संघ , संचलन व सर्वोच्च न्यायालय – सत्य की विजय।

Nikunj Sood

सर्वोच्च न्यायलय में मिली ऐतिहासिक विजय के बाद गत रविवार को तमिलनाडु के चैन्नई सहित प्रमुख 45 नगरों में आरएसएस के पथ संचल सम्पन्न हुए। सभी 45 स्थानों पर हज़ारों स्वयंसेवको ने अनुशासित व शांतिपूर्वक तरीके से रुटमार्च किया। मन में स्वभाविक प्रश्न उठता है प्रायः विजयादशमी पर संचलन निकलते हैं यह संचलन का समय नहीं फिर भी भारत के एक ही राज्य में इस समय इतने अधिक संचलन एक साथ क्यों ?

वास्तव में सर्वोच्च न्यायलय ने अपने एक निर्णय के द्वारा यह घोषणा की है कि
संघ के पथ संचलन को तमिलनाडु में प्रतिबंधित करने वाली “सभी यचिकाए खारिज की जाती है।” इसके साथ ही तमिलनाडु की स्टालिन सरकार की रिट को निरस्त कर मद्रास उच्च न्यायलय के निर्णय को मान्य करते हुए तमिलनाडु में सभी सार्वजनिक मार्गों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को पथसंचलन करने की अनुमति यथावत रखता है।
संघ क्या है ? संचलन क्यों होते हैं? संघ न्यायलय में क्यों गया ? आदि जानने की जिज्ञासा द्रमुक सरकार ने संचलन पर प्रतिबन्ध लगा व वाद को आगे ले जाकर सभी भारत वासियों के मन में जगा दी है।

वैसे तो भारत में लम्बे समय से संचलन की परम्परा रही है। रामायण, महाभारत से लेकर राजाओं की सेनाओं द्वारा संचलन किया जाता था उनकी पदचाप से
न केवल वीरता का संचार होता था अपितु अरिदल में भयकंप व्याप्त हो जाता था।संचलन में केवल वेशभूषा की समानता का व एक साथ पंक्तिबद्ध चलने के बाहरी दृश्य का ही महत्व नहीं होता बल्कि संचलन करने वाले प्रत्येक सैनिक का ह्रदय भी आपस में जुड़ जाता है,जो इसकी उपयोगिता को और अधिक गुणवतापूर्ण बनाता है।संचलन गति व दिशा का अद्वितीय संयोजन भी है।

वस्तुतः संघ भारत की सुप्त चेतना जागृतकर, हिन्दुओं को संगठित करने के साथ समाज में जीवन मूल्य स्थापित करने का कार्य गत 98 वर्षों से निरन्तर कर रहा है। संघ के स्वयंसेवकों को समाज में अनुशासन व देशभक्ति से पहचाना जाता है ,व्यक्ति में अनुशासन लाने के लिए संघ अनेक गतिविधियाँ चलाता है उनमें से एक महत्वपूर्ण गतिविधि है पथसंचलन।
आज के युग में जब सामने देखते हुए, कंधे से निकलती भुजाएँ, बंद मुट्ठी, बिना घुटना उठाए ,एड़ी के बल पैर रखते हुए सीध मिलाकर जब आरएसएस की रणधुन निकालते बैंड के साथ स्वयंसेवक ह्रदय में राष्ट्रभक्ति का भाव लिए देश की एकता व अखण्डता के लिए कदम से कदम मिलाकर साथ-साथ चलते हैं, तो यह दृश्य वास्तव में अद्भुत और मनमोहक होता है।
संघ में प्रारम्भ के समय संचलन
मातृभूमि गान से गूंजता रहे गगन…..जैसे गीत, कोरस , सीटी व एक दो एक की आवाज के साथ होता था, समय के साथ इसमें बैण्ड को भी सम्मलित किया गया। साईड ड्रम की ताल ,बैस ड्रम का निनाद , बिगुल की ध्वनि, वंशी का मधुर स्वर व झलरी की झंकार मानो राजपथ पर होने वाली परेड का सा आभासी दृश्य उत्पन्न कर देती है।
संघ की हर यूनिट के इस सालाना आयोजन में विद्यार्थी, कलासाधक,
श्रमजीवी,कृषक ,व्यापारी ,प्रोफेशनर्स , शिक्षाविद अर्थात समाज के प्रत्येक वर्ग ,जाति के स्वयंसेवक एवं गृहणियां व युवतियां राष्ट्र सोविका समिति की सेविकाएं सफेद साड़ी अथवा सूट व गुलाबी चुन्नी के साथ संचलन में सहभाग करती हैं
हिन्दु समाज की संगठित शक्ति का यह प्रर्दशन दुःर्जनो को मर्यादित रहेने व सज्जनों के संरक्षण का अभिवचन है , ऐसे संचलन की समाज को भी उत्सुकता से प्रतीक्षा रहती है। पथ संचलन के मार्गों पर रंगोली निकालना, स्वागत द्वार लगाना व दोनों हाथों से भगवाध्वज पर पुष्पवर्षा करना,मन में सम्मान का भाव लिए भारत माता के जयघोष करना , संघ के समर्थन व सहयोग देने हेतु समाज की तत्परता दर्शाता है।
नए लोग इसे संघ की दशहरा रैली भी कहेते हैं, यह विजयदशमी पर होने वाली शक्ति की पूजा का प्रतीक है।
संचलन के महीनो पूर्व शाखाओं पर अभ्यास व आरएसएस ऑफ़िस में ड्रेस लेने वालों की चहल पहल बढ़ जाती है, इस समय बालकों का उत्साह भी देखते ही बनता है। एक ही परिवार की तीन चार पीढ़ी एक साथ संघ के यूनिफॉर्म में दिखायी देती है कभी कभी एक या अधिक जिलों का तीन की बजाय चार व छः पंक्तियों में द्विधारा व त्रिवेणी संचलन और अधिक विराट एवं प्रभावकारी दृश्य उत्पन्न करते हैं।
संचलन में चलने वाला आत्मविश्वास से भरा बाँका जवान अपने शीष पर टोपी धारण कर, उन्नत ललाट पर सुशोभित चंदन का लम्बा तिलक, सिंह समान नेत्रों में तेज, आभायुक्त मुखमण्डल, चौड़ा सीना,तनी हुई भुजाएं,सधे कदम से चुनौती को ललकारता ,बाधाओं को रोन्धता, आकर्षक रोबीला, जिसे देश धर्म पर नाज है ऐसे स्वयंसेवको के समूहों द्वारा नागरिक अनुशासन की झलक मिलती है।

