पूजा करते वक्त सर्वाधिक महत्व जिस बात का है वह है दीया।वह भी शुद्ध घी का दीया।
आखिर क्यों?
क्या तेल के दीपक से काम नहीं चल सकता है?
उत्तर – नहीं
तेल या घी दोनों ही Hydrocarbon है फिर फर्क क्या है?
शुद्ध घी की रासायनिक संरचना तेल के रासायनिक संरचना से भिन्न है ,जब तेल जलता है तो विघटन होने के पश्चात धुआं और गैस निकलती है यह धुआं और गैस हमारे शरीर और मन के लिए हानिकारक होते हैं।
जबकि शुद्ध घी के जलने से निर्मित होने वाले धुआं और गैस शरीर के लिए हानिकारक नहीं होते और यह शास्त्रों के द्वारा भी साबित हो चुका है।
घी के जलने से निर्मित धुआं वातावरण को शुद्ध करता है और तेल के जलने से वातावरण प्रदूषित होता है ।
अगर आप एक शुद्ध घी का दीया और तेल का दीया पास पास रखकर जलाएं तो देखेंगे की शुद्ध घी के दीए की रोशनी श्वेत स्वर्णिम रंग वाली है, जबकि तेल के दीए की लौ पीली तथा लालिमा लिए हुए होती है।
आध्यात्मिकता में वृद्धि करने मन की शांति पर्यावरण की शुद्धता बढ़ाने के लिए शुद्ध घी का दीया जलाने का प्रावधान है, अगर तेल का दीया जलाना ही है तो तिल के तेल से कर दीया जलाना चाहिए क्योंकि तिल के तेल के जलने से उत्पन्न होने वाले गुण लगभग शुद्ध घी के जलने पर उत्पन्न होने वाले गुणों के आसपास ही होते हैं।
बाजार में मोमबत्ती के दीए भी मिलते हैं वे वास्तव में जानवरों की चर्बी तथा पैराफिन से बनते हैं वह अत्यंत हानिकारक होते हैं।
कुछ लोग सस्ते जलाऊ तेल का प्रयोग भी करते हैं जिसमें मिनरल ऑयल होता है वह भी हानिकारक ही है।
शुद्ध घी जो घरों में तैयार होता है वही सर्वोत्तम है उसमें भी गाय के दूध से बना शुद्ध घी की सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
होम हवन करते समय रक्त चंदन, आम के पेड़ की सूखी टहनी, पीपल के पेड़ की सूखी टहनी, गूगल, धूप ,शुद्ध भीमसेनी,कपूर उसमें शुद्ध घी,शहद, जायफल तथा गाय के गोबर के कंडे की आहुति देने से वातावरण शुद्ध और पवित्र होता है।
इसलिए अगली बार पूजा के दीए जलाते समय शुद्ध घी का दिया जलाने का प्रयत्न करें।भले ही वह छोटा ही क्यों ना हो ।
–प्रकाश केवड़े, नागपुर (महाराष्ट्र)