हनुमानजी से सीखे एक बार असफल होने पर क्या करें?

अमरदीप जौली

अधिकतर लोग किसी काम में असफल होने से निराश हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में हमें एक बार फिर से कोशिश करनी चाहिए। रामायण के सुंदर कांड में एक बहुत प्रेरक प्रसंग है। हनुमानजी लंका में सीता जी को खोज रहे हैं। रावण के महल के साथ ही अन्य लंकावासियों के घरों में, महलों में, गलियों में, रास्तों पर हर जगह हनुमानजी सीता जी को खोज रहे थे। बहुत मेहनत के बाद भी उन्हें सफलता नहीं मिली। कहीं भी कोई जानकारी न मिलने से वे थोड़े निराश हो गए थे।
हनुमानजी ने सीता जी को कभी देखा नहीं था, वे सिर्फ सीता जी के गुणों को जानते थे। वैसे गुण वाली कोई स्त्री उन्हें लंका में कहीं नहीं दिखाई दी। अपनी इस असफलता की वजह से वे कई तरह की बातें सोचने लगे। उनके मन में विचार आया कि अगर खाली हाथ जाऊंगा तो वानरों के प्राण तो संकट में पड़ेंगे। प्रभु श्रीराम भी सीता के वियोग में प्राण त्याग देंगे, उनके साथ लक्ष्मण और भरत भी। बिना अपने स्वामियों के अयोध्यावासी भी जी नहीं पाएंगे। बहुत से प्राणों पर संकट छा जाएगा।
ये बातें सोचते हुए उनके मन में विचार आया कि मुझे एक बार फिर से खोज शुरू करनी चाहिए। ये विचार आते ही हनुमानजी फिर से एक नई ऊर्जा से भर गए। उन्होंने अब तक की अपनी लंका यात्रा की समीक्षा की और फिर नई योजना के साथ खोज शुरू की। हनुमानजी ने सोचा अभी तक ऐसे स्थानों पर सीता को ढूंढ़ा है जहां राक्षस निवास करते हैं। अब ऐसी जगह खोजना चाहिए, जहां आम राक्षसों का प्रवेश वर्जित हो।
इसके बाद उन्होंने रावण के उद्यानों और राजमहल के आसपास की जगहों पर सीता की खोज शुरू कर दी। इसी खोज में वे अशोक वाटिका पहुंच गए। वहां सफलता मिली और सीता से भेंट हुई। हनुमानजी के एक विचार ने उनकी असफलता को सफलता में बदल दिया।

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