सुधारवाद के नाम पर सनातन धर्म संस्कृति को पिछले तीन हजार वर्ष में कैसे नुकसान पहुंचाया गया है इस लेख माध्यम से जानने का प्रयास करेंगे ।

Deepak Kumar Dwivedi

हमारी सनातन संस्कृति कुछ हजार वर्षो की नहीं है करोड़ों वर्ष पुरानी है हमारे ऋषियों मुनियों ने जो व्यवस्था बनाई उसके लिए बहुत विचार विमर्श किया गया है तभी हमारी सभ्यता जीवंत और शास्वत सभ्यता है उस व्यवस्था के छेड़छाड़ करने का जब जब प्रयास किया जाता है तो धर्म को बहुत हानि होती है उसी तरह की बात वर्ण व्यवस्था की संदर्भ की जाती है वर्ण व्यवस्था सनातन धर्म का मूल है वर्ण व्यवस्था को समाप्त कर दिया जाएगा पूरी सनातन व्यवस्था चरमरा जाएगी जिसका परिणाम हमारे समाज के लिए बहुत घातक होगा क्योंकि वर्ण व्यवस्था कुल वंश परंपरा पर आधारित है यह व्यवस्था हमारे समाज को जोड़े रखतीं हैं वेदों उपनिषद ब्राह्मण ग्रंथ और मनुस्मृति में और रामायण, महाभारत श्रीमद्भागवत गीता में में कही जिक्र नहीं मिलता है की वर्ण व्यवस्था जन्म आधारित है इन ग्रंथों में स्पष्ट लिखा है वर्ण व्यवस्था गुण कर्म स्वभाव आधार पर विभक्त है इसके संदर्भ मैं श्रीमद्भागवत गीता का तथ्य प्रस्तुत कर रहा हूं क्योंकि गीता उपदेश भगवान श्री कृष्ण ने स्वंय अर्जुन को दिया था उसमें भगवान श्री कृष्ण कहते हैं ।

शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च।

ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम्।।१७.४२2।।

अर्थात ।वे कर्म कौनसे हैं यह बतलाया जाता है –, जिनके अर्थकी व्याख्या पहले की जा चुकी है वे शम और दम तथा पहले कहा हुआ शारीरिकादिभेदसे तीन प्रकारका तप? एवं पूर्वोक्त ( दो प्रकारका ) शौच? क्षान्तिक्षमा? आर्जवअन्तःकरणकी सरलता तथा ज्ञान? विज्ञान और आस्तिकता अर्थात् शास्त्रके वचनोंमें श्रद्धा विश्वास — ये सब ब्राह्मणके स्वाभाविक कर्म हैं अर्थात् ब्राह्मणजातिके कर्म हैं। जो बात स्वभावजन्य गुणोंसे कर्म विभक्त किये गये हैं इस वाक्यसे कही थी? वही यहाँ स्वभावजम् पदसे कही गयी है।

शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम्।

दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम्।।१८.४३।।

अर्थात
शौर्य, तेज, धृति, दाक्ष्य (दक्षता), युद्ध से पलायन न करना, दान और ईश्वर भाव (स्वामी भाव) – ये सब क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म हैं।।

कृषिगौरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम्।

परिचर्यात्मकं कर्म शूद्रस्यापि स्वभावजम्।।१८.५५।।

अर्थात कृषि? गोरक्षा और वाणिज्य — भूमिमें हल चलानेका नाम कृषि है? गौओंकी रक्षा करनेवाला गोरक्ष है? उसका भाव गौरक्ष्य यानी पशुओंको पालना है तथा क्रयविक्रयरूप वणिक् कर्मका नाम वाणिज्य है ये तीनों वैश्यकर्म हैं अर्थात् वैश्यजातिके स्वाभाविक कर्म हैं। वैसे ही शूद्रका भी? परिचर्यात्मक अर्थात् सेवारूप कर्म? स्वाभाविक है। जातिके उद्देश्यसे कहे हुए इन कर्मोंका भलीप्रकार अनुष्ठान किये जानेपर स्वर्गकी प्राप्तिरूप स्वाभाविक फल होता है। क्योंकि अपने कर्मोंमें तत्पर हुए वर्णाश्रमावलम्बी मरकर? परलोकमें कर्मोंका फल भोगकर? बचे हुए कर्मफलके अनुसार श्रेष्ठ देश? काल? जाति? कुल? धर्म? आयु? विद्या? आचार? धन? सुख और मेधा आदिसे युक्त? जन्म ग्रहण करते हैं इत्यादि स्मृतिवचन हैं और पुराणमें भी वर्णाश्रमियोंके लिये अलगअलग लोकप्राप्तिरूप फलभेद बतलाया गया है।

ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परंतप।

कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः।।१८.४१।।

श्री कृष्ण गीता में स्पष्ट करते हैं वर्ण व्यवस्था गुण कर्म स्वभाव आधार विभक्त की गई है जो समाज की व्यवस्था को संचालित करने के लिए बनाई गई है फिर कई लेखक विचारक करते हैं जब व्यवस्था गुण कर्म आधार पर विभक्त थी हमारे साथ इतना अत्याचार क्यों है इसके कई कारण हैं पहला महाभारत के युद्व के उपरांत भारतीय समाज जड़ अवस्था हो गया था क्योंकि महाभारत युद्ध कारण सभ्यता संस्कृति का इतना विनाश हुआ की महाभारत युद्ध के बाद प्राचीन को व्यवस्था स्थापित करना बहुत कठिन हो गया कलिकाल के प्रभाव के कारण जो व्यवस्थाएं थी उसमें विकृति आने लगी लोग शस्त्रों को व्याख्या अपने अपने ढंग करने लग गए बड़े पैमाने पर धर्म ग्रंथों में मिलवाट करना शुरू कर दिया गया जिसके कारण प्राचीन व्यवस्था ध्वस्त हो गई केंद्रीय नेतृत्व की पकड़ कमजोर होती गई भारत देश छोटे छोटे राज्यों विभाजित हो गया है उस संक्रमण काल में लोग लोग नई मान्यताएं अंधविश्वास प्रचलित होते गए उस समय कापालिक और तंत्रिक मतो का वर्चस्व बढ़ने लगा जिसके कारण सनातनी समाज में छुआछूत जैसी कुरीतियां बढ़ने लग गई जिनके पास उस वक्त सत्ता थी वो अपने उलझे रहते हैं महाभारत युद्ध के 2000 हजार वर्ष उपरांत भारत में विदेशी आक्रमण शुरू हो गए उन आक्रमणो वजह समाज को नुक्सान हुआ आज से 28 सौ वर्ष पूर्व सिंकदर आक्रमण हुआ उसके आक्रमण कारण भारतीय समाज तहस नहस हो गया है उसके बाद आचार्य चाणक्य भारत को एकजुट किया है फिर केंद्रीकृत प्रणाली विकसित की थी जिसके कारण भारत की पुनः सुदृढ़ हुआ फिर से भारत अखंड हुआ उस कालखंड में गौतम बुद्ध हुए उन्होंने इस व्यवस्था खिलाफ आवाज उठाई उन्होंने इस व्यवस्था को सिरे से नाकार दिया गौतम बुद्ध के महापरायण के बाद उनके शिष्यों ने गौतम बुद्ध विचारों आधार पर बौद्ध धर्म की स्थापना की थी सनातनी समाज की इन कुरूतियो पीड़ित था वह बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म अपनाता गया इस बीच एक बड़ी घटना हुई कलिंगा के युद्ध में हुई हिंसा कारण सम्राट अशोक बहुत व्यथित हुए उनके मन में पश्चाताप भावना से भर गई उसी समय उनके दरबार में एक बौद्ध भिक्षु आए उन्होंने सम्राट अशोक को प्रभावित किया बौद्ध भिक्षु सम्राट से सम्राट अशोक इतने प्रभावित हुए उन्होंने शस्त्र त्यागकर अहिंसावादी हो गए और बौद्ध धर्म की दीक्षा को ग्रहण कर लिया है जब राजा मतांतरित हो जाता है प्रजा भी मतांतरित हों जाती है ।

