वामपंथी आतंक को विश्व में माओवादी और भारत में नक्सलवादी के रूप में जाना जाता है। भारत में नक्सली हिंसा की शुरुआत वर्ष 1967 में पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग ज़िले के नक्सलबाड़ी नामक गाँव से हुई और इसीलिये कम्युनिस्ट आतंक को ‘नक्सल’ के नाम से जाना जाता है। यह छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड और आंध्र प्रदेश और पूर्वी भारत के कम विकसित राज्यों में फैला माओवाद, वामपंथ का एक रूप है। जिसे माओ त्से तुंग द्वारा विकसित किया गया। इस सिद्धांत के समर्थक सशस्त्र विद्रोह, जनसमूह और रणनीतिक गठजोड़ के संयोजन से राज्य की सत्ता पर कब्ज़ा करने में विश्वास रखते हैं। वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्र को ‘रेड कॉरिडोर’ कहा जाता है। पीपुल्स वार ग्रुप के नाम से प्रसिद्ध भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) की स्थापना के बाद से, वामपंथी चरमपंथियों ने आंध्र प्रदेश, झारखंड, बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में हिंसा फैलाई। स्वयं को ‘क्रांतिकारी’ कहने वाले इन चरमपंथियों ने चीनी राज्य की धुन गाते हुए भारतीय राज्य के खिलाफ सक्रिय युद्ध छेड़ दिया, जो उनके अनुसार, एक आदर्श प्रकार था। कुछ पुराने लोगों को यह नारा भी याद है, “चीन के चेयरमैन हमारे चेयरमैन हैं”। चेयरमैन माओत्से तुंग द्वारा स्थापित चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के नेतृत्व में चीन में संपूर्ण कम्युनिस्ट क्रांति देखी गई, जिसके बाद कम्युनिस्ट राज्य, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) की स्थापना हुई। यही पीआरसी आज तक भारतीय कम्युनिस्टों को अपना आदर्श प्रतीत होता है। उन्होंने माओ की विचारधारा के प्रति निष्ठा की शपथ भी ली, जहां उपदेश दिया था – “राजनीतिक शक्ति बंदूक की नली से बहती है”। लेकिन चीन के विपरीत, जहां कुओमितांग, राष्ट्रवादी पार्टी सीसीपी से युद्ध हार गई और अंततः खुद को चीन गणराज्य (जिसे वर्तमान में ताइवान के रूप में जाना जाता है) तक सीमित करने के लिए मजबूर होना पड़ा, भारत में, कम्युनिस्टों द्वारा ऐसी कोई जीत हासिल नहीं की जा सकी, इसलिए क्रांति की आड़ में वामपंथी आतंकवादी संगठनों को जन्म दिया गया, जिसकी एक उपज नक्सलवाद है। 2009 में, यूपीए सरकार ने ‘ऑपरेशन ग्रीन हंट’ शुरू किया, जो आंध्र, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे माओवाद प्रभावित राज्यों में बड़े पैमाने पर सेना की तैनाती के साथ एक जवाबी कार्रवाई थी। हालाँकि कम्युनिस्टों की आलोचना के कारण, तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदम्बरम ने बाद में यू-टर्न ले लिया और कहा कि ऐसा कोई ऑपरेशन नहीं हुआ था और यह मीडिया का आविष्कार था। लेकिन ज़मीन पर सेना की तैनाती वास्तव में हुई थी। 2013 तक, तथाकथित ‘रेड कॉरिडोर’ पर 84000 से अधिक सैनिक तैनात थे। सन् 2014 में, सरकार बदलने के साथ, नक्सलियों के खिलाफ भारत की लड़ाई को अभूतपूर्व बढ़ावा मिला। सरकार ने न केवल वामपंथी उग्रवाद से निपटने में अधिक दृढ़ विश्वास दिखाया, बल्कि उसने अपना दृष्टिकोण भी बदल दिया – एक जवाबी हमले से प्रेरित दृष्टिकोण से बहु-आयामी रणनीति तक। 2015 में माओवादी चुनौती से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना शुरू की गई थी, जहां केंद्रीय गृह मंत्रालय ने वामपंथी उग्रवाद को नियंत्रित करने और कम करने के लिए कई तरीके अपनाए। इसके साथ ही, स्थानीय समुदायों के अधिकारों और अधिकारों को सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया ताकि कम्युनिस्ट ताकतों द्वारा उन्हें हथियार उठाने के लिए प्रेरित न किया जा सके। पिछले नौ वर्षों में सरकार ने सुरक्षा संबंधी व्यय (एसआरई) पहले की तुलना में दोगुना से भी अधिक कर दिया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए आंकड़े के अनुसार, हिंसा की कुल घटनाओं में 52 प्रतिशत की गिरावट आई है – जो 14,862 (मई 2005 से अप्रैल 2014 के दौरान) से कम होकर 7,128 (मई 2014 से अप्रैल 2023 के दौरान); वामपंथी उग्रवाद से संबंधित मौतों में 69 प्रतिशत की कमी – 6,035 (मई 2005-अप्रैल 2014) से कम होकर 1,868 (मई 2014-अप्रैल 2023) और सुरक्षा कर्मियों की मृत्यु में 72 प्रतिशत की गिरावट आई – 1,750 (मई 2005-अप्रैल 2014) से कम होकर 485 (मई 2014-अप्रैल 2023). इसके अनुसार नागरिकों की मृत्यु के मामले में, 68 प्रतिशत की गिरावट आई है। 