गोगा नवमी – गुग्गा जाहरवीर

अमरदीप जौली

साभार: कमल गौतम, हमीरपुर , हिमाचल प्रदेश


भारत वर्ष के महान इतिहास में लाखों ऐसे वीर हुए हैं जिन्होंने देश, धर्म और जाति की सेवा में अपने प्राण न्यौछावर कर दिये। लेकिन खेद है कि वामपंथी इतिहासकारों के कारण स्वतंत्र भारत का इतिहास आज भी परतंत्र है। ऐसे ही महान वीरों में देश धर्म की रक्षार्थ बलिदान हुए वीर गोगा बापा एवं उनका परिवार।
भारत की अस्मिता के रक्षक गोगावीर जिसे वामपंथी इतिहासकारों ने हमसे छुपा दिया था।
मोहम्मद गजनी जब सोमनाथ मन्दिर को लूटने के इरादे से आया था तब ददरेवा राजपूताने के शासक गोगा राणा ने उस आतातायी लुटेरे को सोमनाथ जाने से अपने राज्य की सीमाओं पर ही रोक लिया था। दस दिन तक एक लाख पैदल और तीस हज़ार ऊँट और घुड़सवार वाली विशाल सेना से युद्ध कर उसे आगे बढ़ने से रोके रखा। अन्तत: उस विशाल सेना के सामने गोगा महाराज की लगभग आठ हजार की छोटी सेना गोगा सहित वीर गति को प्राप्त हुई।
धर्म रक्षा के लिए गढ़ के वीरों के बलिदान होते ही दुर्ग पर वीर राजपूत वीरांगनाऐं भी सभी दासियों सहित सुहागिन वेष सजाकर और मंगल गान करते हुए जलती चिता पर चढ़कर बलिदान हो गई। इस प्रकार गोगा राणा ने अपना सर्वस्व भगवान सोमनाथ मन्दिर की रक्षार्थ स्वाहा कर दिया।
इतिहासकारों ने इनके पराक्रम और गजनी से युद्ध के बारे में विस्तृत रूप से लिखा है। विदेशी इतिहासकारों में प्रसिद्ध कर्नल टाड ने हिस्ट्री आफ राजस्थान में लिखा है कि गोगा के 21 पुत्र ओर 46 पौत्र तथा 108 प्रपौत्रों ने बलिदान दिया था। दूसरे इतिहासकार कनिंघम ने भी इसी बात को दोहराते हुये लिखा है कि हिमालय के निचले तराइ के हिस्से में वीर पूजा प्रचलित है पर कई वीर भारत के सुदूर तक पूजे जाते है उनमें से गोगा वीर प्रमुख हैं। कन्हैयालाल मानिक लाल मुन्सी ने अपने विख्यात ग्रन्थ “जय सोमनाथ” में इस युद्ध का विस्तृत वर्णन करते हुये ग्रन्थ की भूमिका में लिखा है कि गोगा राणा के पराक्रम काल्पनिक नहीं है।

