लक्ष्मी जी जब सागर मंथन में मिलीं और भगवान विष्णु से विवाह किया तो उन्हें सृष्टि की धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया! तो उन्होंने धन को बाँटने के लिए मुनीम कुबेर को बनाया! कुबेर कुछ कंजूस वृति के थे! वे धन बाँटते नहीं थे, स्वयं धन के भंडारी बन कर बैठ गए! माता लक्ष्मीजी परेशान हो गई! उनकी संतान को कृपा नहीं मिल रही थी! उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई! भगवान विष्णु ने उन्हें कहा, कि “तुम अपना मुनीम बदल लो!” माँ लक्ष्मी बोली, “यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं! उन्हें बुरा लगेगा!” तब भगवान विष्णु ने उन्हें श्री गणेशजी की दीर्घ और विशाल बुद्धि को प्रयोग करने की सलाह दी!
माँ लक्ष्मी ने श्री गणेशजी को “धन का बांटनेवाला” बनने को कहा! श्री गणेशजी ठहरे महा बुद्धिमान! वे बोले, “माँ, मैं जिसका भी नाम बताऊंगा, उस पर आप कृपा कर देना! कोई किंतु, परन्तु नहीं! माँ लक्ष्मी ने हाँ कर दी! अब श्री गणेशजी लोगों के सौभाग्य के विघ्न/रुकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे! कुबेर भंडारी ही बनकर रह गए! श्री गणेशजी पैसा देने वाले बन गए!
गणेशजी की दरियादिली देख, माँ लक्ष्मी ने अपने मानस पुत्र श्री गणेशजी को आशीर्वाद दिया कि जहाँ वे अपने पति नारायण के सँग ना हों, वहाँ उनका पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें! दीपावली आती है कार्तिक अमावस्या को! भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते हैं! वे जागते हैं ग्यारह दिन बाद, देव उठावनी एकादशी को! माँ लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने आना होता है शरद पूर्णिमा से दीवाली के बीच के पन्द्रह दिनों में तो वे संग ले आती हैं श्री गणेशजी को! इसलिए दीपावली को लक्ष्मी-गणेश की पूजा होती है!




