जाने कितनी शताब्दियों से नदियां धरती की सतह पर बहती रही हैं। इनके किनारों पर विलक्षण सभ्यताएं अपने विकास के चरम पर पहुंची। घाट बने, शिवालों का निर्माण हुआ। सूर्योदय में मंत्रोच्चार और संध्या में बजते घंटनाद के बीच सदियों से प्रवाहमान नदियां संस्कृति की वाहक बनती गई। हमने नदियों को कुछ न दिया लेकिन उन्होंने हमें सदियों तक पाला। एक ऐसी ही नदी रुष्ट होकर धरती के गर्भ में जा छुपी। वो ज्ञान की नदी थी, विलुप्त होने का प्रश्न ही नहीं था। लेकिन अब हम जानते हैं कि सरस्वती को लगभग खोज ही लिया गया है। सन 2013 में केंद्र सरकार की ओर से विस्तृत शोध शुरू किया गया, जो अब तक जारी है।
इसरो के अनुसार नदीतमा (सरस्वती) आज भी हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के क्षेत्रों में भूमिगत होकर प्रवाहमान है। हालांकि आज का विषय थोड़ा हटकर है। ये समझ लीजिये कि भूमिगत ‘#सरस्वतीनदी’ के बारे में पड़ताल है। ‘ऐतिहासिक तथ्य जैसे दिखाई देते हैं, दरअसल वैसे होते नहीं। उनमे छुपे गूढ़ संकेतों को समझना आवश्यक है।’ आठवीं शताब्दी से लेकर चौदहवीं शताब्दी के बीच राजा भोज ने धारा नगरी में एक संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना की। सरस्वती के वरदपुत्र महाराजा भोज की तपस्या से प्रसन्न हो कर माँ सरस्वती ने स्वयं प्रकट हो कर दर्शन दिए थे। ये ज्ञात ऐतिहासिक तथ्य है। अब इसमें कोई वैज्ञानिकता भरा प्रश्न कर लें तो आपका उत्तर क्या होगा। भोज को सरस्वती का ‘इष्ट’ था ये पूर्णतः सत्य है लेकिन एक सत्य और भी है, जिस पर किसी का ध्यान ही नहीं है। धारा नगरी में मां सरस्वती प्रकट हुई थी, इसका वैज्ञानिक स्पष्टीकरण ये है कि महाराजा भोज ने सरस्वती नदी की भूमिगत ‘आंव’ खोज ली थी। इस पवित्र धारा को खोज लेने के बाद उन्होंने यहाँ एक ‘सरस्वती कूप’ का निर्माण करवाया। महाराजा भोज की ‘वॉटर इंजीनियरिंग’ का नमूना आज भी धार के तालाबों में देखा जा सकता है। सरस्वती कूप, ज्ञान कुंड, वेल ऑफ़ विज़्डम एक ही बात है। ये जानकारी आपको गूगल पर मुश्किल से मिलेगी कि ‘ वेल ऑफ़ विज़्डम’ दुनिया की चुनिंदा जगहों पर पाए गए हैं। जिनका मीठा पानी पीकर स्वर्ग की देवी ज्ञान का अभीष्ट प्रदान करती है। पश्चिम सरस्वती को ‘स्वर्ग की देवी’ मानता है जो बुद्धि प्रदान करती है और हम भी सरस्वती को #ब्रम्ह्लोक से प्रकट हुआ मानते हैं। कुछ ख़ास क्षेत्रों में ही ऐसे ‘सरस्वती कूप’ पाए गए हैं।
