इस समय संभल का मुद्दा सोशल मीडिया से लेकर राष्ट्रीय मीडिया में बहुत सुर्खियों में है। इस पर हिन्दू पक्ष से बहुत उद्वेलित है और संभल को लेकर बहुत कुछ पढ़ने और सुनने को मिला। इसी सिलसिले में 1976 में हुए दंगे में 184 हिंदुओं की हत्या मुस्लिम भीड़ ने कर दी है। वहीं दंगे स्थल के पास हनुमान जी का और शिव जी का मंदिर था, जिसे दंगे के दो वर्ष बाद, 1978 से बंद कर दिया गया था। जब संभल का मामला सामने आया तो उसके बाद जब वरिष्ठ अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन की याचिका पर कोर्ट के फैसले पर सर्वे हो रहा था, उसी समय मुस्लिम भीड़ ने पत्थरबाजी की। इसमें कई पुलिसकर्मी घायल हुए। इसी पत्थरबाजी के बीच में मुस्लिम दो गुटों के बीच गोलीबारी हुई और आपस में पांच मुस्लिम मारे गए। इसी के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने जब अराजक तत्वों पर कार्यवाही का निर्देश दिया, उसके बाद पुलिस महकमा पहुंचा। उसी समय वहां एसडीएम साहिब मंदिर के पास पहुंचे और उन्हें डीएम एवं एसएसपी को फोन किया। इसके बाद डीएम और एसएसपी आए, मंदिर का ताला खुलवाया और पूजा पाठ शुरू की गई। अब सोचिए, 40 साल मंदिर बंद था, यह बात वहां के स्थानीय हिंदुओं को पता नहीं थी। आज तो न बाबर न औरंगजेब फिर भी मंदिर 40 साल तक बंद कैसे रहा? आज तो आपके वोट द्वारा सरकार हिंदू प्रतिनिधि चुने जाते हैं, फिर 40 साल तक मंदिर कैसे बंद रहा? तब वह लोग कहां थे जो आज कह रहे हैं हम अयोध्या मथुरा काशी लेंगे, संभल मंदिर लेंगे? जो लोग तथाकथित स्वतंत्रता के बाद एक हनुमान मंदिर को नहीं ले पाए, वे कैसे मंदिर लेंगे?इस विषय पर बात करते हुए एक बात समझनी चाहिए, मुस्लिम में ऐसा क्या है? ईसाईयों में ऐसा क्या है? यहूदियों के पास ऐसा क्या है? कहीं एक मुस्लिम, एक ईसाई, एक यहूदी के पैर में उनके गैर-मत अनुयायी पत्थर उठा दे, तो वे कैसे खड़े हो जाते हैं? हम अफगानिस्तान से लेकर इंडोनेशिया तक, तथाकथित स्वतंत्रता के बाद कश्मीर से लेकर कैराना तक, बंगाल से लेकर केरल तक, हम लोग हर जगह पलायन क्यों करते हैं? वे क्यों नहीं करते हैं? उनकी तो तंत्र पिछले 500 वर्ष से है, ईसाईयों का 80 वर्ष से नहीं है, यहाँ सिख 2% हैं, फिर भी वे छोटी बात पर देश सिर पर उठा लेते हैं। सिख आतंकवाद से 30 हजार हिंदू 1975 से 1989 तक मारे गए थे। वे एक सिख दंगे के कारण देश के दो प्रधानमंत्री को माफी मांगने के लिए मजबूर कर देते हैं। हम क्यों नहीं कर पाते हैं? हम लोग कहते हैं 110 करोड़ सनातन धर्म रुपी वटवृक्ष से निकले मतों को जोड़ें तो 160 करोड़ हो जाते हैं। फिर भी हमारी बात कोई नहीं सुनता है। इस पर हमने कभी विचार किया? हमारे प्रमुख आस्था केंद्र रामसेतु को तोड़ने की बात तत्कालीन कांग्रेस सरकार करती है। हमारे कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य को दीपावली की रात सोनिया गांधी