4,285 (मई 2005-अप्रैल 2023) से कम होकर 1,383 (मई 2016-अप्रैल 2023); हिंसा की रिपोर्ट करने वाले जिलों में 53 प्रतिशत की गिरावट आयी है. 96 (2010) से कम होकर 45 (2022) और हिंसा की रिपोर्ट करने वाले पुलिस थानों में 62 प्रतिशत की गिरावट आई है – जो 465 (2010) से कम होकर 176 (2022) हो गए हैं। अब छत्तीसगढ़ की ओर चलते हैं, जहाँ लोकतंत्र के समानांतर नक्सलियों की सरकार चलती थी। प्रथम चरण के लोक सभा चुनाव को प्रभावित करने के लिए नक्सली पूर्व सरकार के समय बड़ी घटना को अंजाम देने वाले थे, परंतु डबल इंजन की सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक कर विफल कर दिया। आखिर नक्सलियों और पूर्व सरकार में क्या गठजोड़ था? आखिर पूर्व मुख्यमंत्री और उनके पिता की शह पर नक्सलियों ने क्या क्या किया? नक्सलियों ने चुनावों के लिये धनराशि वसूली, राजनैतिक हत्याकांड को अंजाम दिया, लोकतान्त्रिक प्रक्रिया की हत्या की, तेन्दुपत्ता का अवैध धन संग्रह किया और 5 साल पिछली सरकार को समर्थन दिया। इसलिए पिछली सरकार ने नक्सलियों पर कार्यवाही को रोका। पिछली सरकार ने पुलिस को रोक कर रखा था। अब पुलिस बिना किसी राजनीतिक दबाव के काम कर रही है। नक्सली तेंदुपत्ते की करोड़ों की वसूली के बटवारे के लिए इकट्ठा आये थे। लूट के पैसे को लेकर आपसी कलह हुई। नक्सलियों में स्थानीय नक्सल कैडर और बाहरी नक्सल लीडर में अनबन हुई। अर्बन नक्सल लीडर्स चर्च को स्ट्रेटेजिक और फाइनेंसियल पार्टनर मानते हैं, ये स्थानीय जनजाति को ठीक नहीं लगा। वैसे ज्ञात हो कि डबल इंजन की सरकार होते ही बस्तर में इस साल 91 नक्सलियों का खात्मा हुआ है। अभी 16 अप्रैल की सर्जिकल स्ट्राइक में 25 लाख का ईनामी कुख्यात नक्सली शंकर राव मारा गया। लोकसभा चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षाबलों ने बड़ा एक्शन लिया और कांकेर में सुरक्षा बलों ने मंगलवार को 29 नक्सलियों को एनकाउंटर में मार गिराया। इस मुठभेड़ में नक्सली कमांडर शंकर राव भी मारा गया। सन् 2024 की शुरुआत के बाद से, माओवादियों के गढ़ बस्तर क्षेत्र में सुरक्षा बलों के साथ अलग-अलग मुठभेड़ में नक्सली मारे गए हैं। हाल के दिनों में सुरक्षाबलों ने नक्सलियों के विरुद्ध अपनी रणनीति में बदलाव किया है। नए ‘ऑपरेशन प्रहार’ में सुरक्षा बलों ने पिन पॉइंटेड ऑपरेशन किये हैं। बीते कुछ दिनों सुरक्षाबलों ने 3 बड़े ऑपरेशन किए, जिसमें मात्र एक माह में 52 नक्सली ढेर किये जा चुके हैं। सुरक्षा बलों ने टॉप नक्सली कमांडरों की एक हिट लिस्ट तैयार की है और आने वाले दिनों में इनके खिलाफ भी ऑपरेशन होगा।’ऑपरेशन प्रहार’ के तहत उन बड़े नक्सलियों को निशाना बनाने की तैयारी है, जो भोले-भाले युवाओं का ब्रेनवॉश कर उनको नक्सल गतिविधियों में शामिल करने के लिए उकसाते हैं। सुरक्षा बलों ने जो टॉप-17 की सूची तैयार की है। उसमें पीएलजीए-1, का सबसे बड़ा नक्सली कमांडर मांडवी हिडमा शामिल है, जिसके बारे में सुरक्षा बलों को हाल ही में पता चला है कि वो सुकमा के जंगलों में छिपकर सुरक्षा बलों को निशाना बना सकता है। इस सूची में केवल हिडमा ही नहीं, कई दूसरे नक्सली नेता भी शामिल हैं। सुरक्षा विभाग के सूत्रों के अनुसार शीघ्र ही ये नक्सली या तो सरेंडर करेंगे या फिर उनको ‘ऑपरेशन प्रहार’ के तहत ढेर किया जाएगा। ये 17 टॉप नक्सली आतंकी कमांडर हैं –
1. मुप्पला लक्मना राव – यह छत्तीसगढ़ के माड़ एरिया में अपनी गतिविधि चलाता है.
