महात्मा और तीन मित्र

अमरदीप जौली


एक महात्मा के पास तीन मित्र गुरु-दीक्षा लेने गए। तीनों ने बड़े नम्र भाव से प्रणाम करके अपनी जिज्ञासा प्रकट की। महात्मा ने शिष्य बनाने से पूर्व पात्रता की परीक्षा कर लेने के मंतव्य से पूछा – “बताओं कान और आँख में कितना अंतर है?”

एक ने उत्तर दिया -“केवल पाँच अंगुल का, भगवन्!” महात्मा ने उसे एक ओर खड़ा करके दूसरे से उत्तर के लिए कहा। दूसरे ने उत्तर दिया -“महाराज आँख देखती है और कान सुनते हैं, इसलिए किसी बात की प्रामाणिकता के विषय में आंख का महत्त्व अधिक है।” महात्मा ने उसको भी एक ओर खड़ा करके तीसरे से उत्तर देने के लिए कहा। तीसरे ने निवेदन किया -” भगवन्! कान का महत्व आँख से अधिक है। आँख केवल लौकिक एवं दृश्यमान जगत को ही देख पाती है, किंतु कान को पारलौकिक एवं पारमार्थिक विषय का पान करने का सौभाग्य प्राप्त है।” महात्मा ने तीसरे को अपने पास रोक लिया। पहले दोनों को कर्म एवं उपासना का उपदेश देकर अपनी विचारणा शक्ति बढ़ाने के लिए विदा कर दिया। क्योंकि उनके सोचने की सीमा ब्रहम तत्त्व की परिधि में अभी प्रवेश कर सकने योग्य सूक्ष्म बनी न थी।

Leave a comment
  • Facebook
  • Twitter
  • LinkedIn
  • Email
  • Copy Link
  • More Networks
Copy link
Powered by Social Snap