की सरकार उठवा लेती है। हम लोग प्रतिक्रिया क्यों नहीं नहीं दिये थे ? हिन्दू समाज को पिछली कांग्रेस की सरकार के दो मंत्री हिंदू आतंकवाद और भगवा आतंकवाद शब्द का प्रयोग करते हैं, हम लोग सड़क पर क्यों नहीं आये थे ? अभी कुछ माह पहले तिरूपति बालाजी मंदिर के प्रसाद मे बनाने में गाय के चर्बी बने घी का प्रयोग किया गया था इतनी बड़ी घटना हो गई कोई हिंदू सड़क पर नहीं आया सोशल मीडिया पर हंगामा करकें बैठ गये वही मुस्लिम के पैगम्बर पर कोई टिप्पणी करें, तो सर तन से जुदा करने लगते हैं। नुपुर शर्मा बहन ने सच कहा था, उसके बाद देश में आग लगाई दी गई थी और नुपुर शर्मा बहन के समर्थन करने के कारण कन्हैया लाल समेत चार हिंदुओं जिहादियों ने गला काट दिया गया। इतनी बड़ी घटना के बावजूद हम लोग घर में बैठकर टीवी देखते हुए पॉपकॉर्न खा रहे थे। कह रहे थे सरकार क्यों कुछ नहीं कर रही है? संघ कुछ क्यों नहीं कर रहा है? क्या हम कभी यहूदियों को, मुसलमानों को, क्रिश्चियन को देखा? उत्तर हो तो बताएं, ये वो विक्टिम कार्ड भी खेलेंगे सिस्टम को दबाव लेने के लिए। हम लोग को कोई मार कर चला जाएं तो हम लोग उसे पलटकर दो थप्पड़ मारने के वज़ह वहां से पतली गली से निकल जाएंगे ज्यादा परेशान करेगा तो मकान बिकाऊ बोर्ड लगाकर पलायन कर जाएंगे ।इस बात को और अच्छे से समझ सकते हैं, कलेक्टर अधिकारी हों, अधिवक्ता हों, डॉक्टर हों, लेकिन सरकार किसी की रहे, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है। किसी आईएएस अधिकारी के साथ कोई नेता बदतमीजी कर दे, तो पूरा आईएएस एसोसिएशन खड़ा हो जाएगा। एक अधिवक्ता के साथ कोई बदतमीजी करें, तो पूरा अधिवक्ता संघ कोर्ट बंद कर देता है। एक डॉक्टर के साथ कोई बदतमीजी, कोई असभ्यता करें, तो पूरे शहर का, पूरे राज्य का, देश का डॉक्टर धरने पर बैठ जाएगा। पूरा सिस्टम सरकार हिल जाएगा। हम एक 110 करोड़ हिंदू, हमारे एक भाई कोई गला काट दे, और हम घर में बैठकर पॉपकॉर्न खा रहे होते हैं। सरकार को गालियां दे रहे होते हैं, वह इंतजार नहीं करते, पूरा शहर जला देते हैं। हम लोग कुछ नहीं कर पाते हैं, ऐसा क्यों?”हम लोग बहुत बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, अखंड भारत बनाएंगे, अयोध्या, मथुरा, काशी लेंगे, म्लेच्छों से इस धरा को मुक्त करेंगे, बहुत सी बातें करते हैं। लेकिन जब करने की बात आती है, तो मोदी, योगी, संघ, हिंदू नेता और हिंदू संगठन सरकार करे, हम कुछ नहीं करेंगे, क्योंकि हमने वोट दे दिया है। क्या आम मुस्लिम भी ऐसा सोचता है? हिंदू को अपने दिल में हाथ रखकर यह प्रश्न करना चाहिए।”संभल के विवाद के वक्त सोशल मीडिया में चल रहा है कि और चल रही है वीडियो और खबरें आ रही हैं वर्षों से बिजली चोरी मुस्लिम बस्तियों में हो रही है, सांसद भी बिजली चोरी कर रहे थे, लेकिन इस देश को स्वतंत्र हुए 80 वर्ष हो गए, फिर इसमें ज्यादातर उत्तर प्रदेश हिंदू नामधारी राजनीतिक दल प्रतिनिधि मुख्यमंत्री थे, फिर भी सरकारी अमला 90% हिंदू, बिजली विभाग संभल 95% कर्मचारी हिंदू हैं, फिर कैसे बिजली चोरी हो रही है? 