वक्फ बोर्ड को लेकर पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में माननीय न्यायाधीश पंकज जैन जी का ऐतिहासिक फैसला

अमरदीप जौली

संक्षिप्त नोट

15.01.2025 : माननीय न्यायमूर्ति पंकज जैन जी की अध्यक्षता में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय चंडीगढ़ की एकल पीठ ने पंजाब वक्फ बोर्ड से संबंधित भूमि अधिग्रहण के संबंध में एक एतिहासिक फैसला सुनाया है। यह निर्णय दिनांक 15.01.2025 RSA No. 3739/2000, शीर्षक “पंजाब वक्फ बोर्ड बनाम ब्राह्मण सभा पलवल और अन्य” के मध्यांतरआया है।

संक्षिप्त तथ्यःपंजाब वक्फ बोर्ड ने 1 कनाल 4 मरला भूमि पर कब्जा लेने के लिए मुकद्दमा दायर किया था। वक्फ बोर्ड ने वक्फ अधिनियम की धारा 5(2) के तहत जारी अधिसूचना और उसके बाद राजस्व विभाग के रिकार्ड में दर्ज प्रविष्टि के आधार पर इसे वक्फ संपत्ति होने का दावा किया। संक्षेप में, वर्ष 1976-77 में उक्त भूमि की जमाबंदी (राजस्व रिकार्ड) शामलात पत्ती खेल (पंचायत भूमि ) के नाम पर दर्ज की गई थी, और बाद में वर्ष 1981-82 के दौरान वक्फ अधिनियम की धारा 5(2) के तहत जारी अधिसूचना के आधार पर, जमाबंदी (राजस्व रिकार्ड) में भूमि को वक्फ बोर्ड के नाम दर्ज कर दिया गया।

निर्णय के मुख्य बिन्दु

1. वक्फ बोर्ड के मामलों में सिविल कोर्ट का क्षेत्राधिकार पूर्ण रूप से सीमित नहीं हैं। इस निर्णय के अनुसार सिविल न्यायालय का क्षेत्राधिकार केवल वहीं तक सीमित है जहां मामला ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र में आता है। ट्रिब्यूनल के पास धारा 5 के तहत प्रकाशित सूची के संबंध में जांच की कोई शक्ति नहीं हैं। इसलिए केवल सिविल कोर्ट को यह फैसला करने का अधिकार है कि संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने के लिए सर्वेक्षण कमिश्नर द्वारा जांच के दौरान कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था या नहीं।

2. वक्फ अधिनियम की धारा 5(2) के तहत की गई अधिसूचना के आधार पर वर्ष 1981-82 के लिए राजस्व रिकार्ड में प्रविष्टि वैध आधार नहीं हैं, क्योंकि यह वैध प्रविष्टि के रूप में योग्य नहीं हैं।

3. इस फैसले में वक्फ अधिनियम 1954, 1995 और संशोधित अधिनियम 2013 की अलग-अलग तुलना की गई है, जिसकी तुलनात्मक तालिका भी फैसले में दी गई है।

निष्कर्ष :यह निर्णय एक महत्वपूर्ण निर्णय है, जिसका वक्फ अधिनियम की धारा 5(2) के तहत जारी फर्जी अधिसूचनाओं और राजस्व रिकॉर्ड में बाद की प्रविष्टियों के आधार पर वक्फ बोर्ड द्वारा कब्जा की गई भूमि से संबंधित भूमि विवादों को तय करने के सिविल न्यायालय के अधिकार क्षेत्र पर सीधा असर पड़ता है।

साभार: जोरावर सिंह जी Advocate, चंडीगढ

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