हीरा और जौहरी

अमरदीप जौली

एक व्यापारी ने दक्षिण अफ्रीका में एक बड़ा हीरा खरीदा—लगभग गोरैया के अंडे के आकार का। लेकिन जब उसने देखा कि उस पत्थर में एक दरार है, तो उसकी खुशी जल्द ही निराशा में बदल गयी । फिर भी, समाधान की आशा में, वह उसे एक जौहरी के पास ले सलाह के लिए गया।

जौहरी ने रत्न को बड़े ध्यान से जांचा और कहा, “इसे दो उत्तम हीरों में तोड़ा जा सकता है, जिनमें से प्रत्येक की कीमत मूल बड़े पत्थर से ज़्यादा होगी। लेकिन एक गलत प्रहार इसे सस्ते टुकड़ों के ढेर में बदल सकता है। मैं यह जोखिम नहीं उठाऊँगा।”

व्यापारी, देश विदेश के कई जौहरियोंसे मिला, लेकिन हर किसी ने उसे यही उत्तर दिया।

तभी किसी ने उसे एम्स्टर्डम के एक बुज़ुर्ग जौहरी के बारे में बताया। व्यापारी तुरंत वहाँ पहुँच गया।

बुज़ुर्ग उस्ताद ने अपने विशेष lens से पत्थर की जाँच की और व्यापारी को जोखिम समझाने लगा, लेकिन व्यापारी ने बीच में ही टोक दिया: यह बात कई बार सुन चुका हूँ, आप काम कर सकते हैं तो बताइये । जौहरी काम करने के लिए राज़ी हो गया और अपनी क़ीमत बता दी। जब व्यापारी ने हामी भर दी, तो जौहरी ने पास बैठे एक युवा trainee को बुलाया, जो उनकी तरफ़ पीठ करके चुपचाप किसी और काम में लगा था।

उस ट्रेनी ने हीरा लिया, उसे अपनी हथेली में रखा, हथौड़ा उठाया और एक ही बार मारा—बिलकुल सटीक। पत्थर दो चमकदार टुकड़ों में पूरी तरह से विभाजित हो गया। बिना मुड़े, उस ट्रेनी ने उन्हें जौहरी को थमा दिये।

चकित व्यापारी ने पूछा, “ये आपके पास कितने समय से काम कर रहा है?”
“तीन दिन,” बूढ़े ने मुस्कुराकर जवाब दिया। “उसे नहीं पता कि इस पत्थर की क़ीमत कितनी है। इसलिए उसका हाथ नहीं काँपा।”

सीख: जब आप अपने डर को बढ़ाना और हर जोखिम के बारे में ज़्यादा सोचना बंद कर देते हैं, तो असंभव भी संभव हो जाता है। कभी-कभी, सबसे बड़ी बाधाएँ सिर्फ़ आपके मन में ही होती हैं।

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