गोगा जी युद्ध में चपल और सिद्ध होने के कारण रणक्षेत्र में हर कहीं दिखाई देते थे। उनके इस रणकौशल को देखकर ही महमूद गजनवी ने कहा था कि यह तो ‘जाहीरा पीर’ है अर्थात् साक्षात् देवता के समान प्रकट होता है। इसलिए ये ‘जाहरपीर’ के नाम से भी प्रसिद्ध हैं।(कुछ लोग जाहर पीर का मतलब भगवान नरसिंह के वीर से जोड़ते है) उत्तर प्रदेश में भी इन्हें ‘जाहरपीर’ के नाम से जाना जाता है जो कि मुसलमानो द्वारा प्रचारित है। गोगा जी ने गौ-रक्षा एवं तुर्क आक्रांताओं (महमूद गजनवी) से देश की रक्षार्थ अपने प्राण न्यौछावर कर दिये। राजस्थान का किसान वर्षा के बाद हल जोतने से पहले गोगा जी के नाम की राखी ‘गोगा राखड़ी’ हल और हाली, दोनों को बाँधता है। गोगा जी के ‘थान’ खेजड़ी वृक्ष के नीचे होते हैं, जहाँ मूर्ति एक पत्थर पर सर्प की आकृति अंकित होती है। इसलिए बागड़ में तो यह कहावत है कि ‘गाँव-गाँव गोगो ने गाँव-गाँव खेजड़ी। ऐसी मान्यता है कि युद्ध भूमि में लड़ते हुए गोगाजी का सिर चूरू जिले के जिस स्थान पर गिरा था वहाँ ‘शीश मेड़ी’ तथा युद्ध करते हुए जहाँ शरीर गिरा था उसे ‘गोगामेड़ी’ कहा गया। गोगाजी के जन्म स्थल ददरेवा को ‘शीर्ष मेड़ी’ तथा समाधि स्थल ‘गोगा मेडी’ (भादरा-हनुमानगढ़) को ‘धुरमेड़ी’ भी कहते हैं।
गोगा जी का एक पुत्र सज्जन सिंह अपने पुत्र सामन्त सिंह के साथ उस समय सोमनाथ दर्शन की यात्रा पर गये हुये थे। उनको सोमनाथ में ही गजनी के आने का समाचार मिल गया। पिता -पुत्र दोनों ने अविलम्ब उस दुष्ट को रोकने के लिये वहाँ से अलग-अलग मार्ग से प्रस्थान किया। जिस मार्ग से सज्जन गया उस मार्ग में गजनी से सामना हो गया।
उनके सैनिकों ने सज्जन को बन्दी बना कर गजनी के सामने पेश किया। गजनी ने पूछा कहाँ से आ रहे हो और कहां जा रहे हो..? सज्जन को तब तक पता हो गया था कि हमारा राज्य तहस-नहस हो गया है। अत: उसने गजनी से प्रतिशोध की ठानकर बताया मैं सोमनाथ से दर्शन करके आ रहा हूं। गजनी ने कहा हमें मार्ग बताओ तो तुम्हे छोड़ देंगे। चौहान सज्जन सिंह ने कहा पहले मेरी ऊँटनी जो आपके सैनिकों ने ले ली है वह मुझे लौटाएँ। ऐसा ही हुआ गोगा पुत्र ने उसकी सेना को मार्ग बताने के बहाने मरुस्थल में भटका दिया जहाँ धूल भरी तप्त बालू रेत में गजनी के दस हजार से अधिक सैनिक ऊंटों सहित मरुस्थल में समा गये। सज्जन भी वहीं बलिदान हुये। इस प्रकार गोगा पुत्र ने शत्रुओं से प्रतिशोध लेकर इतिहास में अमर हो गये।
दूसरी ओर सज्जन का पुत्र सामन्त को भी पता चल गया कि अपना राज्य समाप्त हो गया है। उसकी क़द काठी और शक्ल गोगा जैसी ही थी। उसने गाँव गाँव घूमकर लोगों को सचेत करते हुये गाँवों को ख़ाली करवा लिया। गजनी की विशाल सेना के बारे मे सबको बताया कि तीस हजार ऊँटों पर पानी की बखाल लिये एक लाख लुटेरों को साथ लिये आ रहा है। गाँव खाली हो गये कुंओं को पाट दिया गया, चारे को जला दिया गया। नतीजा यह हुआ कि गजनी की सेना को राशन पानी, पशुओं को चारा नहीं मिलने से भारी संकट का सामना करना पड़ा। सामन्त ने उस मार्ग के राजाओं को एकत्रित कर उनकी सेनाओं के साथ सोमनाथ में मोर्चा लगाया और डटकर सामना किया। गजनी अपनी जान बचाकर असंख्य सैनिकों को युद्ध में मरवाकर स्वयं कच्छ के रास्ते से वापस भाग गया।
कम्युनिस्टो ने गलत इतिहास लिखकर ये बताया कि सोमनाथ की रक्षा के लिये कोई भी भारतीय नहीं लड़ा।
के. एम. मुन्सी ने “जय सोमनाथ ग्रन्थ” में विस्तृत वर्णन किया है कि भारत के शूरवीरों ने कैसे भीषण द्वंद कर दुश्मन को भगाया था।
आज एक हजार वर्ष से भी अधिक समय से भारत माँ के उस वीर सुपुत्र को भारत की जनता इतना सम्मान देती है कि उनको लोक देवता के रूप में पूजती है। “गोगा मेडी” नाम के स्थान पर इनकी समाधि पर मेला लगता है जो उत्तर भारत का कुम्भ माना जाता है। दिल्ली से गोगा मेडी रेलवे स्टेशन तक भारत सरकार तीन तीन स्पेशल ट्रेनें चलाती है भादों मास की बदी व सूदी नवमी को ददरेवा जन्म स्थान व “गोगा मेडी” जहाँ गोगा जी वीरगति को प्राप्त हुये जंगी मेले लगते है। एक अनुमान के अनुसार 15 से 20 लाख श्रद्धालु मेले में पहुँच कर श्रद्धापूर्वक पूजा व मनोकामना माँगते है। यू.पी और बिहार के यात्री पीले वस्त्र पहन कर आते हैं जो केसरिया बाना पहन कर धर्म युद्ध करने की परम्परा की याद ताजा करवाता है। इस दिन राजस्थान सरकार की ओर से सरकारी छुट्टी रहती है।
राजस्थान में आज के दिन घर-घर में खीर चूरमा बनता है। पूर्णिमा को बाँधी राखी आज खोली जाती है जिसे गोगा की प्रतिमा पर चढाई जाती है। मिट्टी से बनी घोड़े पर सवार गोगा की प्रतिमा की घर-घर पूजा होती है। इसके सम्बन्ध में एक दोहा विख्यात है :-
“पाबू हरबू रामदे,मांगलिया मेहा ।”
“पांचू वीर पधारज्यो,गोगाजी जेहा ।।”

