पांडवों ने यहां सीखी थी गुरु द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या
हिमाचल प्रदेश को देवी-देवताओं को भूमि कहा जाता है। प्रदेश के कोने -कोने में कई धार्मिक स्थान है, जिनसे कोई न कोई गाथा जुड़ी हुई है। इनमें पूरे देश में सुप्रसिद्ध प्राचीन व ऐतिहासिक द्रोण शिव मंदिर शिवबाड़ी है। इस मंदिर को भगवान शिव की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यह भी माना जाता है कि इस स्थान पर गुरु द्रोणाचार्य ने पांडवो को धनुर्विद्या भी सिखाई थी। हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के उपमंडल गगरेट के स्थित है। गगरेट से मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित प्रसिद्ध धार्मिक स्थल शिवबाड़ी में महाशिवरात्रि को भगवान शिव के लाखों उपासक यहां पर माथा टेकने पहुंचते है। सोमभद्रा नदी के किनारे स्थित शिवबाड़ी मंदिर हर आने वाले को अपनी ओर आकर्षित करता है…
मंदिर का इतिहास व उससे जुड़ी दंत कथाएं
इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना है किसी समय यह स्थान गुरु द्रोणाचार्य की नगरी थी। पांडव अपने वनवास के समय में यहाँ आ कर रुके थे। दंत कथा के अनुसार गुरु द्रोणाचार्य प्रतिदिन कैलाश पर्वत पर भगवान शिवजी आराधना करने जाया करते थे। उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम जयाति था। उसने अपने पिता से पूछा कि वह प्रतिदिन कैलाश पर्वत पर क्या करने जाते है। तो गुरु द्रोणाचार्य ने कहा कि वह प्रतिदिन पर्वत पर भगवान शिव की आराधना करने जाते है। जयाति ने जिद्द की कि वह भी उनके साथ वहाँ पर जाएगी। गुरु द्रोणाचार्य ने कहा कि वह अभी छोटी है और वह घर पर ही भगवान शिव की आराधना करे। जयाति शिवबाड़ी में ही मिट्टी का शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की आराधना करने लग पड़ी। इस प्रकार जयाति ने ओम नमः शिवाय का जाप करना शुरू कर दिया। लोभ रहित एवं सांसारिक भावनाओं से दूर बालिका को निस्वार्थ तपस्या से वशीभूत होकर भगवान शिव भी उसको बालक रूप में दर्शन देने पहुंच गए। शिव जयाति के साथ खेलते और कथा के बाद अदृश्य हो जाते। जयाति ने यह बात अपने पिता को बताई। अगले दिन गुरु द्रोणाचार्य कैलाश पर्वत पर न जाकर कहीं पास में छिप कर बैठ गए। जैसे ही वह बालक जयाति के साथ खेलने पहुंचा तो गुरु द्रोणाचार्य उस बालक के प्रकाश को देखकर समझ गए कि वह तो साक्षात् भगवान शिव है। जिस पर वह बालक के चरणों में गिर गए और भगवान ने साक्षात् उन्हें दर्शन दे दिए। भगवान ने कहा कि वह बच्ची उनको सच्ची श्रद्धा से बुलाती थी तो वह वहाँ पर आ जाते थे। जब जयाति को इस बात का पता चला तो उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना न रहा। जयाति ने भगवान शिव से वहीं पर रहने की जिद्द कर डाली। उसकी जिद्द पर भगवान शिव ने अपनी पिंडी वहाँ लाकर रख दी और वचन दिया कि बैसाखी के दूसरे शनिवार यहां पर विशाल मेला लगेगा, जिसमें वह स्वयं शमिल हुआ करेंगे। उसके बाद इस मंदिर की स्थापना हुई। भगवान शिव ने शिवबाड़ी में स्वयं अपने हाथों से शिवलिंग की स्थापना की है। बैसाखी के बाद आने वाले दूसरे शनिवार को वह दिन माना जाता है जिस दिन भगवान शिव पूरा दिन यहाँ विचरण करते है। मंदिर की विशेषताएं
इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग की यह विशेषता है कि यह धरती में धंसा हुआ है। शिवबाड़ी के चारों और चार कुओं की स्थापना की गई थी। यहाँ स्थित जंगल की लकड़ी का उपयोग भी केवल मुर्दो को जलाने के लिए किया जाता है। जो भी इस जंगल की लकड़ी का उपयोग अन्य कार्यों के लिए करने की कोशिश करता है। उसे अनिष्टता का सामना करना पड़ता है। वहीं इस शिवलिंग की पूरी परिक्रमा ली जाती है। जबकि आमतौर पर शिवलिंग की आधी परिक्रमा ली जाती है। वहीं यदि क्षेत्र में बारिश न हो तो गांव वाले नीचे स्थित कुएँ में से जल भरकर शिवलिंग पर चढ़ाते है। जब वह पानी शिवलिंग से बहता हुआ नीचे सोमभद्रा नदी में जा मिलता है तो बारिश हो जाती है। यदि पानी न मिले तो बारिश नहीं होती।
सिद्ध महात्माओं की तपस्थली है शिवबाड़ी
शिवबाड़ी गुरु द्रोणाचार्य सहित कई सिद्ध महात्माओं की तपस्थली रही है।
कई सिद्ध महात्माओं की समाधियां आज भी यहाँ स्थित है। इन सिद्ध महात्माओं में से एक थे महात्मा बलदेव गिरी जी। कहा जाता है कि शिवबाड़ी में पहले भूत -प्रेतों का वास था। बलदेव गिरी जी ने यहाँ घोर तप करके इस शिवबाड़ी को अपने मन्त्रों से कील दिया था। पहले वहाँ जाने पर तो दिन में भी लोग डरते थे,लेकिन अब तो रात के समय में भी लोग जाते है और मंदिर में रहते भी है।
केवल शव जलाने के काम आती है जंगल की लकड़ी
शिवबाड़ी मंदिर के चारों और घना जंगल फैला हुआ है। जिसमें करोड़ों की वन संपदा की रक्षा भगवान भोले नाथ कर रहे है। करीब 678 कनाल में फैला विशाल जंगल अपने सौंदर्य को सहेजे हुए है। इस जंगल की लकड़ी केवल शव जलाने के काम आती है। लकड़ी का लाभ आम आदमी नहीं ले सकते। इस जंगल की लकड़ी को साथ ले जाने पर अमंगल हो सकता है।
महाशिवरात्रि व बैसाखी पर लगता है मेला
महाशिवरात्रि व बैसाखी पर मंदिर में लाखों की तादाद में शिव भक्त पहुंचकर पूजा- अर्चना करते है। इस मंदिर से आज तक कोई भी खाली हाथ नहीं लौटा है। मंदिर में श्रद्धालुओं की सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा जाता है।
-देवेंद्र सूद