ऐतिहासिक पांडव शिला

पांडव शिला हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के सराज घाटी के जंजैहली में स्थित एक विशाल चट्टान है, जिसका संबंध महाभारत काल से माना जाता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां रुके थे और इस चट्टान को उन्होंने ही इसे यहां रखा था। यह चट्टान एक छोटी चट्टान पर टिकी हुई है और इसे एक उंगली से हिलाया जा सकता है, जिससे यह पर्यटकों के लिए एक आकर्षण का केंद्र बन गई है। हिलने के कारण ही इसे चुकती कहा जाता है। चुकती का अर्थ स्थानीय भाषा में हिलने वाला पत्थर होता है।
पांडव शिला का इतिहास: चुकती का संबंध महाभारत काल से है। स्थानीय लोगों के अनुसार, पांडव शिला महाभारत काल से जुड़ी है, जब पांडवों को अज्ञातवास के दौरान इस क्षेत्र में रहना पड़ा था।
पांडवों की निशानी: कहा जाता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान इस विशाल चट्टान को यहां रखा था, जो आज भी उसी स्थान पर मौजूद है।
एक उंगली से हिलने वाली चट्टान: पांडव शिला की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि इसे एक उंगली से हिलाया जा सकता है, जिससे यह लोगों के लिए एक रहस्य और आकर्षण का विषय बन गई है।
पर्यटकों का आकर्षण: इस चट्टान को देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक आते हैं और इसे हिलाने की कोशिश करते हैं।
मान्यताएं और रीति-रिवाज: स्थानीय लोगों का मानना है कि इस चट्टान पर कंकड़ फेंकने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं, खासकर संतान प्राप्ति की।
पांडव शिला का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व: पांडव शिला को ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है, जो महाभारत काल की कहानी को दर्शाता है.
पर्यटन स्थल: यह स्थान पर्यटन के लिए भी महत्वपूर्ण है, जहां लोग न केवल इस चट्टान को देखने आते हैं, बल्कि इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता का भी आनंद लेते हैं।
स्थानीय संस्कृति का हिस्सा: पांडव शिला स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का एक अभिन्न अंग बन गई है, जिसके साथ कई कहानियां और रीति-रिवाज जुड़े हुए हैं।