सम्राट अशोक ने पूरे भारत समेत दक्षिण एशिया और पूर्वी एशिया में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया हजारों संख्या में स्तूप बनवाएं बौद्ध धर्म को बहुत बढ़ावा दिया जिसके कारण बौद्ध धर्म प्रभाव पूरे भारत समेत दक्षिण एशिया और पूर्वी एशिया में दिखाई देने लग गया सम्राट अशोक के निधन के बाद मौर्य साम्राज्य पतन होना शुरू हो गया है बौद्ध धर्म विकृति आनी शुरू हो गई बौद्ध धर्म बहुत अधिक अहिंसक था जिसके कारण सीमा सुरक्षा के लिए खतरा बढ़ता गया है बौद्ध धर्म के प्रभाव कारण सभी राजा सीमा सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा जैसे विषयों पर ध्यान नहीं दिया करते हैं अशोक की मृत्यु के बाद मगध साम्राज्य बहुत कमजोर हो चुका है उसी सम्राज्य में एक राजा वृहद्रथ हुए उनका भी ध्यान सीमा सुरक्षा पर नहीं था उनके सेनापति पुष्यमित्र शुंग को सूचना मिली ग्रीक शासक भारतवर्ष आक्रमण करने की योजना बना रहे हैं

इसके कारण सेनानायक पुष्यमित्र शुंग बहुत व्यथित थे पुष्यमित्र शुंग जो कि बृहद्रथ का सेनानायक था, इस बात से व्यथित था कि एक ओर शत्रु आक्रमण के लिए आगे बढ़ा चला आ रहा है और दूसरी ओर उसका सम्राट किसी भी प्रकार की कोई सक्रियता नहींपुष्यमित्र ने अपने स्तर पर प्रयास प्रारम्भ किया। उसे अपने गुप्तचरों से शीघ्र ही यह सूचना मिली कि ग्रीक सैनिक बौद्ध भिक्षुओं के वेश में मठों में छुपे हुए हैं और कुछ बौद्ध धर्मगुरु भी उनका सहयोग कर रहे हैं। इस सूचना से व्यथित होकर पुष्यमित्र ने बौद्ध मठों की तलाशी लेने की अनुमति माँगी, किन्तु बृहद्रथ इसके लिए तैयार नहीं हुआ।

फिर भी पुष्यमित्र ने अपने स्तर पर कार्यवाही की। इस कार्यवाही के दौरान पुष्यमित्र और उसके सैनिकों की मुठभेड़ मठों में छिपे शत्रुओं के सैनिकों से हुई। कई शत्रु सैनिक मृत्यु के घाट उतार दिए गए। बृहद्रथ, पुष्यमित्र की इस कार्यवाही से रुष्ट हो गया। वह पुष्यमित्र से भिड़ गया।

एक ओर शत्रु भारत विजय का कुस्वप्न लिए बढ़ रहा था और यहाँ भारतवर्ष का सम्राट अपनी सीमाओं की सुरक्षा में लगे सेनानायक से संघर्ष में लगा हुआ है। अंततः सम्राट और सेनानायक के संघर्ष में सम्राट मृत्यु को प्राप्त होता है। सेना पुष्यमित्र के प्रति अनुरक्त थी। पुष्यमित्र शुंग को राजा घोषित कर दिया गया।

राजा बनने के तुरंत बाद पुष्यमित्र शुंग ने अपंग साम्राज्य को पुनर्व्यवस्थित करने के लिए तमाम सुधार कार्य किए। उसने भारतवर्ष की सीमाओं की ओर बढ़ रहे ग्रीक आक्रांताओं को खदेड़ दिया और भारतवर्ष से ग्रीक सेना का पूरी तरह से अंत कर दिया।

इस प्रकार पुष्यमित्र शुंग ने पुनः एक नए अखंड भारत की नींव रखी। एक ऐसे अखंड भारतवर्ष की जहाँ वैदिक सनातन धर्म अपनी मूल महानता की ओर लौटने लगा। बौद्ध पंथ की ओर जा चुके हिन्दू पुनः सनातन धर्म की शरण में लौट आए।

पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल में वैदिक शिक्षा अपने चरम पर पहुँच गई। उसने राष्ट्र निर्माण के तत्वों में सनातन धर्म के महत्व को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। ऐसा कहा जाता है कि पुष्यमित्र के शासनकाल में मगध साम्राज्य के लगभग सभी निवासियों तक वैदिक शिक्षा की पहुँच थी। इसी का परिणाम था कि भारतवर्ष पुनः अपनी सनातन महानता को प्राप्त करने लगा था।

