लहूलुहान मातृभूमि के घाव भरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे. राजा दाहिर सेन की दोनों बेटियां राजकुमारी परमाल और सूर्यकुमारी युद्ध भूमि में जख्मी सिपाहियों के उपचार की हरचंद मुहिम में जुटी थीं. इस बात से बेखौफ कि अगर मोहम्मद बिन कासिम के क्रूर सैनिकों ने पकड़ लिया तो उनका कितना भयावह परिणाम होगा. वही हुआ भीम कासिम के दुर्दांत सैनिकों ने दोनों राजकुमारियों को बंदी बना लिया. रूपवती, शीलवान राजकुमारियों को बंदी बनाने के बाद कासिम के मन का शैतान जाग उठा. उसने राजकुमारी परमाल और राजकुमारी सूर्यकुमारी को बतौर तोहफा खलीफा के सुपुर्द करने का निर्णय किया. इस तरह परमवीर राजा दाहिरसेन की दोनों बेटियां खलीफा के कब्जे में चली गईं.
मोहम्मद बिन कासिम ने तो ये नीच काम इसलिए किया कि खलीफा उससे बेइंतहा खुश होगा. और उसे कई राज्यों की बादशाहत अता फरमाएगा. पर उस नामाकूल को क्या पता था जिन राजकुमारियों को वो केवल रूपवान, शीलवान, निरीह कन्या समझ रहा है वही उसके विनाश की इबारत लिख देंगी. राजकुमारी परमाल और सूर्यकुमारी को पता था कि उनके जीवन में अब कुछ भी शेष नहीं है. इसलिए उन्होंने सिंध के साजिशकर्ताओं के विरुद्ध एक खूबसूरत चाल चली. जब खलीफा के सामने पेश किया गया तो उन्होंने रोते हुए कहा कि कासिम ने आपके पास भेजने से पहले ही उनका शील भंग कर दिया था. अब तो खलीफा के मन में गुस्से का जलजला फूट पड़ा. उसने तुरंत कासिम को बंदी बनाकर खुद के सामने पेश करने का फरमान सुनाया.
खलीफा का हुक्म पाकर उसके भरोसेमंद सैनिक तुरंत कासिम को गिरफ्तार करने के लिए निकल पड़े. कासिम के पास पहुंचकर उन्होंने खलीफा का फरमान उसे सुना दिया. खलीफा की हुक्मउदूली की हिम्मत भला वो कैसे कर सकता था. उसने तुरंत आत्मसमर्पण कर दिया. इतिहास में कहीं-कहीं ये लिखा है कि खलीफा के दरबार में जब उसे पेश किया गया तो उसने उसे सजा-ए-मौत दे दी. कहीं ये भी जिक्र आता है कि खलीफा के सैनिक उसे चमड़े के बैग में भर कर ला रहे थे और रास्ते में ही घुटन की वजह से उसने दम तोड़ दिया.
कासिम की मौत के बाद खलीफा को सच्चाई भी पता लग गई कि सिंध की राजकुमारियों ने उससे झूठ बोला था… लिहाजा उन पर वो आगबबूला हो उठा लेकिन अमर बलिदानी दाहिर सेन की बेटियां तो सिंध के गुनहगार को सबक सिखाने भर के लिए जिंदा थीं. कहते हैं कि इसके बाद दोनों ने अपने पास छुपाकर रखे खंजर एक दूसरे के सीने में उतारकर जीवन समाप्त कर लिया. इस प्रकार सिंध की बेटियों ने न केवल अपने अस्मत की रक्षा की बल्कि प्राणोत्सर्ग से पहले कुकर्मी कासिम का खात्मा भी कर दिया.

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