अयोध्या में श्रीराम मन्दिर निर्माण उपरान्त और वर्तमान के चुनावी वातावरण में कुछ नेताओं द्वारा जिस तरह भगवान श्रीराम का विरोध किया जा रहा है और सनातन धर्म को गालियां दी जा रही हैं वह किसी को भी व्यथित कर सकती हैं। इसी तरह के पीडि़त मनोदशा वाले एक मित्र ने जब इस विषय को लेकर सवाल पूछा तो मीरा बाई और गोस्वामी तुलसीदास जी का प्रसंग मस्तिष्क में कौंध गया। विधवा होने के बाद कृष्ण भक्ति को लेकर मीरा के ससुराल वाले उसे परेशान करने लगे। कोई और सहारा न देख कर मीरा ने तुलसीजी को पत्र लिख अपनी व्यथा सुनाई और मार्गदर्शन मांगा –
स्वस्ति श्री तुलसी कुलभूषण दूषन हरन गोसाईं।
बारहिं बार प्रणाम करहु अब हरहूँ सोक समुदाई।।
घर के स्वजन हमारे जेते सबन्ह उपाधि बढ़ाई।
साधु संग अरु भजन करत माहिं देत कलेस महाई।।
मेरे माता-पिता के समह हरिभक्त सुखदाई।
हमको कहा उचित करिबो है सो लिखिए समझाई।।
अर्थात :- हे तुलसी दास जी मैं आपको बार-बार प्रणाम करती हूँ कि आप मेरा दु:ख दूर करें, मार्गदर्शन करें। मेरे पति भगवान को प्यारे हो गये हैं। साधु-सन्तों की सेवा और भगवत भजन में मेरे ससुराल वाले मुझे बहुत कष्ट देते हैं। मुझे श्रीकृष्ण से दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। मुझे भक्ति में सुख मिलता है जो मेरे सम्बन्धियों को रास नहीं आता। मैं क्या करूँ मुझे समझ में नहीं आ रहा है। आप मेरे माता-पिता समान हैं, मुझे राह दिखाएं। मीरा के इस पत्र को पढक़र तुलसीदास जी ने जबाब दिया-
जाके प्रिय न राम वैदेही।
सो नर तजिये कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेही।।
तज्यो पिता प्रह्लाद विभीषण बंधू भरत महतारी।
बलि गुरु तज्यो कंत ब्रज बनितन्हीं भए मुद मंगलकारी।।
अथार्त :- जिनके दिल में राम-सीया का निवास नहीं उसे परम दुश्मन के समान समझ कर उसका त्याग कर देना चाहिए, चाहे वो कितना भी प्रिय क्यों न हो। जैसे प्रह्लाद ने पिता हिरण्याकश्यपु, विभीषण ने रावण, भरत ने माता कैकेयी, राजा बलि ने गुरु शुक्राचार्य तथा ब्रज की गोपियों ने अपने पतियों का त्याग कर दिया।
इस महीने 16 अप्रैल को देश भर में मनाई गई रामनवमी को लेकर इंडी गठजोड़ के मुख्य घटक दल तृणमूल कांग्रेस की नेत्री व पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बैनर्जी ने अपने यहां लोगों को रामनवमी पर शोभायात्रा निकालने की अुमति नहीं दी। सुश्री बैनर्जी का कहना था कि शोभायात्रा से प्रदेश में दंगे फैल सकते हैं। इस निर्णय के खिलाफ बंगाल के हिन्दू कोलकाता उच्च न्यायालय गए तो न्यायालय ने हावड़ा में शोभायात्रा निकालने की अनुमति दे दी। न्यायाधीश जयसेन गुप्ता ने ये भी कहा कि ये शोभायात्रा उसी रास्ते से होकर निकलेगी जिस रास्ते से पिछले 15 सालों से निकलती है।
बता दें कि पिछले साल इसी क्षेत्र में शोभायात्रा के दौरान हावड़ा मैदान पर हिंसा हुई थी। इसके कारण बंगाल सरकार ने हिन्दुओं से कहा था कि वो शोभायात्रा के लिए अलग-अलग रास्तों का प्रयोग करें। हालाँकि हिन्दू संगठनों को ये नागवार गुजरा और उन्होंने न्यायालय से गुहार लगाई। न्यायालय ने फटकार लगाते हुए यह भी कहा कि अगर राज्य सरकार दो सौ शोभायात्रियों को सुरक्षा नहीं दे सकती तो उसे केन्द्रीय बलों का सहारा लेना चाहिए। दुर्भाग्य की बात है कि यात्रा की अनुमति व हिंसा की आशंका होने के बावजूद राज्य सरकार शोभायात्रा में शामिल लोगों को पूरी तरह सुरक्षा नहीं दे पाई क्योंकि केवल हावड़ा ही नहीं बल्कि मुर्शिदाबाद में भी जिहादी मानसिकता से ग्रसित दंगाईयों ने अपने घरों की छतों से पथराव कर शोभायात्रियों को अपना निशाना बनाया जिसमें कई श्रद्धालू घायल हो गए। अब ममता दीदी हिंसा का सारा दोष रामभक्तों पर ही मढ़ती दिख रही हैं। यह वही ममता हैं जो अपने सामने जय श्रीराम का नारा लगाने वालों को प्रति इतनी निर्मम हो गई थीं कि उनको देख लेने तक की धमकी दे डाली। बंगाल की यह शेरनी दुर्गा पूजा के दौरान केवल इसलिए माँ दुर्गा की प्रतिमाओं को तिरपाल से ढांपती रही हैं ताकि इनके दर्शन से ताजिया निकालने वालों की धार्मिक भावनाएं आहत न हो जाएं। धन्य है हमारा सेक्यूलर कुनबा।
वैसे इस कुनबे की कतार काफी लम्बी है, कुछ समय पहले समाजवादी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य तुलसीकृत श्रीरामचरितमानस की मनमाफिक व्याख्या कर इस पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग कर चुके हैं। इसी इण्डी गठजोड़ के दक्षिण के नेता एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि मारन सनातन धर्म को लेकर भारी-भरकम गाली गलौच कर चुके हैं। कांग्रेस का तो रामप्रेम तो सर्वविदित है कि किस तरह साल 2007 में उसके नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील मोर्चा की सरकार ने रामसेतु के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय में शपथपत्र दे कर यह साबित करने की कोशिश की थी कि राम काल्पनिक पात्र हैं। कांग्रेस की सरकारों व नेताओं ने किस तरह अयोध्या में श्रीराम मन्दिर के मार्ग में कांटे बिछाए वह अब किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। प्रश्न है कि आखिर प्रधानमंत्री और सत्ताधारी पार्टी का विरोध करते-करते देश के विपक्षी दल श्रीराम के विरोध में क्यों खड़े हो जाते हैं ?
राम तो सबके हैं, यह देश आस्थावानों का है और श्रीराम आस्था के केन्द्र-बिन्दू हैं। देश को आस्था की कीमत पर रोजगार, विकास, सामाजिक न्याय, मुफ्त बिजली-पानी सहित विपक्ष के सभी लच्छेदार चुनावी वायदे अस्वीकार्य हैं। देश के बहुसंख्क समाज का किसी दूसरे की आस्था से कोई टकराव नहीं, वह केवल इतना चाहता है कि बाकी लोग भी उनकी आस्था का सम्मान करें। राजनीतिक दलों को इसमें छूट नहीं दी जा सकती अन्यथा भारतीय समाज तुलसीदास जी के मार्ग पर चलने को विवश होगा जो कहता है कि -जाके प्रिय न राम वैदेही। सो नर तजिये कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेही।
– राकेश सैन
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