मौर्य साम्राज्य के शिथिल हो जाने के कारण केंद्रीय नियंत्रण में भारी कमी आ गई, जिससे मगध साम्राज्य के कई हिस्सों में सामन्तीकरण की प्रवृत्ति प्रबल होती जा रही थी। पुष्यमित्र ने शासक बनने के बाद शासन-व्यवस्था की इस दुर्बलता को दुरुस्त करने का कार्य किया गया।

पुष्यमित्र के शासनकाल में राज्यपाल और सह-शासक नियुक्त करने की व्यवस्था प्रारम्भ हुई। शासन की सबसे सूक्ष्म इकाई के रूप में ग्रामों का विकास किया गया। इस प्रकार पुष्यमित्र ने न केवल सनातन धर्म की स्थापना की अपितु शासन पद्धति को सुव्यवस्थित करने का कार्य भी भली-भाँति किया। यही कारण था कि पुष्यमित्र का साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में बरार की दक्षिणतम सीमा तक और पश्चिम में सियालकोट से लेकर पूर्व में मगध तक विस्तृत था। पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण अवश्य था, किन्तु कट्टर नहींएक ब्राह्मण शासक होने का यह अर्थ बिलकुल भी नहीं है कि वह शासक कट्टर है। यदि पुष्यमित्र कट्टर प्रवृत्ति का होता तब स्वयं उसकी सेना उसके विरुद्ध हो जाती, जिसका कहीं भी कोई उल्लेख नहीं है।

पुष्यमित्र शुंग के विषय में एक मार्क्सवादी इतिहासकार गार्गी चक्रवर्ती ने एजेंडा बनाया कि वह कट्टरपंथी ब्राह्मण था। यह सर्वविदित है कि वामपंथी और मार्क्सवादी भारतीय वर्ण-व्यवस्था और विशेषकर ब्राह्मणों के भयंकर विरोधी हैं। ऐसे में इनसे यह आशा नहीं की जा सकती है कि ये किसी ब्राह्मण शासक का निष्पक्ष चरित्र चित्रण करेंगे। गार्गी किस प्रकार की इतिहासकार हैं, इसका पता इस बात से चलता है कि उन्हें दिव्यावदान को आधार बनाकर पुष्यमित्र को कट्टर बताया है।

अब बात करते हैं दिव्यावदान की। दिव्यावदान का अर्थ है, दिव्य आख्यान। आख्यान को अंग्रेजी में नैरेटिव कहा जाता है। इसका तात्पर्य है कि दिव्यावदान एक नैरेटिव है, जो बौद्धों के महान चरित्र-चित्रण का एक माध्यम था।

बौद्ध पंथ में अवदान साहित्य का अर्थ ही है, किसी भी व्यक्ति का कथाओं के माध्यम से महान चरित्र-चित्रण। अब यह विचारणीय है कि यदि किसी नैरेटिव के माध्यम से बौद्धों का चरित्र-चित्रण सकारात्मक रूप में किया जाएगा तो नकारात्मक कौन होगा? निश्चित रूप से वही व्यक्ति जिसका बौद्धों के साथ संघर्ष हुआ है। वह व्यक्ति है पुष्यमित्र शुंग। नैरेटिव का अर्थ ही होता है किसी व्यक्ति या संगठन के पक्ष में अथवा विपक्ष में विचारों का निर्माण करना। पुष्यमित्र का बौद्धों के साथ संघर्ष कितना सत्य है, इस विषय में आगे चर्चा की जा रही है।

अशोक के शासनकाल से ही बौद्धों को राज्य का समर्थन प्राप्त होता रहा और इस समर्थन की सहायता से बौद्ध पूरे भारतवर्ष में लगातार बढ़ते चले गए। बृहद्रथ के शासनकाल तक यह पंथ-परिवर्तन चलता रहा, किन्तु पुष्यमित्र शुंग के राजगद्दी में बैठने के बाद बौद्धों के इस विस्तार में अंकुश लग गया। इसी प्रतिबन्ध से बौखलाए बौद्धों और पुष्यमित्र के मध्य संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई।

