अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ, कित्थों क़बरां विच्चों बोल!

अमरदीप जौली

कुछ दिनों से भारत के मीडिया, सोशल मीडिया पर एक महिला पहलवान विनेश फोगाट की खबर छाई हुई है। भारत के हर वर्ग के लोगों ने इस घटना पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। संसद से लेकर सड़क तक खिलाड़ियों से लेकर अभिनेताओं तक, सब ने विनेश फोगाट को डिस्क्वालीफाई करने पर अपना दर्द ब्यान किया है। जायज भी है, भारत की एक बेटी के साथ अन्याय हो तो उसका प्रतिकार करना बनता है। मगर ठीक उसी समय जो भारत का ही हिस्सा रहे बांग्लादेश में जो हो रहा है, इस मौके पर पंजाबी की एक प्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम की एक कविता याद आ रही है:

अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ

कित्थों क़बरां विच्चों बोल

ते अज्ज किताब-ए-इश्क़ दा

कोई अगला वरका फोल

इक रोई सी धी पंजाब दी

तू लिख-लिख मारे वैन

अज्ज लक्खां धीयाँ रोंदियाँ

तैनू वारिस शाह नु कैन

उठ दर्दमंदां देआ दर्देया

उठ तक्क अपना पंजाब

अज्ज बेले लाशां बिछियाँ

ते लहू दी भरी चनाब

अमृता प्रीतम इस कविता में जो अपना दर्द ब्यान कर रही है, वह देश के विभाजन के समय की घटनाओं का है। वह कह रही है वारिस शाह को, कि “ऐ वारिस शाह! अपनी कब्र में से उठ और देख एक समय था जब पंजाब की एक बेटी जिसका नाम हीर था, तुमने उसका दर्द रो-रो कर कहा था। ऐ वारिस शाह! लेकिन आज इसी पंजाब की बेटियों की आबरू को लूटा जा रहा है, उनके साथ बलात्कार हो रहे हैं, उन्हें लाहौर की गलियों में नंगा दौड़ाया जा रहा है। उठ वारिस शाह अपनी कब्र में से और देख पंजाब की बेटियों का दर्द। आज भी वही देश के विभाजन का महीना चल रहा है। तब देश के दो हिस्से हुए थे पंजाब को काटकर पाकिस्तान बनाया गया और बंगाल को काटकर पूर्वी पाकिस्तान, जो बाद में बांग्लादेश बना। आज उन्हीं बंगाली बेटियों के साथ भी वही हो रहा है। शायद उन बंगाली बेटियों की चीखें किसी को सुनाई नहीं दे रहीं। इसीलिए आज U.N.O. से लेकर मानवाधिकारों के ठेकेदारों, लेखकों, चिंतकों, नेताओं से लेकर अभिनेताओं तक, सब चुप हैं। ये वो लोग हैं जो हमास से लेकर यूक्रेन तक, कबड्डी, कुश्ती सब पर बातें करते हैं लेकिन अब चुप हैं। और वह लाचार मासूम, बेटियां इस गूंगी चुप से सवाल पूछती हैं। लेकिन जवाब नहीं आएगा। शायद आज भी कोई अमृता प्रीतम ही इनका दर्द ब्यान कर सकती है कोई और नहीं।

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