संत श्री सुनील सागर जी महाराज अन्य जैन संत सहित विश्व हिन्दू परिषद् के कार्यकर्ता फव्वारा सर्कल से दरगाह बाजार होते हुए ढाई दिन का झोपड़ा पर अवलोकन के लिए पहुंचे. जैन समाज के अनुसार ढाई दिन का झोपड़ा पूर्व में संस्कृत विद्यालय होने से भी पूर्व एक जैन मंदिर या स्थल था.
मौके पर पहुंचने पर स्थानीय मौलाना के साथ विवाद भी हुआ, स्थानीय मौलाना ने संतों को अंदर आने से मना किया. जिस पर परिषद के कार्यकर्ताओं ने विरोध किया. बातचीत के बाद संत और परिषद के पदाधिकारी अंदर गए और ढाई दिन के झोपड़े का अवलोकन किया.
तरुण मेहरा ने कहा कि ढाई दिन का झोपड़ा एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर है. अतः आज यहां का अवलोकन संतों द्वारा किया गया तथा अब जैसे भी भविष्य में संतों का निर्णय और मार्गदर्शन रहेगा उस पर संपूर्ण समाज व परिषद सहयोग करेगा.
धार्मिक-सांस्कृतिक धरोहर के अवलोकन के पश्चात संत श्री सुनील सागर जी महाराज ने कहा कि
इतिहास गवाह है कि किस तरह से हमारे पूर्वजों ने धर्म संस्कृति को बनाए रखा. इतिहास के पन्नों को टटोला जाए तो हमारी पौराणिक संस्कृति हमारे इतिहास का परिचय दे देगी. संस्कृत पाठशाला एवं मंदिर के पौराणिक अवशेष के संकेत आज भी परीदर्शित होते हैं. हमारी सांस्कृतिक धरोहर जीवित रहनी चाहिए. उन्होंने कहा कि धर्म प्रेम से रहना सिखाता है, लड़ना नहीं. जिसकी जो वस्तु है वो उनके अधिकार में होनी चाहिए.
ढाई दिन का झोपड़ा हमारी सांस्कृतिक धरोहर – संत श्री सुनील सागर जी महाराज
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