गोगाजी जिन्हे पंजाब,हिमाचल,हरियाणा, उत्तराखंड, में गुग्गा भी कहा जाता है,को राजस्थान में लोक देवता के रूप में माना जाता है और लोग उन्हें गोगाजी, गुग्गा वीर, जाहिर वीर, राजा मण्डलिक व जाहर पीर के नाम जानते हैं। यह गोरखनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी का प्रमुख स्थान है। इनका जन्म विक्रम संवत 1003 (950 AD के आस पास) राजस्थान के चुरू जिले के ददरेवा गाँव में चौहान वंश के शासक जैबर (जेवरसिंह) की पत्नी बाछल के गर्भ से भादो सुदी नवमी को हुआ था ।
बाछल देवी निःसंतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। एक बार घूमते घूमते गोरखनाथ के के नेतृत्व में नाथ साधुओं का डेरा चूरू आया गुरू गोरखनाथ ने ददरेवा के पास टिल्ले पर कुछ समय के लिए अपना डेरा डाळ दिया। रानी बाछल “गुरु गोरखनाथ जी” सेवा और पूजा की। गुरु गोरखनाथ ने रानी को संतान का वरदान दिया , रानी को गुरु द्वारा हवंन में डालने के लिए एक गुग्गल दिया। रानी ने इसे एक पंडिताइन के और एक दासी के साथ बाँट लिया। गुग्गल का एक बचा हिस्सा घोड़ी भी चबा गई। तब रानी बाछल के गर्भ से गोगा जी,पंडिताइन के गर्भ से नर सिंह पांडे और दासी के गर्भ से भज्जू कोतवाल का जन्म हुआ। वहीँ घोड़ीने नीले घोड़े को जन्म दिया। जिस टिल्ले पर गोरखनाथ डेरा जमाये हुए थे कालानतर में उसका नाम ” गोगामेड़ी” पड़ा।
गोगा जी बचपन से ही बड़े चमत्कारी और बहादुर थे, वे बचपन से ही “गुरु गोरखनाथ जी” की सेवा करते थे और उनकी आज्ञा मानते थे। युवावस्था में उनका विवाह राठौर राजपूतो में “कोलुमंद ठिकाने” नगर की “कुंवरी केल्मदे” (रानी सीरिअल) के साथ हुआ।
लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार गोगा जी को साँपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब गोगा की शादी के लिए राजा मालप की बेटी सुरियल को चुना गया तो राजा ने शादी करने से मना कर दिया। इससे गोगा दुखी हुए और उन्होंने अपने गुरु गोरखनाथ को यह बात बतायी। इस पर गोरखनाथ ने वासुकी नाग को राजा की बेटी पर विष से प्रहार करने को कहा। वासुकी नाग के विष के प्रहार को राजा के वैद्य नहीं तोड़ पाए। इस पर गोगा वेष बदल कर राजा के पास गए और उनसे बेटी को ठीक करने के बदले शादी की मांग रखी, गोगा ने राजकुमारी से गुग्गल मंत्र का जाप करने को कहा। गुग्गल मंत्र के जाप से विष का असर कम हो गया। इसके बाद राजा अपने वचन के अनुसार गोगा देवता से अपनी बेटी की शादी कर दी। जहर को हरने के कारण ही उनका नाम जाहरवीर पड़ा।
लोककथा के अनुसार, चुडु इलाके के गुज्जर जब मुस्लमान बने तो उन्होंने अपने देवता गुग्गा को पीर का नाम दे दिया। जिस कारण गोगा पीर के रूप में भी जाने गए। लेकिन गोगा वीर ही रहे।
गोगा देवता की पूजा रक्षाबंधन से शुरू होकर गोगा नवमी तक चलती है। हिमाचल प्रदेश,पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में गोगा को देवता रूप में पूजते हैं। गोगा देवता की पूजा रक्षाबंधन से शुरू होकर गोगा नवमी तक चलती है। इस दौरान गूगा मंडली के रूप में गायकों का एक समूह घर घर आकर गूगा राणा की कथा लोकभाषा और वाद्ययंत्रों के साथ सुनाते हैं। राखी भी गूगा नवमी के दिन खोल दी जाती हैं। मन्त्रों द्वारा गूगा वीर की सिद्धि भी की जाती है