परमाणु, गुरुत्वाकर्षण और गति के सिद्धांत के जनक: महर्षि कणाद

अमरदीप जौली

वायुपुराण के अनुसार महर्षि कणाद का जन्म स्थान प्रभास पाटण है। स्वतंत्र भौतिक विज्ञानवादी दर्शन प्रकार के विचारों को सबसे पहले महर्षि कणाद ने सूत्र रूप में लिखा। ये “उच्छवृत्ति” थे और धान्य के कणों का संग्रह कर उसी को खाकर तपस्या करते थे। इसी लिए इन्हें “कणाद” या “कणभुक्” कहते थे। किसी का कहना है कि कण अर्थात् ‘परमाणु तत्व’ का सूक्ष्म विचार इन्होंने किया है, इसलिए इन्हें “कणाद” कहते हैं। किसी का मत है कि दिन भर ये समाधि में रहते थे और रात्रि को कणों का संग्रह करते थे। यह वृत्ति “उल्लू” पक्षी की है। किस का कहना है कि इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ईश्वर ने उलूक पक्षी के रूप में इन्हें शास्त्र का उपदेश दिया।

आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।

उनके अनासक्त जीवन के बारे में यह रोचक मान्यता भी है कि किसी काम से बाहर जाते तो घर लौटते वक्त रास्तों में पड़ी चीजों या अन्न के कणों को बटोरकर अपना जीवनयापन करते थे। इसीलिए उनका नाम कणाद भी प्रसिद्ध हुआ।

कण सिद्धान्त

भौतिक जगत की उत्पत्ति सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण परमाणुओं के संघनन से होती है- इस सिद्धांत के जनक महर्षि कणाद थे।

वैशेषिक सूत्र- कणाद सूत्र

वैशेषिकसूत्र कणाद मुनि द्वारा रचित वैशेषिक दर्शन का मुख्य ग्रन्थ है। इस पर अनेक टीकाएं लिखी गयीं जिसमें प्रशस्तपाद द्वारा रचित पदार्थधर्मसङ्ग्रह प्रसिद्ध है। कणाद ने वैशेषिकसूत्र में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय नामक छः पदार्थों का निर्देश किया है।

वैशेषिक दर्शन न्याय दर्शन से बहुत साम्य रखता है किन्तु वास्तव में यह एक स्वतंत्र भौतिक विज्ञानवादी दर्शन है। इस प्रकार के आत्मदर्शन के विचारों का सबसे पहले महर्षि कणाद ने सूत्र रूप में (वैशेषिकसूत्र में) लिखा। यह दर्शन “औलूक्य”, “काणाद”, या “पाशुपत” दर्शन के नामों से प्रसिद्ध है। इसके सूत्रों का आरम्भ “अथातो धर्मजिज्ञासा” से होता है। इसके बाद दूसरा सूत्र है- “यतोऽभ्युदयनिःश्रेयसिद्धिः स धर्मः” अर्थात् जिससे अभ्युदय और निःश्रेयस् की सिद्धि होती है, वह धर्म है। इसके लिये समस्त अर्थतत्त्व को छः ‘ पदार्थों ‘ (द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय) में विभाजित कर उन्हीं का मुख्य रूप से उपपादन करता है। वैशेषिक दर्शन और पाणिनीय व्याकरण को सभी शास्त्रों का उपकारक माना गया है-

इस दर्शन के मूलभूत सिद्धान्त निम्न हैं –

परमाणु – जगत का मूल उपादान कारण परमाणु माना है। दो परमाणुओं से ‘द्वयणुक’ एवं कतिपय द्वयणुक के संयोग से ‘त्रसरेणु’ उत्पन्न होता है।
अनेकात्मवाद – यह दर्शन जीवात्माओं को अनेक मानता है तथा कर्मफल भोग के लिए अलग-अलग शरीर मानता है।असत्कार्यवाद – इस दर्शन का सिद्धान्त है कि कारण से कार्य होता है। कारण नित्य हैं, और कार्य अनित्य।मोक्षवाद – जीव का परम् लक्ष्य मोक्ष (आवागमन के चक्र से मुक्त होना) मानता है। मिथ्या-ज्ञान को जीव के दुःख का कारण माना गया है।

इस दर्शन में भूकम्प आना, वर्षा होना, चुम्बक में गति, गुरुत्वाकर्षण विज्ञान, ध्वनि तरंगे आदि के विषय में विवेचना प्रस्तुत की गई है।

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