कृष्णमुरारी त्रिपाठी
देश में गाहे-बगाहे इमरजेंसी, तानाशाही, हिटलरशाही जैसे शब्द सुनाई देते रहते हैं। हताशा से भरा एक वर्ग अपना राग अलापता रहता है। लोकतंत्र का महापर्व चल रहा है तो इन शब्दों की गूंज अधिक हुई है। सोशल मीडिया पर भी इस वर्ग के समर्थक इन शब्दों का उपयोग करते दिख जाएंगे।
भविष्य में इमरजेंसी, तानाशाही होगी या नहीं कह नहीं सकते, पर हां अतीत में हमारा देश इमरजेंसी, तानाशाही का सामना अवश्य कर चुका है। जब सच में संविधान और कानून को ख़त्म कर दिया गया था, प्रेस सेंसरशिप लगाकर – पत्रकारिता की हत्या कर दी गई थी, आजाद भारत की क्रूर-वीभत्स -दमनात्मक त्रासदी का स्मरण आवश्यक है। ‘आपातकाल के आतंक’ की ओर अवश्य नजर दौड़ानी चाहिए। जब 1975 से 1977 तक देशभर में क्रूर बर्बर आतंक बरसा था।
मीसा के अन्तर्गत किसी को भी गिरफ्तार करने और अन्य गम्भीर धाराओं में मुकदमा दर्ज करने का अन्तहीन सिलसिला चला था। प्रेस सेंसरशिप लागू हो चुकी थी. 04 जुलाई, 1975 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। उस दौर में लोकतंत्र की क्या स्थिति थी, उसकी एक बानगी कुलदीप नैय्यर के शब्दों में ही जो उन्होंने ‘इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी’ में दर्ज किए हैं –
“प्रेस को कुचल दिया गया था। साप्ताहिक ‘पाञ्चजन्य’, दैनिक ‘तरुण भारत’, और हिंदी मासिक पत्रिका ‘राष्ट्रधर्म’, जो जनसंघ समूह के हिन्दी प्रकाशन का हिस्सा थे; को बंद कर दिया गया। बिना किसी सर्च वारंट या किसी सक्षम अधिकारी के आदेश के एक पुलिस पार्टी इन अखबारों के परिसर में दाखिल हुई, प्रेस के कर्मचारियों को धक्के मारकर बाहर निकाला और सारी पत्रिकाओं का प्रकाशन बंद करने के लिए प्रेस पर ताला लगा दिया। इन अखबारों के प्रकाशक, राष्ट्रधर्म प्रकाशन को लखनऊ में वकील मिलना मुश्किल हो गया। वकील डरे हुए थे। जो तैयार होता, उसे भारत के रक्षा नियम के तहत गिरफ्तार कर लिया जाता था।” (इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी पृ. 57 प्रभात प्रकाशन संस्करण 2020)
आपातकाल का एक और चर्चित कारनामा – जब ‘महात्मा गांधी’ के नवजीवन ट्रस्ट को भी नहीं बख्शा गया..!
उस समय बॉम्बे उच्च न्यायालय के पूर्व जज वी.एम. तारकुंडे ने ‘सिटिजन्स फॉर डेमोक्रेसी’ मंच का गठन किया। इसमें उन्होंने मौलिक अधिकारों को वापस करने को लेकर मांगें रखीं। आगे चलकर 12 अक्तूबर को ‘सिटिजन्स फॉर डेमोक्रेसी’ का अहमदाबाद में एक सम्मेलन हुआ। इसमें बॉम्बे उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एम.सी. छागला, सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेसी शाह, मिनोओ मसानी सहित अन्य वकीलों ने अपने विचार रखे। सम्मेलन के उद्घाटन के दौरान जस्टिस छागला के भाषण को आधार बनाकर बड़ौदा के साप्ताहिक पत्र ‘भूमि पुत्र’ के प्रेस को सील कर दिया गया। भूमि पुत्र के मामले को लेकर नवजीवन ट्रस्ट ने एक बुकलेट छापी, जिसके चलते पुलिस ने प्रेस पर धावा बोला और उसे भी सील कर दिया।
उस दौरान जस्टिस छागला ने जो कुछ कहा था, वह कुलदीप नैय्यर ने ‘इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी’ में लिखा है – “आज जेल में बंद ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं है कि वे वहाँ क्यों हैं और वे अपना बचाव नहीं कर सकते क्योंकि जहाँ कोई आरोप नहीं, वहाँ बचाव भी नहीं हो सकता है। वे किसी और अधिकरण के पास भी नहीं जा सकते, क्योंकि सब बंद पड़े हैं”। (इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी पृ. 107 प्रभात प्रकाशन संस्करण 2020)
तानाशाही के किस वीभत्स दौर की पराकाष्ठा पार कर रही थी। उसकी बानगी भी यहां देख लीजिए। अक्सर कांग्रेस के नेता महात्मा गांधी को लेकर बड़ी-बड़ी बातें कहते रहते हैं। लेकिन उसी कांग्रेस ने महात्मा गांधी के प्रति आपातकाल के दौरान कैसी श्रद्धा व्यक्त की थी? महात्मा गांधी की विरासत का सम्मान कांग्रेस ने कैसे किया, उसे भी कुलदीप नैय्यर ने दर्ज किया है –
“नवजीवन ट्रस्ट प्रेस, जहाँ से महात्मा गांधी अपने ‘यंग इंडिया’ और ‘हरिजन’ का प्रकाशन कराते थे और अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ रहे थे, ने भूमि पुत्र के मामले पर एक बुकलेट छापी। पुलिस ने प्रेस पर धावा बोल दिया, उसे सील कर दिया और छह दिनों तक बंद रखा। प्रेस ने गुजरात उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। कुछ समय बाद उसे यह कहा गया कि अगर नवजीवन अपनी सारी प्रकाशित होने वाली सामग्री सेंसरशिप के लिए सौंप दे, तो सरकार उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं करेगी। जितेंद्र देसाई, जो प्रेस के मैनेजर थे, ने कहा कि आजाद भारत की सरकार ने उस संस्थान को सील कर दिया, जिसे महात्मा गांधी ने देश को आजादी दिलाने के लिए खड़ा किया था”।(इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी पृ. 107 प्रभात प्रकाशन संस्करण 2020)
सोचिए…जिसने महात्मा गांधी की विरासत का ये हश्र किया हो। उसने अन्य सबके साथ क्या कुछ नहीं किया होगा?
मगर, जनाब! बकौल गैंग्स ऑफ ………के अनुसार, जो भारत की बात करता है। आम आदमी की बात करता है, भारत की संस्कृति की बात करता है, सबके समान विकास और जनकल्याण की बात करता है, भ्रष्टाचार के प्रति ज़ीरो टालरेंस की बात करता है…उसके कारण लोकतंत्र खतरे में है। भारत विरोधी राजनीति इस गैंग का मुख्य लक्ष्य है।