रायपुर. राज्य में सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाई के कारण माओवादी आतंकी बैकफुट पर हैं, सुरक्षा बलों की एक के बाद एक कार्रवाई से झटके लग रहे हैं. पुलिस इंटेलिजेंस नेटवर्क मजबूत होने के साथ ही माओवादियों की सारी साजिशें विफल हो रही हैं.
यही कारण है कि अब माओवादी आतंकी संगठनों में बौखलाहट स्पष्ट दिख रही है. इसी बौखलाहट और तिलमिलाहट के कारण माओवादी बस्तर के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय जनजातीय ग्रामीणों को निशाना बना रहे हैं, और उनकी हत्याएं कर रहे हैं.
माओवादियों ने अपनी बौखलाहट का परिचय देते हुए नारायणपुर जिले के एक जनजाति ग्रामीण की हत्या की है. जिले के ओरछा थानाक्षेत्र के अंतर्गत माओवादियों ने हत्या को अंजाम दिया.
माओवादियों ने जिस जनजातीय युवक की हत्या की है, उसकी पहचान 30 वर्षीय सन्नू उसेंडी के रूप में हुई है. मृतक सन्नू उसेंडी नारायणपुर जिले के बांस शिल्प कॉलोनी में निवासरत था, जिसका मूल ग्राम नेलंगुर था.
वह बीते दिनों एक काम के सिलसिले में अपने गांव पहुंचा था, जिसके बाद माओवादियों ने इसकी सूचना मिलते ही योजना बनाकर उसकी हत्या कर दी. माओवादियों की हैवानियत कुछ ऐसी थी कि उन्होंने सन्नू उसेंडी को पहले उसके गांव से उठा लिया और फिर रविवार 30 जून की रात उसकी हत्या कर दी.
माओवादी आतंकियों ने सन्नू की हत्या के बाद उसके शव को ओरछा के बटुमपारा क्षेत्र में फेंक दिया. माओवादियों ने जनजाति युवक की हत्या करने के बाद उसके शव के समीप पर्चें भी रखे, जिसमें माओवादी आतंकियों ने सन्नू उसेंडी को पुलिस मुखबिर बताया है. माओवादियों ने अपने पर्चे में मृतक जनजाति युवक पर 15 जून को हुई मुठभेड़ के लिए मुखबिरी करने का आरोप लगाया है.
गौरतलब है कि इस मुठभेड़ में माओवादियों को बड़ा झटका लगा था, जिसमें 8 माओवादी आतंकी मारे गए थे. इस मुठभेड़ के लिए नारायणपुर, दंतेवाड़ा, कांकेर और कोंडागांव की संयुक्त टीम ने कार्रवाई की थी.
माओवादियों की मांद में घुसकर फरसेबेड़ा और कोड़तामेटा के जंगलों में ऑपरेशन को अंजाम दिया गया था, जो माओवादियों का आरामगाह माना जाता था. माओवादी अपने हाथ से एक और बड़ा गढ़ निकलता देख तिलमिला गए हैं और निर्दोष जनजाति ग्रामीणों की हत्या कर रहे हैं.
दरअसल, नारायणपुर के जिस अबूझमाड़ क्षेत्र से लगे इलाके में माओवादियों ने जनजातीय युवक सन्नू उसेंडी की हत्या की है, वहां के जनजाति ग्रामीणों के साथ माओवादी लगातार अत्याचार करते आए हैं.
जून माह के शुरुआती सप्ताह में माओवादियों ने यहां के दो युवकों की हत्या कर दी थी, जिसके बाद पूरे क्षेत्र में दशहत फैल गई थी. हत्या के बाद भी माओवादी शांत नहीं रहे, उन्होंने हत्या करने के एक सप्ताह के भीतर ही मृतक युवकों के परिजनों को गांव से निकाल कर बेघर कर दिया था. बेघर हुए 15 से अधिक जनजाति ग्रामीण नारायणपुर जिला मुख्यालय के रैन बसेरा में शरण लिए हुए हैं.
गौरतलब है कि यह कोई पहला अवसर नहीं है कि माओवादियों ने इस तरह से किसी निर्दोष ग्रामीण की हत्या की या स्थानीय जनजाति ग्रामीणों को उनके ही जमीन से बेघर कर दिया हो. ग्रामीणों को बेघर किए जाने की स्थिति को कुछ ऐसे समझा जा सकता है कि नारायणपुर में पूरी एक बस्ती बसाई गई है, जहां ऐसे लोग रहते हैं जिन्हें माओवादियों ने उनके गांव-घर से भगा दिया है.
इससे पहले माओवादियों ने बस्तर के अलग-अलग जिलों में कई ग्रामीणों की हत्याएं की हैं. केवल नारायणपुर की बात करें तो बीते एक माह में ही 4 ग्रामीण माओवादियों के आतंक का शिकार हुए हैं.
हाल ही में कोंडागांव जिले के केशकाल क्षेत्र में माओवादियों ने एक जनजातीय युवक को गोली मारकर उसकी हत्या कर दी थी. मई के माह में बीजापुर में माओवादी आतंकियों ने दो भाइयों को मौत के घाट उतार दिया था, जिसके बाद पूरे क्षेत्र में भय का माहौल था. माओवादी बीते कुछ समय से अपनी हार एवं कमजोरी की बौखलाहट ग्रामीणों पर निकाल रहे हैं.
माओवादी आतंक के कारण बीते 6 माह में 10 से अधिक ग्रामीण मारे जा चुके हैं, और ढेरों ग्रामीण बेसहारा हो चुके हैं. स्थितियां ऐसी हैं कि अपनी जमीन, अपना खेत, अपना घर और अपना गांव छोड़कर जिला मुख्यालय में शरण लिए जनजाति ग्रामीणों में छोटे बच्चे भी शामिल हैं, जिन्हें मजबूरी में जिला मुख्यालय में बने शिविरों में रहना पड़ रहा है. इनकी सुध लेने कोई मानवाधिकारवादी नहीं आता.
जब माओवादी आतंकी पुलिस मुठभेड़ में मारे जाते हैं, तब मानवाधिकार और तमाम तरह के कार्यकर्ता आवाज़ उठाने लगते हैं, लेकिन इन बेसहारा लोगों के मानवाधिकार की चिंता कोई नहीं करता है. जब माओवादी झूठी कहानी गढ़ते हुए मारे गए आतंकियों को ‘ग्रामीण’ बताते हैं, तब कम्युनिस्ट कार्यकर्ता तुरंत फैक्ट फाइंडिंग कमेटी लेकर पहुँच जाते हैं, लेकिन इन परिवारों और मृतकों के परिजनों को सुनने कोई नहीं पहुंचता.
ग्रामीणों पर माओवादी आतंकियों का अत्याचार – हत्या, नरसंहार और बेघर होते परिवार
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