विजय नगर साम्राज्य विस्तृत और सम्पन्न राज्य था, जिसके अंतर्गत कई रजवाडे आते थे, जिन्हें महामंडलेश्वर कहा जाता था। शरवती नदी के तट पर स्थित गेरुसोप्पा नामक क्षेत्र भी विजयनगर साम्राज्य का अंश हुआ करता था। वर्तमान में गेरुसोप्पा कर्नाटक राज्य के उत्तर कन्नड़ जिले के होन्नावर तालुक में एक शहर है। गेरुसोप्पा की रानी चेन्नाभैरदेवी, शायद भारत की सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली रानियों में से एक थी, जिन्होंने लगभग 54 वर्षों तक शासन किया। वह विजयनगर साम्राज्य के तुलुवा-सलवा वंश से संबंध रखती थी। पांडुलिपियों के अनुसार, उनका क्षेत्र गोवा के दक्षिण से उत्तर कन्नड, दक्षिण कन्नड़ और मालाबार तक फैला हुआ था। यह क्षेत्र न केवल भटकल, होन्नावर, मिरजान, अंकोला और बैंदूर जैसे बंदरगाहों के लिए जाना जाता है, बल्कि सर्वाधिक रूप से काली मिर्च के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
चेन्नाभैरदेवी को पर्तगालियों द्वारा ‘रैना-दा-पिमेंटा’ का संबोधन दिया गया, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है “पैपर क्वीन’ अर्थात् काली मिर्च वाली रानी। रानी चेन्नाभैरदेवी अपनी मातृभूमि के प्रति इतनी निष्टावान और समर्पित थीं, कि रानी के बारे में 1591 के पुर्तगाली रिकॉर्ड में लिख था, “हमें उससे अधिक सावधानी और कृटनीतिक तरीके से निपटना चाहिए। उसे अपने पक्ष में करने के लिए हमें शिष्ट, विनम्र और व्यवहार कुशल बनना पड़ेगा।” गेरुसोप्पा की रानी चेन्नाभैरदेवी के हाथों एक बहुत ही अपमानजनक हार के बाद पुर्तगालियों ने यह लिखा था।
पुर्तगालियों ने जब बंदरगाहों को हथियाने और व्यापार पर कब्जा करने की कोशिश की तो रानी ने पुर्तगालियों का जमकर विरोध किया। रानी ने 1559 में और फिर 1570 में पुर्गालियों के साथ युद्ध किया। उसने अपनी बुद्धिमानी और कुशल रणनीति से पुर्तगाली सेना को कुचल कर रख दिया।
पुर्तगालियों द्वारा लिखा गया एक पत्र मिलता है, जिसमें काली मिर्च के व्यापार के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। कोचीन का पुर्तगाली कप्तान, एफोन्सोमैक्सिया पुर्तगाल के राजा को लिखता है,” भटकल और गोवा के बीच ओनोर, मर्जन और एंकोला नामक कुछ स्थान हैं, मैंने सुना है कि वहाँ से 5 ,000 क्रेजेरो मूल्य की काली मिर्च हर वर्ष भेजी जाती है। ये स्थान प्रभुत्व के अधीन हैं…. गेरुसोप्पा की रानी के। यह काली मिर्च कोचीन की मिर्च से बड़ी होती है, लेकिन हल्की होती है और इतनी तीखी नहीं होती। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि हमें इसका भण्डारण करना चाहिए…”
रानी चेन्नाभैरदेवी जैन संप्रदाय से सम्बन्ध रखती थी। गेरुसोप्पा में चतुर्मुख बसदि का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। उन्होंने अनेक शैव और वैष्णव मंदिरों का भी निर्माण करवाया। सारस्वत ब्राह्मण व्यापारियों और कुशल कोंकणी कारीगरों को पुर्तगालियों के अत्याचारों से बचाने के लिए रानी ने उन्हें अपने राज्य में शरण दी। जैन विद्वान अकलंक और भट्टकलंक भी रानी के संरक्षण में थे। मिरजान किले का निर्मांण भी रानी ने ही करवाया था।