अतीत में पथ संचलन की समयबद्धता व सेनासम दृश्यों से पराक्रमी सुभाषचंद्र बोस व भारत के प्रथम सेनाध्यक्ष जनरल करिअप्पा भी प्रभावित हुए थे।

संघ स्वयं की नहीं भारत की जय की आकांक्षा रखता है, सच्चा स्वयंसेवक नाम यश की चाह से दूर रहना चाहता है तो भी मीडिया की सजगता व स्नेह से सभी समाचार पत्रों व चैनलों में संचलनों का चित्र व वीजुअल सहित उचित व पर्याप्त स्थान मिलता है परंतु संघ की यह लोकप्रियता,जिसकी न कभी संघ ने चाह की न कभी महिमामंडन की इच्छा रखी।

फिर भी पता नहीं क्यों, संघ द्वारा सहजता पूर्वक चलने वाले व्यक्ति रचना व समाज परिवर्तन के कार्य को द्वेष के कारण कुछ लोगों को रास नहीं आता। संभवत ऐसे लोग भारत को ना कभी एक राष्ट्र के रूप में देखने को तैयार थे ना आज हैं। इसलिए अपनी कुंठित मानसिकता व हर विषय को राजनीतिक स्वार्थ के वशीभूत होकर देखते हैं। सत्ता व विधिव्यवस्था के दुरुपयोग द्वारा इस प्रकार की कुत्सित मानसिकता का प्रदर्शन भी करते रहते हैं।
परंतु संघ ने सदैव धैर्य के साथ,संविधान में विश्वास रख, न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष दृढ़ता से रखा।
अपनी मर्यादा व परम्परा को ध्यान में रखते हुए इस बार भी तमिलनाडु में संचलन की अनुमति ना मिलने पर संघ ने सेशन से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक न्याया का रास्ता अपनाते हुए हर स्तर पर तानाशाह सरकार को चुनौती दी।
अंततोगत्वा छद्म सेक्युलर सरकार का दम्भ हारा, निरंकुशता सरीखी सता झुकी ,संघ सफल हुआ, भारत के विचार की जय हुई, अभारतीय विचार पराजित हुआ।
स्वयंसेवकों को संचलन की अनुमती मिली ।
अनुमान है सत्य की विजय का उत्सव सम्पन्न करने के लिए संघ रुकेगा नहीं बल्कि भारत को विश्वगुरु बनाने तक आगे बढ़ता ही रहेगा।

शीतल
युवा लेखिका

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