पुष्यमित्र का अपराध ही यही है कि वह एक महान हिन्दू सम्राट था। उसमें भी ब्राह्मण और सबसे बड़ी बात कि वह सनातन धर्म का एक निष्ठावान अनुयायी था। अब यह आपको तय करना है कि आप किसे अपना नायक स्वीकार करते हैं। उन मुगलों को जिन्होंने हमारे मंदिर तोड़े, हमारी महिलाओं के साथ बलात्कार किया, भयंकर लूट-पाट मचाई अथवा उस पुष्यमित्र को जिसने क्षीण हो रहे धर्म को पुनर्जीवित किया। पुष्यमित्र शुंग के प्रयास के कारण सनातन धर्म पुनः स्थापित हो गया है फिर बौद्धो का प्रभाव समाप्त नहीं हुआ उनका प्रभाव समाज बना रहा है पुष्यमित्र शुंग के बाद महान गुप्त वंश की स्थापना हुई है गुप्त राजाओं ने भागवत धर्म को बढ़ावा दिया सनातन धर्म की पुनः स्थापना बहुत अहम भूमिका निभाई इन महान वंशो के बाद भी बौद्ध धर्म का प्रभाव बना रहा इसी काल में आदि शंकराचार्य जी हुए उन्होंने अद्वैत वेदांत का सिद्धांत दिया बौद्धो को शास्त्रार्थ में पराजित किया वैदिक धर्म की पुनः स्थापित किया है और चार मठो स्थापना की सनातन धर्म की विजय पताका लहराने लग गई उस वक्त तक सबकुछ ठीक था उसके बाद महान राजाओं का युग समाप्त हो गया फिर से केंद्रीकृत प्रणाली कमजोर होती गई भारत फिर से छोटे छोटे राज्यों में विभक्त होता गया फिर से भारतीय समाज में कुरूतियो ने अपना स्थान ग्रहण करने लग गई क्योंकि उस वक्त हमारे ऋषियों मुनियों ने और ब्रह्माण परंपरा को आगे बढ़ाने वाले लोग वर्ण व्यवस्था की स्पष्ट व्याख्या नहीं करने का प्रयास किया जिसके कारण छुआछूत जैसी विकृति हमारे समाज आचार व्यवहार का हिस्सा बनने लग गई हजारों संख्या जाति उपजातिया आस्तित्व आने लग गई क्योंकि हर जाति अपने को श्रेष्ठ समझने लगी अपने नीचे एक उपजाति बनाने लग गई जिसके कारण जिस जाति को अवसर मिला अपने नीचे वाली जाति का शोषण करना शुरू कर दिया यह प्रक्रिया लगातार चलती रही उसी वक्त भारत में इस्लामी आक्रमण शुरू हो गए भारतीय राज्य छोटे राज्यों में विभक्त थे उन राज्यों के राजा महाराजाओ को अपने स्वार्थ आलवा किसी से कोई मतलब नहीं था जिसका लाभ इस्लामी आक्रमणकारी उठाते गए 800 वर्षों तक राज्य किया इसी बीच भारत में एक भक्ति आंदोलन शुरू हुआ जिसने हिंदू समाज को इस्लामी आक्रमता से बचाने सफल हुआ फिर भी जो जातियां शोषित थी उन जातियों ने तलवार डरकर या कुछ सुफीवाद प्रभाव में आकर इस्लाम स्वीकार करने लग गई भक्ति आंदोलन ने सुफीवाद प्रभाव कम करने अहम भूमिका निभाई इसी काल खंड मे महान विचारक संत हुए उसमें मीराबाई रैदास कबीर नाथ संप्रदाय और तुलसीदास की अहम भूमिका रहीं जिसके कारण इस मुश्किल वक्त में सनातन धर्म बचा रहा है भक्ति आंदोलन कारण हिंदू समाज में बौद्धिक जड़ता आ गई वो भाग्यवादी होता गया है उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था कौन राजा है जिसके कारण समाज अपने अस्तित्व को भूल गया अपास में लड़ता रहा है जिसका फायदा विदेशी आक्रमणकारी उठाते रहे जाति विभाजन छुआछूत जैसी विकृति इस कालखंड में सबसे ज्यादा फलने फूलने का अवसर मिला जिसका लाभ अंग्रेज उठाए उन्होंने हिंदू समाज को आपस लड़ाना