इसी साल जून में ईद का त्यौहार था और और इस अवसर पर बांग्लादेश के एक इस्कॉन मंदिर में इफ्तार के कार्यक्रम का आयोजन किया गया। बांग्लादेश की सभी अखबारों में यह खबर प्रमुखता से छपी। बात कोई ज्यादा पुरानी नहीं है लेकिन उन्हीं इफ्तारी खाने वालों ने कुछ दिनों बाद ही इस इस्कॉन मंदिर में लूटपाट की, तोड़फोड़ की और आग लगा दी। बेचारे इस्कॉन वाले ढोलक लेकर राधे-राधे करते रहे, मगर गीता के असली सार को भूल गए। वो भूल गए कि आप उनके लिए काफ़िर हो और कभी ना कभी आपको दीन में लाने की कोशिश की ही जाएगी, प्यार से या तलवार से। और जिन लोगों को लगता है कि मंदिरों को तोड़कर मस्जिदे कैसे बनाई गई? वह बांग्लादेश जाकर तस्दीक कर सकते हैं, ताजा उदाहरण सामने है। भारत में भी कई जगहों पर अन्य धर्म के लोग ऐसे कार्यक्रम करवाते रहते हैं। यह भाईचारे का प्रतीक समझा जाता है। लेकिन बहुसंख्यक होने पर यह भाईचारा कहीं नजर नहीं आता। अमरीका के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने एक बार कहा था कि इंसान के चरित्र की असली पहचान तब होती है जब वह सत्ता या ताकत में होता है। और बहुसंख्यक होने पर अगर कोई समाज अल्पसंख्यकों से ऐसा बर्ताव करता है तो उसे भी और हमें भी सोचने की जरूरत है।
राधे राधे जपते रहे और गीता सार को भूल गए!
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