भारतीय क्रिकेट के नायक: रणजी

अमरदीप जौली

आजकल भारत के हर गली-मुहल्ले में बच्चे क्रिकेट खेलते मिल जाते हैं। यहाँ तक कि क्रिकेट एक बीमारी बन गया है। लोग अपने सारे काम छोड़कर कान से रेडियो लगाये या दूरदर्शन के सामने बैठकर इसी की चर्चा करते रहते हैं। पैसे की अधिकता के कारण इसमें भ्रष्टाचार और राजनीति भी होने लगी है; पर 50-60 साल पहले ऐसा नहीं था।

भारत में इसे लोकप्रिय करने का जिन्हें श्रेय है, वे थे भारत के गुजरात राज्य की एक छोटी सी रियासत नवानगर के राजकुमार रणजीत सिंह। वे एक महान् खिलाड़ी एवं देशभक्त थे। उनका जन्म 1872 में हुआ था। उनका बचपन सरोदर और फिर राजकोट में बीता। राजकोट में उनका परिचय क्रिकेट से हुआ। थोड़े ही समय में उन्होंने इस खेल में महारत प्राप्त कर ली।

1892 में वे इंग्लैण्ड गये और एक वर्ष अंग्रेजी का प्रारम्भिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए मेलबोर्न पाठशाला में भर्ती हो गये। इसके बाद उन्हें कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश मिल गया। इंग्लैण्ड में सर्दी अधिक पड़ती है। जून, जुलाई तथा अगस्त के महीने वहाँ गुनगुनी गर्मी के होते हैं। उन दिनों लोग दिन भर क्रिकेट खेलते हुए धूप का आनन्द उठाते थे। रणजी क्रिकेट में अंग्रेजों जैसी श्रेष्ठता पाने के लिए पेशेवर गेंदबाजों के साथ अभ्यास करने लगे।

इंग्लैण्ड में भारतीयों के साथ बहुत भेदभाव होता था; पर रणजी अपनी कुशलता से एक ही साल में वहाँ प्रथम श्रेणी की क्रिकेट खेलने लगे। थोड़े ही समय में वे अपने विश्वविद्यालय की टीम में शामिल कर लिये गये। ऐसा स्थान पाने वाले वे पहले भारतीय थे। रन बनाने की तीव्र गति के कारण उन्हें रणजीत सिंह के बदले रनगेट सिंह कहा जाने लगा।

1907 में रणजी को उनकी रियासत का राजा बना दिया गया। अब वे नवानगर के जामसाहब कहलाने लगे। इस जिम्मेदारी से उन्हें क्रिकेट के लिए समय कम मिलने लगा। फिर भी वे साल में सात-आठ महीने इंग्लैण्ड जाकर क्रिकेट खेलते थे।

रणजी राज्य के प्रशासनिक कार्यों में भी बड़ी रुचि लेते थे। 1914 में उन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध में एक सैनिक के नाते भाग लिया। 1920 में लीग अ१फ नेशन्स के सम्मेलन में रणजी ने भारतीय शासकों के प्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व भी किया था।

रणजी ने भारत में क्रिकेट के विकास के लिए भारत से इंग्लैण्ड में अच्छे खिलाडि़यों को बुलाया। इससे भारत में अनेक अच्छे खिलाड़ी विकसित हुए। इनमें उनके भतीजे दिलीपसिंह भी थे। विदेश जाने वाले खिलाडि़यों को वे सदा भारत का नाम ऊँचा करने के लिए प्रेरित करते थे। उन्होंने ही बैकफुट पर जाकर खेलने तथा लैग ग्लान्स जैसी नयी विधियों को क्रिकेट में प्रचलित किया।

रणजी का हृदय बहुत उदार था। उच्च शिक्षा हेतु विदेश जाने वाले को वे प्रोत्साहन तथा सहायता देते थे, चाहे वह राजकुमार हो या राज्य का सामान्य युवक। एक बार वे निशानेबाजी प्रतियोगिता देख रहे थे। अचानक एक गोली उनकी आँख में आ लगी। इससे उनकी वह आँख बेकार हो गयी; पर खेल के प्रेमी रणजी ने कभी उस खिलाड़ी का नाम किसी को नहीं बताया।

आज तो भारत के अनेक क्रिकेट खिलाडि़यों का विश्व में बड़ा सम्मान है; फिर भी भारतीय क्रिकेट का नायक रणजी को ही माना जाता है। दो अप्रैल 1933 को रणजी का देहान्त हुआ। उनकी याद में भारत में प्रतिवर्ष रणजी ट्राफी खेलों का आयोजन किया जाता है।

Leave a comment
  • Facebook
  • Twitter
  • LinkedIn
  • Email
  • Copy Link
  • More Networks
Copy link
Powered by Social Snap