शुरू कर दिया जाति विभाजन बहुत ज्यादा था जिसका फायदा उठाया है और अग्रेजो ने सुधारवाद के नाम पर प्राचीन शिक्षा पद्धति को नष्ट करने का प्रयास किया और अंग्रेजी शिक्षा पद्धति लागू कर दिया उन्होंने अपने मन से वैदिक ग्रंथों व्याख्या की और इस विभाजन करने इस विभाजन को बढ़ाने के लिए आर्य आक्रमण सिद्धांत द्रविड़ और वनवासी मूल निवासी हैं आर्य विदेशी है जो सिद्धान्त अप्रमाणिक था फिर भी समाज में विभाजन उत्पन्न करने का प्रयास किया अग्रेज एक काम कर अच्छा कर गए भारत छोटे राज्यों में विभक्त था उस भारत को फिर से केंद्रीकृत प्रणाली स्थापित किया जिसके कारण इस्लामी वर्चस्व खत्म हो गया है फिर भी हिंदू समाज जाति विभाजन था उस विभाजन को समाप्त करने के प्रयास इसी 200 वर्ष में शुरू हुए महर्षि दयानंद सरस्वती वीर सावरकर महात्मा गांधी भीम राव अम्बेडकर और परम पूज्यनीय गुरूजी जी परम पूज्यनीय बालासाहेब देवरस जी नाथ संप्रदाय के अवैधनाथ जी ने सार्थक प्रयास किया है यह प्रयास बड़े पूण्य मन से किया गया है इन सुधारवादी प्रयास को सफ़लता इसलिए नहीं मिली क्योंकि प्रयास में सनातन धर्म के मूल वर्ण व्यवस्था पर प्रहार करने का प्रयास किया गया वर्ण व्यवस्था को जाति से जोड़ने का प्रयास किया इसके कारण समाज में विभाजन की खाई और बढ़ गई कुछ जातियां ब्राह्मणों को अपना शत्रु मानने लगी है और वो जातियों में हीन भावना से इतना ग्रस्त हो गई उन्हें इस्लामियों का साथ देने में कोई समास्या नई हुई जोगेंद्र नाथ मंडल ने अपने साथ 2 करोड़ अनुसूचित जाति के लोग पाकिस्तान बनाने में अहम भूमिका निभाई वह पाकिस्तान का कानून मंत्री बन गए बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी सनातन धर्म भारतीय संस्कृति के विभाजन को रोकने के लिए आरक्षण की व्यवस्था शुरू की जिसका परिणाम अच्छा रहा है फिर भी डॉ अम्बेडकर जी ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया जिसके कारण हिंदू समाज में जो एकता स्थापित हो सकती है वह नहीं हो पाई उसके बाद 1989 के बाद जाति आधारित राजनैतिक दल और संगठन खड़े होना शुरू हो गए मंडल कमाडल की राजनीति शुरू हो गई जाति भारतीय राजनीति के विमर्श अभिन्न अंग बनता गया जिसे जातिवादी नेताओं समाजिक न्याय नाम दिया सवर्ण जातियों के खिलाफ ओबीसी अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति मन में घृणा भावना को बढ़ाने का प्रयास किया है सनातन धर्म में सुधारवादी आंदोलन भी उसी तरह चल रहे थे इसी बीच राम मंदिर आंदोलन आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत हुई है हिंदू समाज में एकता आने लगी गई बड़े पैमाने पर समाजिक आर्थिक स्थिति बदलाव भी आया है फिर इन सुधारवादी आंदोलन के कारण सनातन धर्म के मूल पर बहुत आघात पहुंचाया गया क्योंकि इन आंदोलनों के नाम वर्ण व्यवस्था पर लगातार हमले होते रह गए वर्ण व्यवस्था जाति व्यवस्था एक साथ जोड़कर देखा जाने लग है जितने राष्ट्रवादी विचारक लेखक और हिंदू समाजिक संस्कृतिक संगठन सभी वर्ण व्यवस्था जाति व्यवस्था समाप्त करने की वकालत करते हैं हिंदू समाज में एक