आज़ादी महंगे दामों में मिली है, कुछ ज़िम्मेदारियां हमारी भी हैं!

अमरदीप जौली

बात आजादी के पहले की है। कोहिमा और इम्फाल के मां पहाड़ी प्रदेश में 70 वर्ष की एक बूढ़ी मां और उनका बेटा रहते थे। उन्हीं दिनों नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने हर घर से एक व्यक्ति के सेना में भर्ती होने की अपील की, ताकि देश को अंग्रेजी शासन से मुक्ति दिलाई जा सके। बूढ़ी मां की इच्छा थी कि उनका बेटा भी देश के काम आए। मां की इच्छा को जानते हुए पुत्र ने खुशी- खुशी सेना में भर्ती होने की ठानी। अगले ही दिन वह युवक नेताजी की फौज में भर्ती होने के लिए रंगरूटों की पहली पंक्ति में खड़ा था। कर्नल के पूछने पर उसने अपना नाम अर्जुन सिंह तथा आयु 20 वर्ष बताई। जब कर्नल को पता चला कि वह अपनी मां का इकलौता पुत्र है तो कर्नल ने उसे सेना में भर्ती करने से इंकार कर दिया, क्योंकि नेताजी की आज्ञा थी कि घर के अकेले युवक को भर्ती न किया जाए। उस युवक ने कर्नल से बहुत अनुनय- विनय किया कि वह उसे सेना में भर्ती कर लें परन्तु नेता जी की आज्ञा टाली नहीं जा सकती थी। निराश युवक घर लौट गया। पुत्र के सेना में भर्ती न होने से मां को बहुत दुख हुआ और इस दुख में वह परलोक सिधार गई। दूसरे दिन युवक फिर रंगरूटों की पंक्ति मे खड़ा हो गया। कर्नल को जब यह पता चला कि युवक को सेना में भर्ती न किए जाने के दुख में उनकी मां यह कह कर अपने प्राण त्याग दिए कि “मैं तो सिर्फ तुम्हारी मां हूं जबकि हम सब की माँ तो भारत माता है इसलिए बड़ी मां की सेवा में छोटी मां बाधा नही बनेगी।” तो कर्नल को बहुत दुख हुआ। उसने युवक की वीर माता को प्रणाम कर श्रद्धांजलि अर्पित की और युवक को सेना में कप्तान नियुक्त कर लिया। ऐसी माताओ और उनकी आज्ञा को मानकर भारत माता की सेवा में जीवन अर्पित करने वाले युवकों के कारण ही आज हम स्वतंत्र है।

साभार: श्री राम गोपाल जी

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