80 वर्षों का आंकड़ा लगाएं तो संभल में 400 से 500 करोड़ की बिजली चोरी हुई है। ये कैसे हुईं हैं? हम लोग बहुत इको सिस्टम की बात करते हैं, जॉर्ज सोरोस, बीबीसी, अल-जजीरा और भारत में कांग्रेसी वामपंथी इको सिस्टम की बात करते हैं, लड़ने की बात करते हैं, फिर भी हमारे नाक के नीचे यह सब कुछ हो रहा है, फिर हम लोग कुछ क्यों नहीं कर पा रहे हैं? हम लोग अपने घर के अंदर इको सिस्टम तोड़ नहीं पा रहे हैं, कितने हिंदुओं ने यह मांग की कि संभल में 80 साल तैनात सभी कर्मचारियों को पेंशन, वेतन बंद किया जाए और उन्हें जेल भेजा जाए। हम तो वाहवाही करने लगते हैं कि सरकार ने कार्रवाई कर दी है। क्योंकि हम लोग अंदर से चोर हो चुके हैं, हम लोग अपने स्वार्थ में जी रहे हैं, तभी तो इस पर कुछ नहीं बोले हैं। बात वैश्विक इको सिस्टम से लड़ने की करते हैं, अपने घर को ठीक नहीं कर पाते, ऐसा इको सिस्टम बनेगा?40 से संभल का मंदिर बंद था, फिर भी संभल का हिंदू क्या कर रहा था? यह हिंदू बताएं। तब तो न बाबर था, न तुगलक, न गजनवी था, फिर भी संभल का हिंदू क्या कर रहा था? संभल समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हिंदू को बताना चाहिए ।हिंदू समाज की सबसे बड़ी समस्या यह है कि हिंदू समाज किसी व्यक्ति, किसी संगठन का मोहताज रहता है, जिसके कारण हिंदू समाज अपनी लड़ाई दूसरों के कंधों पर बंदूक रखकर लड़ना चाहता है। कभी किसी सरकार, कभी किसी संगठन, कभी किसी व्यक्ति, कभी किसी समूह पर निर्भर रहता है, लेकिन स्वयं कुछ नहीं करना चाहता। किसी व्यक्ति की एक सीमा होती है, वह सीमा के बाहर नहीं जा सकता। वहीं दूसरी ओर, एक संगठन की भी एक सीमा होती है, जो अपने विचार और लक्ष्य के बाहर किसी परिस्थिति में नहीं जा सकता। बात सरकार की करें, तो यह 5-6% वोट का खेल है, जिसमें कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकारें कभी स्थायी नहीं रह सकतीं। इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी चार बार सरकार में आई, लेकिन उसका वोट प्रतिशत 27% से अधिक कभी नहीं रहा। इसमें 9% यादवों का वोट, 17% मुस्लिमों का वोट और 2-4% स्विंग वोटर्स का वोट था। 27% के साथ समाजवादी पार्टी ने हर हिंदू-विरोधी कार्य किया, जिसकी कोई तुलना नहीं कर सकता। 1989 में कारसेवकों पर गोली चलवाने से लेकर 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों तक, या 2005 के मऊ दंगों तक, ये सभी घटनाएं भूल पाना मुश्किल है।