आगे जाकर गोगा जी की 13 वीं पीढ़ी में राव मोटेराय के एक पुत्र करमचंद को दिल्ली के तत्कालीन मुस्लिम शासक द्वारा षड्यंत्र पूर्वक मुस्लिम बनाकर कायम खान नाम दिया गया जिसके वंशज आज कायमखानी मुस्लिम कहलाते हैं। किन्तु अपना गौरव गोगा जी को ही मानते हैं और गोगा जी के हिन्दू वंशज आज भी चौहान वंश की गरिमा बढ़ा रहे हैं।

                    भाद्रपद महीने में श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन नवमी को गोगा (गुग्गा) नवमी के रूप में मनाया जाता है। गोगा जी राजस्थान के लोक देवता हैं। जिन्हें "जाहरवीर गोगा जी" के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन श्री जाहरवीर गोगाजी का जन्मोत्सव बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
             राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का एक शहर गोगामेड़ी है। यहां भादों शुक्लपक्ष की नवमी को गोगाजी देवता का मेला लगता है। इन्हें हिन्दू और मुसलमान दोनो पूजते हैं। राजस्थान के अलावा पंजाब और हरियाणा सहित हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में भी इस पर्व को बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है। 
           पौराणिक मान्यता के अनुसार गोगा जी महाराज की पूजा करने से सर्पदंश का खतरा नहीं रहता है। गोगा देवता को साँपों का देवता माना गया है। इसलिए इस दिन नागों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि पूजा स्थल की मिट्टी को घर पर रखने से सर्पभय से मुक्ति मिलती है।

गोरखनाथ के वरदान से हुआ जन्म :-
जन-जन के आराध्य एवं राजस्थान के महापुरुष कहे जाने वाले गोगाजी का जन्म गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से हुआ था। गोगा जी की माँ बाछल देवी निसंतान थीं। संतान प्राप्ति के सभी प्रयत्न करने के बाद भी उनको कोई संतान नहीं हुई। एक बार गुरु गोरखनाथ बाछल देवी के राज्य में “गोगा मेडी” पर तपस्या करने आए। बाछल देवी उनकी शरण में गई तथा गोरखनाथ ने उनको पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और साथ में “गुगल” नामक अभिमंत्रित किया हुआ फल उन्हें प्रसाद के रूप में दिया और आशीर्वाद दिया कि उसका पुत्र वीर तथा नागों को वश में करने वाला तथा सिद्धों का शिरोमणि होगा। इस प्रकार रानी बाछल को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिनका नाम गुग्गा रखा गया।

पूजा-अर्चना का विधान :-
नवमी के दिन स्नानादि करके गोगा देव की या तो मिटटी की मूर्ति को घर पर लाकर या घोड़े पर सवार वीर गोगा जी की तस्वीर को रोली, चावल, पुष्प, गंगाजल आदि से पूजन करना चाहिए। खीर, चूरमा, गुलगुले आदि का प्रसाद लगाएं एवं चने की दाल गोगा जी के घोड़े पर श्रद्धापूर्वक चढ़ाएं।
भक्तगण गोगा जी की कथा का श्रवण और वाचन कर नागदेवता की पूजा-अर्चना करते हैं। कहीं-कहीं तो सांप की बांबी की पूजा भी की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से नागों के देव गोगा जी महाराज की पूजा करते हैं उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
जय गोगा जाहरवीर।।

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