भारत में धार, प्रयागराज में अकबर के किले में कैद और वाराणसी में भी एक जगह इसके होने के संकेत मिले हैं। प्रयागराज वाले सरस्वती कूप का 2013 में भारतीय सेना ने नवीनीकरण करवाया था। तत्कालीन सेंट्रल कमांड के जनरल अफसर कमांडिंग इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चैत के प्रयासों से अब कूप के पानी का शोध सेना द्वारा किया जा रहा है। काशी के बारे में अपुष्ट जानकारी है कि #सरस्वतीउद्यान नामक क्षेत्र में भी कहीं एक ‘सरस्वती कूप’ भूमिगत है। यहीं पर सरस्वती की एक मूर्ति भी है। जहाँ भी ये भूमिगत जलधाराएं मिली हैं, उन्हें ‘सरस्वती कूप’ का नाम क्यों दिया गया है। जिस नदी के किनारों पर ऋषि-मुनियों ने इस विलक्षण नदी का जल पीकर वेद रच डाले, उसमे कुछ तो विशेष होगा ही। प्रयागराज में सरस्वती कूप का जल बहुत उम्दा स्तर का पाया गया है। सवाल ये है कि सरस्वती कूप का निर्माण अकबर क्यों करवाता। स्पष्ट है कि उस किले को कब्जिया लिया गया था। भोजशाला हिन्दू जीवन दर्शन का सबसे बड़ा अध्यन एवं प्रचार प्रसार का केंद्र भी था। यहाँ देश-विदेश से लाखों विद्यार्थी शिक्षण के लिए आते थे। उन सभी को इस सरस्वती कूप का जल पीने का सौभाग्य मिला था। यहाँ 1400 आचार्य ज्ञान का दीप जलाते थे। भवभूती, माघ, बाणभट्ट, कालिदास, मानतुंग, भास्करभट्ट, धनपाल, बोद्ध संत बन्स्वाल, समुन्द्र घोष आदि विश्व विख्यात विद्वान् माने जाते हैं । महाराजा भोज की मृत्यु के बाद भी यहाँ अध्यापन का कार्य 200 वर्षो तक निरंतर जारी रहा। फिर सन 1305 में #अलाउद्दीनखिलजी ने आक्रमण कर यहाँ जल रहे ज्ञान के दीपक हमेशा के लिए बुझा दिए। आप सोच रहे होंगे धार का ‘सरस्वती कूप’ कहाँ गया। वो यहीं है।
भोजशाला परिसर के बाहर एक #मजहबीस्थल में कैद है ‘#सरस्वतीकूप’। अब इसे #अकलकुइयां के नाम से जाना जाता है। आज भी सरस्वती कूप भरपूर पानी दे रहा है। हालांकि ये पानी केवल “अपने मजहबी” लोगों को दिया जा रहा है। यदि मैं नाम लूंगा तो ये पोस्ट विवादित हो जाएगी और आईडी रिपोर्ट होने लगेगी। समझदार को इशारा काफी है। धार नगरी को अपने ‘गौरव’ से काट दिया गया है। उनकी सोच केवल भोजशाला और #वाग्देवीकीप्रतिमा लाने तक सीमित कर दी गई है। वे इस बात पर गौरव करना भूल चुके हैं कि कभी यहाँ संपूर्ण विश्व से विद्यार्थी आते थे। इस सरस्वती कूप को भी उन्होंने भूला दिया है। जिन्हे याद है वे भी कुछ नहीं कर सकते। इस सरस्वती कूप का वैज्ञानिक शोध आवश्यक है, जैसा कि सेना प्रयागराज में करवा रही है। भोजशाला में बीजमन्त्रों को विश्व ने लगभग खो ही दिया है लेकिन ये ‘सरस्वती कूप’ अब भी चैतन्य है। क्या इसके बारे में सरकार कुछ करेगी। ‘यह दिखला रही है कि कुंडलनी में जिस प्रकार प्रज्ञा प्रवाहित है उसी प्रकार सरस्वती भूलोक में गंगा और यमुना के संगम से भी मिलती है विश्व अणु से प्रवाहित जल धाराओं को चित्र में देखा जा सकता है।’ फोटो 1 – ये यंत्र उस जगह बना था, जहाँ पर #भोजशालाकासरस्वतीकूप है। हालांकि अब इसे मिटा दिया गया है। ये फोटो कई साल पहले लिया गया था। फोटो 2 -प्रयागराजकासरस्वतीकूप साभार : विपुल विजय रेगे दिनांक – ०१.०२.२०२३