एक सवाल अक्सर पूछा जाता है: मुस्लिमों में 72 फिरके हैं, फिर भी वे एक कैसे हो जाते हैं? उनके बीच हजारों मतभेद हैं, वे एक-दूसरे की मस्जिदों में नहीं जाते, फिर भी वे एकजुट कैसे रहते हैं?
इस प्रश्न का उत्तर स्पष्ट है। हम भी एक हैं, लेकिन हमारे अंदर व्याप्त अहंकार, हीनता बोध, सद्गुणों का विकृत स्वरूप और वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था ने हमें और अधिक विभाजित कर दिया है।
लेकिन यह उत्तर पूर्ण नहीं है। जब तक हम हिंदू एकता का सही अर्थ लोगों के सामने नहीं रखेंगे, तब तक यह प्रश्न बना रहेगा: हमें एक क्यों होना चाहिए? किन संकल्पों और लक्ष्यों की पूर्ति के लिए हमें एकजुट होना चाहिए? हमारा उद्देश्य क्या है?
हमें स्पष्ट करना होगा कि हिंदुओं को एकजुट करने का उद्देश्य न तो तात्कालिक स्वार्थ है और न ही व्यक्तिगत लाभ। हमारा उद्देश्य पवित्र है, और हम बड़े लक्ष्यों को लेकर काम करेंगे।
यदि हमने इन बातों को आम हिंदुओं से छिपाया या उन्हें समझाया नहीं, तो “बंटेंगे तो कटेंगे, एक रहेंगे तो नेक रहेंगे” जैसे नारे एक समय के बाद मजाक बन जाएंगे।
इसलिए, हमें समाज को एक स्पष्ट दृष्टिकोण देना होगा कि हम हिंदू समाज को संगठित क्यों करना चाहते हैं। केवल नारे लगाने से कुछ हासिल नहीं होगा। हमें एक ठोस और प्रेरणादायक विजन के साथ आगे बढ़ना होगा।
लोकसभा चुनाव के समय, बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने एक नारा दिया था: “अबकी बार 400 पार।” लेकिन इस नारे को देने के बावजूद, यह स्पष्ट नहीं किया गया कि 400 पार क्यों चाहिए और 400 पार होने के बाद क्या किया जाएगा। जनता को यह समझाने में विफल रहने का परिणाम यह हुआ कि 400 सीटें तो नहीं मिलीं, बल्कि पार्टी 240 पर अटक गई। चुनाव के दौरान ऐसी अफवाहें फैलाई गईं, जिनका काउंटर आज तक नहीं किया जा सका, और नैरेटिव की लड़ाई हार गए।
इसी तरह, हिंदू एकता को लेकर भी यही स्थिति है। हम क्यों हिंदू समाज की एकता स्थापित करना चाहते हैं, यह स्पष्ट करने में विफल हो रहे हैं।
एक सवाल अक्सर उठता है कि हिंदू समाज एक क्यों नहीं है, जबकि मुस्लिम और अन्य मतावलंबी एक हो जाते हैं। इस विषय को समझने से पहले हमें यह देखना होगा कि हिंदू समाज हमेशा से धार्मिक, सांस्कृतिक, और आध्यात्मिक रूप से एक रहा है। कुंभ का मेला, दिवाली, रक्षाबंधन, नवरात्रि, गणेश उत्सव जैसे पर्वों पर हिंदू समाज की एकता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इन अवसरों पर जाति, क्षेत्र, और भाषा के सारे बंधन टूट जाते हैं। लेकिन यह एकता सामूहिक रूप में तो दिखती है, व्यक्तिगत स्तर पर नहीं।
व्यक्तिगत स्तर पर हिंदू समाज की एकता कमजोर इसलिए है क्योंकि इसे धार्मिक कार्यों तक सीमित कर दिया गया है। इसे यह सिखाया गया है कि सात समुद्र पार नहीं जाना चाहिए, अहिंसा परम धर्म है, और हर कोई समान होता है। यहां तक कि अधर्म को भी धर्म मानने की धारणा गहराई तक बैठा दी गई है।
इसके अतिरिक्त, हमारे राजनीतिक नेतृत्व की गुलामी की मानसिकता भी इस समस्या का कारण है। जब हमारे नेता विदेश में कहते हैं कि “भारत बुद्ध और गांधी का देश है, हमने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया,” तो वे यह सोचते हैं कि इससे भारत की सॉफ्ट इमेज बनेगी और हम शांतिप्रिय कहलाएंगे। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि दुनिया हमारी बात तभी सुनेगी, जब हम शक्तिशाली होंगे। अगर हम दीन-हीन बने रहेंगे, तो एक समय के बाद कोई हमारी बात नहीं सुनेगा।
