ॐ
किसी धर्म का प्रवाह अविच्छिन्न गति से समान सदा प्रवाहित होता, उसकी गति रोकने अनेक प्रतिबंध समय -समय पर उत्पन्न होते रहते हैं परन्तु शक्तिशाली धर्म कभी इन प्रतिबंधो की परवाह नहीं करता। यादि उस धर्म में जीवनी शक्ति की कमी नहीं होती है, तो वह इन विभिन्न रुकावटो के दूर करने का सर्वथा समर्थ होता है। इस कथन की सत्यता का प्रमाण के विकास का इतिहास है। वैदिक धर्म की गति को अवरोध करनेवाले हैं अनेक विघ्न समय समय पर आते रहे, परन्तु इस धर्म में इतनी जीवट है, इतनी शक्तिमता है कि वह इन विघ्नो के प्रवाह दूर हटाता हुआ आज भी सशक्त है – सभ्य संसार के धर्मो के सामने अपनी महनीयता के कारण मस्तक उपर उठाए हुए हैं ।
मौर्य- काल
वैदिक धर्म का बौद्ध धर्म से तथा जैन धर्म से संघर्ष सदा होता काल गणना के हिसाब जैन धर्म का उदय बौद्ध धर्म से पूर्व हुआ है, परन्तु प्रभावशालिता तथा व्यापकता से वह घटकर ही रहा । अतः वैदिक धर्म का संघर्ष बौद्ध धर्म के साथ ही विशेष रूप से होता रहा उत्पत्ति काल में तो यह संघर्ष अत्यंत साधारण कोटि का ही था। गौतम बुद्ध स्वयं वैदिक धर्म के अनुयायी थे । उन्होंने अपने आचार प्रधान धर्म का उपदेश उपनिषदों की भित्ति पर ही अवलम्बित रखा है। बौद्ध धर्म तथा दर्शन की मूल भित्ति उपनिषद ही है । कर्मकाण्ड की अनुपादेयता , प्रपंच के मूल अविद्या के कारण मानना, तृष्णा के उच्छेद से रागद्वेष आदि। मुक्ति पाना का सिद्धांत की व्यापकता आदि समान्य सिद्धांत दोनों ही उपलब्ध होते हैं । असत से सत की उत्पत्ति का बौद्ध सिद्धांत भी छान्दोग्य निर्दिष्ट है परंतु। परिस्थिति क्यों जान मेरा कल गौतम बुद्ध ने अपने धर्म में अनेक ऐसी नवीन बातें सन्निविष्ट करती जिनके लिए वेद में धार मिलता ही नहीं। श्रुति को अप्रमाण उन्होंने आत्मवाद अवहेलना तथा यज्ञ का और तिरस्कार कर दिया विक्रम के पूर्व चतुर्थ शतक में मौर्यों के समय बौद्ध धर्म को राजश्रय प्राप्त हो गया बस क्या था? इस धर्म की दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति होने लगी। अशोक प्रियदर्शी ने इसके विपुल प्रचार के लिए सारी शक्तियां खर्च कर डाली उसकी दृष्टि समन्वयात्मक , वस श्रमणो के समान ब्राह्मणो प्रति भी उदारभाव रखता था । परन्तु फिर भी बौद्ध भी बौद्ध धर्म ने उसके उत्तराधिकारियों के मैं वैदिक धर्म को पैर तले कुचलने का उद्योग किया। वही हुआ जो धार्मिक संघर्ष के युग में हुआ करता है । क्रिया के बाद प्रतिक्रिया जनमति ही है ।
शुंग काल में वैदिक धर्म का उदय
मौर्यों के पतन के पीछे ब्राह्मणवंशी पुष्यमित्र शुंग ने शुंग वंश की स्थापना की (द्वितीय शतक) और वैदिक के अतीत गौरव को जाम्रत करने के लिए उसमें अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए कालिदास के मालविकाग्निनमित्र कान्हा या किसी पुष्यमित्र का जेष्ठ तनय महाराज अग्निमित्र है। अयोध्या के शिलालेख में स्पष्ट है कि पुष्यमित्र ने दो बार अश्वमेध का विधान किया तथा( द्विरश्वमेधयाजिनः) अश्वमेघ वैदिक धर्म के पुनरुत्थान का प्रतीक मात्र था। मनु का वह ग्रंथ जो दवा की की दवा माना जाता है मनुर्यथवतत् तथा भेषजं भेषजतायाः अर्थात मनुस्मृति इसी वैदिक धर्म के जागृतिकाल की महत्वपूर्ण रचना है ।
जय श्री कृष्ण
दीपक कुमार द्विवेदी जी