2. नम्बला केशव राव – छत्तीसगढ़ के माड़ एरिया में अपनी गतिविधियों की अंजाम देता है.
3. मल्लराजी रेड्डी – यह नक्सली छत्तीसगढ़, आन्ध्र प्रदेश और ओडिशा के बॉर्डर पर अपनी गतिविधियों को चलाता है
4. मल्लजुला वेणुगोपाल – इस नक्सली की गतिविधियां छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के जंगलों में चलती हैं।
5. मिसिर बेसरा- झारखंड में अपनी नक्सली गतिविधियों को चलाता है। झारखंड से भागकर कहीं और छिपा हुआ है।
6. चन्दरी यादव – यह नक्सली झारखंड में अपनी गतिविधियों को सुरक्षा बलों के खिलाफ़ चलाता है। छत्तीसगढ़ के जंगलों में जाकर छिपा हुआ है।
7. थीपानी थिरुपति – इसका एरिया छत्तीसगढ़ है, जहां से ये अपनी नक्सली गतिविधियों को अंजाम देता है।
8. अक्की राज, हरगोपाल – यह नक्सली कमांडर खतरनाक है।आन्ध्र प्रदेश और उड़ीसा के बॉर्डर पर सक्रिय है।
9. कदारत सत्यनारायण रेड्डी – यह नक्सली कमांडर छत्तीसगढ़ के बॉर्डर पर सक्रिय है।
10. पलूरी प्रसाद राव – यह खतरनाक नक्सली कमांडर छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में अपनी गतिविधियों को चलाता है।
11. मॉडेम बालकृष्ण – यह ओड़िसा में अपनी गतिविधियों को चलाता है।
12. रमन्ना – यह नक्सली कमांडर छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों को हमेशा निशाना बनाने की कोशिश में रहता है।
13. सुधाकर – यह झारखंड में नक्सली कमांडर है।
14. परवेज – खतरनाक नक्सली कमांडर है।
15. असीम मंडल – यह झारखंड और पश्चिम बंगाल में अपनी गतिविधियों को फैलाता है।
16. हरी भूषण – यह छत्तीसगढ़ में अपनी नक्सली हिंसा को बढ़ाता है।
17. हिडमा – छत्तीसगढ़ में पीएलजीए -1 का कमांडर है, जो टॉप 17 नक्सलियों में सबसे खतरनाक है। हिडमा ने 90 के दशक में नक्सली हिंसा का रास्ता चुना और तबसे कई निर्दोष लोगों की जान ले चुका है। वह माओवादियों की पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीजीएलए) बटालियन-1 का प्रमुख है और घातक हमले करता रहता है। पिछले कुछ सालों में छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य में जो भी बड़े नक्सली हमले हुये, उसमें ज्यादातर जगहों पर 25 लाख के इनामी हिडमा का ही नाम सामने आता रहा है। एनआईए के दस्तावेजों के अनुसार, इस समय हिडमा की आयु 51 साल है। सुरक्षा एजेंसियां उसकी तलाश में हैं। आशा है, हिडमा की कहानी भी शीघ्र समाप्त होगी। नक्सलियों का खात्मा करने के लिए सुरक्षा बलों ने रणनीति में बदलाव किया है। टेक्निकल गैजेट्स का भी सहारा लिया जा रहा है। सुरक्षा बलों को ग्राउंड पर एनटीआरओ की सहायता मिल रही है जो रियल टाइम नक्सलियों के मूवमेंट की जानकारी दे रही हैं। सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के गढ़ की मैपिंग भी की है और बचे हुए नक्सलियों के विरुद्ध ऑपरेशन की एक अलग रणनीति तैयार की है, जिसमें आने वाले समय में और बड़ी सफलताएं मिलने की आशा है। छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की बौखलाहट स्पष्ट देखने को मिल रही है। लगातार कमजोर पड़ रहे नक्सली अब मासूम ग्रामीणों की हत्या कर रहे हैं, इस बीच लोकसभा चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ के बस्तर में अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हुए, नक्सलियों ने एक ग्रामीण की हत्या की।नारायणपुर जिले में दंडक वन के भाजपा नेता व उपसरपंच की मुखबिरी के संदेह में नक्सलियों ने हत्या कर दी है। यह घटना फरसगांव की बताई जा रही है। हत्या के बाद नक्सलियों ने दहशत फैलाने के लिए पोस्टर भी लगाए। आखिरकार विपक्षियों और उनके समर्थित नक्सलियों का असली चेहरा सामने आ ही गया, इसलिए इनका उन्मूलन अनिवार्य हो गया है।
लेख – डॉ. आनंद सिंह राणा
श्री जानकीरमण महाविद्यालय
इतिहास संकलन समिति, महाकौशल प्रांत