संत दादू दयाल जी

अमरदीप जौली


दादूदयाल मध्यकालीन भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत थे। इनका जन्म विक्रमी संवत् 1601 में फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को अहमदाबाद में हुआ था। पूर्व में दादूदयाल का नाम महाबलि था। पत्नी की मृत्यु के बाद ये सन्यासी बन गये। अधिकांशतः ये सांभर व आमेर में रहने लगे।
1603 में ये राजस्थान में नारायणा में रहने लगे और वही पर इन्होने अपनी देह का त्याग किया। दादूदयाल के 52 शिष्य थे इनमे से रज्जब, सुन्दरदास, जनगोपाल प्रमुख थे। जिन्होंने अपने गुरु की शिक्षाएँ जन जन तक फैलाई। इनकी शिक्षाएँ दादुवाणी में संग्रहित है।
दादूदयाल ने बहुत ही सरल भाषा में अपने विचारों की अभिव्यक्ति की है। इनके अनुसार ब्रह्मा से ओंकार की उत्पति और ओंकार से पांच तत्वों की उत्पति हुई। दादूदयाल ने ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु को अत्यन्त आवश्यक बताया।
अच्छी संगति, ईश्वर का स्मरण, अहंकार का त्याग, संयम एवं निर्भीक उपासना ही सच्चे साधन है। दादूदयाल ने विभिन्न प्रकार के सामाजिक आडम्बर, पाखंड एवं सामाजिक भेदभाव का खंडन किया. जीवन में सादगी, सफलता और निश्छलता पर विशेष बल दिया। सरल भाषा एवं विचारों के आधार पर दादू को राजस्थान का कबीर भी कहा जाता है।
संत दादू जी विक्रमी सं. 1625 में सांभर पधारे यहाँ उन्होंने मानव-मानव के भेद को दूर करने वाले, सच्चे मार्ग का उपदेश दिया। तत्पश्चात दादू जी महाराज आमेर पधारे तो वहां की सारी प्रजा और राजा उनके भक्त हो गए।
उसके बाद वे फतेहपुर सीकरी भी गए जहाँ पर बादशाह अकबर ने पूर्ण भक्ति व भावना से दादू जी के दर्शन कर उनके सत्संग व उपदेश ग्रहण करने की इच्छा प्रकट की तथा लगातार 40 दिनों तक दादूजी से सत्संग करते हुए उपदेश ग्रहण किया। दादूजी के सत्संग से प्रभावित होकर अकबर ने अपने समस्त साम्राज्य में “गौ हत्या” बंदी का फरमान लागू कर दिया।
उसके बाद दादूजी महाराज नरेना (जिला जयपुर) पधारे और उन्होंने इस नगर को साधना, विश्राम तथा धाम के लिए चुना और यहाँ एक खेजडे के वृक्ष के नीचे विराजमान होकर लम्बे समय तक तपस्या की और यहीं पर उन्होंने ब्रह्मधाम “दादू द्वारा” की स्थापना की जिसके दर्शन मात्र से आज भी सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है। तत्पश्चात श्री दादूजी ने सभी संत शिष्यों को अपने ब्रह्मलीन होने का समय बताया।
ब्रह्मलीन होने के लिए निर्धारित दिन (जयेष्ट कृष्ण अष्टमी सम्वत 1660 ) के शुभ समय में संत श्री दादूजी ने एकांत में ध्यानमग्न होते हुए सत्यराम शब्द का उच्चारण कर इस संसार से ब्रहम्लोक को प्रस्थान किया। श्री दादू दयाल जी महाराज के द्वारा स्थापित “दादू पंथ” व “दादू पीठ” आज भी मानव मात्र की सेवा में निर्विघ्न लीन है। वर्तमान में दादूधाम के पीठाधीश्वर के रूप में आचार्य महंत श्री गोपालदास जी महाराज विराजमान हैं। भक्ति आंदोलन को बल प्रदान करने वाले ऐसे महान संत को शत्-शत् प्रणाम।

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