नये पंथ के लिए रास्ता खोलते गए क्योंकि जब प्राकृतिक व्यवस्था में परिवर्तन करने का प्रयास करेंगे विकल्प नहीं देंगे जिसका दुष्प्रभाव समाज में दिखाई देता है इसलिए सुधारवाद के नाम वर्ण व्यवस्था पर प्रहार बंद होना चाहिए क्योंकि वर्ण व्यवस्था कारण सनातन धर्म की कुल वंश परंपरा सुरक्षित है वर्णसंकरता की समास्या पर रोक लगी है जो वर्ण व्यवस्था समाप्त हो गई लोग वैदिक धर्म के नियमों का पालन नहीं करेंगे वैदिक कर्मकाण्ड का पालन नहीं करेंगे अपने पूर्वजों का श्राद्ध तर्पण नहीं करेंगे पिंडदान न होने के कारण लोगों को मोक्ष प्राप्त नहीं होगा पूरी व्यवस्था चरमरा जाएगी आसुरी शक्तियां बहुत शक्तिशाली होती जाएगी वैदिक धर्म हास होता जाएगा जो ऐसा हो गया उसके परिणाम भविष्य समाज को भुगतना होगा इसलिए वर्ण व्यवस्था कभी विरोध नहीं होना चाहिए छुआछूत जैसी विकृतियों विरोध जायज है वह समाप्त करना हम लोग नैतिक समाजिक कर्तव्य है इस कर्तव्य पालन हर हिन्दू को करना चाहिए छुआछूत अस्पृश्यता निवारण के नाम पर वर्ण व्यवस्था को खत्म करने की बात बहुत ख़तरनाक है जाति व्यवस्था के साथ समयकाल परिस्थिति अनुसार बदलाव किया जा सकता है वर्ण व्यवस्था जाति व्यवस्था को समाप्त करने की बात अनुचित है बहुत घातक भी है जब वर्ण व्यवस्था को खत्म करने की बात जिसने भी की वह समाप्त हो गया वर्ण व्यवस्था समाप्त नहीं हुई चाहे बुद्ध हो या महर्षि दयानंद सरस्वती जी हो या और कोई हो समाप्त हो गया या वर्ण व्यवस्था को मानना पड़ा ,वर्ण व्यवस्था करोड़ वर्ष से चली आ रही है इसके पहले कई मन्वन्तर बीत चुके हैं आज से कई गुना अधिक संपन्न और विकसित सभ्यताएं आई और नष्ट हो गई न परम ब्रह्म नाम मिटा न वेदों उपनिषदों में कोई बदलाव हुआ ऋषियों ने समय अनुरूप वेदांत दर्शन के सिद्धांत प्रतिपादित किए और वेदों का भाष्य किया उन्होंने कभी सनातन धर्म के मूल पर प्रहार नहीं किया हमारे ऋषियों मुनियों से अधिक आज का मानव अपने को बुद्धिमान मान सकता है । क्योंकि हमारे ऋषि परंपरा ऐसे ऋषि हुए जो त्रिकालदर्शी थे उसमें भगवान विष्णु के अवतार महर्षि कपिल दो कल्प देख सकते हैं 1 कल्प की आयु 8 अरब 64 वर्ष होती है 2 कल्प को मिला दिया जाए 12 अरब, 96 करोड़ वर्ष का होता है अब सोच लिजिए कितनी बार सृष्टि निर्माण हुआ होगा कितनी बार प्रलय हुई होगी हर मन्वंतर अंत में भी जलप्रलय होती है उनसे अधिक विद्वान हम लोग कैसे हो सकते है अरबों वर्षों से चली आ रही है व्यवस्था समाप्त करने की बात कैसे कर सकते हैं इसलिए एसी बात करने से सबको बचना चाहिए क्योंकि परम ब्रह्म से बड़ा कोई नहीं है उनकी इच्छा बिना पत्ता भी नहीं हिल नही सकता है फिर हम कौन होते हैं जो उनकी बनाईं व्यवस्था बदलने वाले जो लोग सोचते श्री हरि के बनाये गए प्राकृतिक सिद्धांत और व्यवस्थाओं को बदल देंगे उनसे अधिक मूढ़ इस जगत कोई नहीं हो सकता है । जो लोग प्राकृतिक व्यवस्था बदलने का प्रयास करते उन्हें समय आने पर श्री हरि स्वयं दंड भी देते हैं ।

जय श्रीकृष्ण
दीपक कुमार द्विवेदी

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