भगवान राम और कृष्ण का उदाहरण लें। अगर भगवान राम केवल धरने पर बैठते, तो क्या रावण उनकी बात मानता? उन्होंने लड़ाई लड़ी और विजय प्राप्त की। रावण पर विजय के बाद भी उन्होंने अश्वमेध यज्ञ जैसे कार्य किए, जो बिना आक्रमण संभव नहीं थे। भगवान श्रीकृष्ण ने भी पूरे जीवन अधर्म के खिलाफ युद्ध किया। यहां तक कि जब उनके कुल के लोग अधर्मी हो गए, तो उनका भी नाश किया। महाभारत युद्ध के बाद उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया और कई देशों पर विजय प्राप्त की।
आधुनिक काल में भी देखें, तो पुष्यमित्र शुंग ने अपने राज्य के विस्तार के लिए युद्ध किया और अश्वमेध यज्ञ किया। समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा जाता है, जिन्होंने कई युद्ध लड़े और कभी हार नहीं मानी। विक्रमादित्य ने भी यही किया। लेकिन आज हिंदू समाज को यह सिखाया गया है कि हम बुद्ध और गांधी का देश हैं, हमने किसी पर आक्रमण नहीं किया। इसका परिणाम यह हुआ कि हम अपने मूल स्वभाव को भूल गए और हमारा प्रभाव खत्म होने लगा।
यदि हिंदू समाज को सही मायनों में एक करना है, तो सद्गुण विकृति को पूरी तरह त्यागना होगा और अपने स्वधर्म का पालन करना होगा। तभी हिंदू समाज सशक्त और एकजुट हो पाएगा।
हिंदू एकता के संदर्भ में एक बात और हमें समझनी होगी। यदि हम कुछ लक्ष्य और संकल्प निर्धारित नहीं करेंगे, तो हिंदू एकता की जितनी भी बात करें, समाज किसी एक उद्देश्य के लिए संगठित नहीं होगा। हमें यह समझना पड़ेगा कि हमारे पूर्वजों ने “कृण्वन्तो विश्वमार्यम्” का मंत्र क्यों दिया था। हमें यह भी बताना होगा कि मात्र 9% आबादी ने हमारे 60% भूभाग पर 300 वर्षों में कैसे कब्जा कर लिया।
आज के भारत में 9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं। इन परिस्थितियों को बदलना होगा। हमें अखंड भारत की संकल्प को साकार करना है। पूरी दुनिया को भगवा ध्वज के नीचे लाना है और अधर्मियों का विनाश करके सनातन धर्म की पुनः स्थापना करनी है। जिस दिन इन लक्ष्यों और संकल्पों को सरल और स्पष्ट भाषा में आम हिंदुओं के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा, उस दिन हिंदू समाज इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए तन, मन, धन से समर्पित होकर कार्य करने के लिए हमेशा तत्पर रहेगा । अगर हम हिंदू समाज को यह नहीं समझा पाए, तो यह हिंदू एकता पूरी तरह निरर्थक सिद्ध होगी। यह केवल अल्पकालिक राजनीतिक लाभ दे सकती है, लेकिन उसका दीर्घकालिक परिणाम भयावह होगा।
हमें हिंदू समाज को संगठित करने के लिए इसे लक्ष्य आधारित बनाना होगा। यदि हम ऐसा नहीं कर पाए, तो हिंदू समाज विभाजित रहेगा। विभाजन से विनाश होगा। “एक रहेंगे तो नेक रहेंगे” जैसे नारों से आगे बढ़कर हमें समाज को एक लक्ष्य देना होगा। लक्ष्य, दिशा और संकल्प विहीन समाज हीनता बोध से ग्रस्त रहता है और वह कभी उठ नहीं सकता।
यदि हमें हिंदू समाज को संगठित करना है, तो उसे लक्ष्य आधारित बनाना पड़ेगा। हमारे राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक संगठनों, धर्मगुरुओं और विचारकों को यह बताना होगा कि हम सनातन धर्म की पुनः स्थापना कैसे करेंगे। पूरी दुनिया के लोगों को आर्य कैसे बनाएंगे। पूरी दुनिया के लोगों को भगवा ध्वज के नीचे सभी को कैसे लाएंगे । अखंड भारत का संकल्प कैसे साकार करेंगे।
इन सभी उद्देश्यों का एक स्पष्ट और ठोस विजन डॉक्यूमेंट आम हिंदुओं के समक्ष प्रस्तुत करना होगा। तभी समाज लक्ष्य आधारित बनेगा और हीनता बोध से मुक्त होकर कुछ कर गुजरने का जज्बा दिखाएगा।
यदि हम हिंदू समाज के समक्ष यह स्पष्ट विजन डॉक्यूमेंट प्रस्तुत नहीं कर पाए और हिंदू समाज को लक्ष्य आधारित और संकल्प आधारित नहीं बना पाए, तो हिंदू एकता पूरी तरह निरर्थक सिद्ध होगी।
लेखक श्री दीपक कुमार द्विवेदी