एक साथ चुनाव की संभावना पर विचार करने वाली राम नाथ कोविन्द समिति की ओर से राष्ट्रपति को सौंपी गई रिपोर्ट कितनी व्यापक है, इसका पता इससे चलता है कि वह करीब 18 हजार पन्नों की है। यह हैरानी की बात है कि इतनी विस्तृत रिपोर्ट पढ़े बगैर ही कई दल उसके विरोध में उतर आए। यह हर सुधार के खिलाफ आंख मूंदकर खड़े हो जाने की आदत का ही उदाहरण है। क्या यह उचित नहीं होता कि एक साथ चुनाव की सिफारिश का विरोध करने के पहले यह जान लिया जाता कि रिपोर्ट में लिखा क्या है?
एक साथ चुनाव के विरोध में जो तर्क दिए जा रहे, वे घिसे-पिटे ही अधिक हैं। इन तर्कों में कोई दम इसलिए नहीं, क्योंकि 1967 तक लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही होते थे। क्या जब ऐसा होता था, तब भारत में लोकतंत्र नहीं था ?
पिछले कुछ समय से तो लोकसभा के साथ ही ओडिशा और आंध्र प्रदेश विधानसभा के भी चुनाव हो रहे हैं। क्या यह संविधानसम्मत नहीं? क्या ऐसा कुछ है कि ओडिशा और आंध्र विधानसभा के साथ ही लोकसभा चुनाव होने से केंद्र में सत्तासीन भाजपा को लाभ मिलता है? पिछली बार तो आंध्र में भाजपा का खाता भी नहीं खुला था। साफ है कि एक साथ चुनाव के विरोध में दिए जा रहे इस तर्क में कोई दम नहीं कि ऐसा होने से राष्ट्रीय दल फायदे में रहेगा।
एक साथ चुनाव के विरोधियों को कम से कम ऐसे तर्क तो देने ही चाहिए, जिन पर गौर किया जा सके। इसी के साथ उन्हें एक देश-एक चुनाव से होने वाले लाभों पर भी गौर करना चाहिए। ऐसा होने से केवल समय और संसाधन की बचत ही नहीं होगी, बल्कि शासन-प्रशासन को विकास और जनकल्याण के लिए काम करने का अधिक समय भी मिलेगा। कोई भी इससे अपरिचित नहीं कि रह-रहकर चुनाव होते रहने और आचार संहिता लागू हो जाने से किस तरह तमाम काम रुक जाते हैं। यह भी किसी से छिपा नहीं कि राजनीतिक दलों को किस तरह अपनी अन्य प्राथमिकताओं को किनारे करके सारी ऊर्जा चुनाव लड़ने में खपानी पड़ती है।
लोकसभा संग विधानसभा चुनाव कराने और इसके बाद सौ दिन के अंदर स्थानीय निकायों के चुनाव कराने की सिफारिश करने वाली समिति ने इस प्रश्न का भी उत्तर दिया है कि यदि पांच, साल का कार्यकाल पूरा करने के पहले कोई सरकार गिर जाती है तो क्या होगा? समिति के अनुसार ऐसी स्थिति में शेष कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं।
आखिर ऐसा करना क्यों नहीं संभव ? इसी तरह क्या यह समय की मांग नहीं कि सभी चुनावों के लिए एकल मतदाता सूची हो ? अच्छा होगा कि कोविन्द समिति की रिपोर्ट खारिज करने वाले नीर-क्षीर ढंग से विचार करें और यह भी देखें कि 32 दल एक साथ चुनाव के पक्ष में हैं।
एक देश एक चुनाव : विरोध क्यों?
Leave a comment