वहीं, बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में दो बार विधानसभा और दो बार लोकसभा में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। लेकिन 2024 में 8% वोट कम हो गए। बीजेपी ने 2014 जितना ही वोट शेयर प्राप्त किया, फिर भी 2024 के लोकसभा चुनाव में पिछड़ गई। महाराष्ट्र में तो केवल 1% के अंतर से कांग्रेस गठबंधन ने 31 सीटें जीत लीं। अब सोचिए, 1% अंतर में क्या बदल जाता है। इसलिए, कोई सरकार स्थायी रहेगी, इसकी क्या गारंटी है? ओवैसी कहते हैं, “कब तक मोदी-योगी रहेंगे? एक दिन हमारा भी समय आएगा, फिर हम बताएंगे।” क्योंकि उन्हें पता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को कैसे अपनाना है। और यदि लोकतांत्रिक तरीके से नहीं ले सकते, तो बंदूक और तलवार के बल पर ले सकते हैं। सीरिया और लेबनान में यही हुआ। 1947 में भारत के विभाजन के समय भी, मुठ्ठीभर मुसलमानों ने भारत माता को चीरकर 40% भू-भाग ले लिया। पाकिस्तान बनने के बाद भारत की सड़कों पर यह नारा गूंजा था, “लड़कर लिया पाकिस्तान, हंसकर लेंगे हिंदुस्तान।” वे वैचारिक रूप से स्पष्ट हैं। उन्हें न तो किसी सरकार की आवश्यकता है और न किसी संगठन की। वे हर परिस्थिति में लड़ने के लिए तैयार रहते हैं। लेकिन क्या हम तैयार हैं? हम सब कुछ सरकार, संघ, बीजेपी, मोदी और योगी पर छोड़ देते हैं। बंगाल में, बीजेपी अपने कार्यकर्ताओं की सुरक्षा नहीं कर पाई। केरल में जिहादी संघ कार्यकर्ताओं को मार रहे हैं। बहराइच में गोपाल मिश्रा की हत्या हुई, संभल में दंगे हुए, और योगी जी भी इन घटनाओं को पहले से नहीं रोक पाए। जब मोदी और योगी के रहते ही जिहादियों का कुछ नहीं कर पा रहे हैं, तो उनके बाद क्या होगा? क्या हिंदुओं ने कभी सोचा है कि जिहादी, वामपंथी, ईसाई और यहां तक कि सिख सत्ता में न होने के बावजूद अपना इको-सिस्टम इतना मजबूत कैसे बनाए रखते हैं? वे पूरे सिस्टम को हिला कर रख देते हैं। हम लोग, किसी घटना के बाद, व्यापारियों की तरह पलायन क्यों करते हैं? मुस्लिम, ईसाई, सिख और यहूदी अपने लिए मजबूत इको-सिस्टम बना लेते हैं। लेकिन हिंदू ऐसा तंत्र क्यों नहीं बना पाए कि उन्हें किसी सरकार, संस्था या व्यक्ति पर निर्भर न रहना पड़े? हम 160 करोड़ की संख्या में होने के बावजूद हर जगह मार क्यों खा रहे हैं? इन प्रश्नों के उत्तर हिंदू स्वयं क्यों नहीं ढूंढते? हमने कभी आत्मचिंतन क्यों नहीं किया? हिंदू समाज अपना मजबूत इको-सिस्टम बनाने का प्रयास क्यों नहीं करता? जब तक हिंदू समाज इन प्रश्नों का उत्तर स्वयं नहीं ढूंढेगा, तब तक समस्याओं का समाधान नहीं निकलेगा। अन्यथा, समस्या और गंभीर होती जाएगी कल हो सकता कश्मीर की भांति हमें पलायन का अवसर नहीं मिले उसके पूर्व हमे खत्म कर दिया जाये। यह दो सभ्यताओं का युद्ध है। कुछ वर्षों में यह युद्ध समाप्त नहीं होगा, हजार वर्ष की योजना लेकर चलने की आवश्यकता है। तभी इस युद्ध में कुछ पाएंगे। यहूदी अपनी सभ्यता की लड़ाई तीन हजार वर्षों से लड़ रहे हैं। हम लोग 30 वर्षों में राम मंदिर पा गए, ऐसे आगे बढ़ेंगे तो पूरा भारत हमारे पास होगा।
✍️दीपक कुमार द्विवेदी