जयपुर डायलॉग के वार्षिक सम्मेलन में एक महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा हो रही थी। चर्चा के दौरान, अश्विनी उपाध्याय जी ने कुछ रोचक तथ्य प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि इस देश के छह लाख गाँवों में से डेढ़ लाख गाँवों में हिंदू अब अल्पसंख्यक हो गए हैं। 640 जिलों में से 200 जिलों में हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं, और देश के नौ राज्यों में भी हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं।
इस आँकड़े को देखकर कई लोग कह सकते हैं कि अश्विनी उपाध्याय बीजेपी के व्यक्ति हैं, इसलिए इस तरह की बात कर रहे हैं। लेकिन वे जानते हैं कि अश्विनी उपाध्याय जी जो कह रहे हैं, वह सत्य है। हिंदू समाज के सामने अब अस्तित्व का संकट दिखाई देने लगा है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो कुछ वर्षों में भारत हिन्दू-विहीन हो सकता है।
पहले हज़ार वर्षों के गुलामी कालखंड में कभी ऐसी स्थिति नहीं बनी कि हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएँ। लेकिन पिछले 70 वर्षों की तथाकथित स्वतंत्रता के बाद ऐसी स्थिति कैसे उत्पन्न हो गई कि इस देश में हिंदू अल्पसंख्यक होते जा रहे हैं? इस पर किसी ने चिंतन नहीं किया। 11वीं सदी से 1947 तक हज़ार वर्षों की गुलामी के बावजूद वर्तमान भारत के भूभाग में 85% हिंदू जनसंख्या थी। ऐसा क्या हुआ कि इन 70 वर्षों में हिंदू घटकर 85% से 78% तक पहुँच गए?
इस बार की जनगणना में हिंदुओं की संख्या 78% होने की संभावना है, फिर भी इस पर कोई चिंतन क्यों नहीं कर रहा है कि पिछले 70 वर्षों में हिंदुओं की जनसंख्या क्यों घट रही है? जब इस देश में लोकतंत्र, संविधान, पुलिस, न्यायपालिका, और सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, और मीडिया भी है, फिर भी यहाँ हिंदू घट क्यों रहे हैं?
स्वतंत्रता के बाद डेढ़ लाख गाँवों में हिंदू अल्पसंख्यक कैसे हो गए और 640 जिलों में से 200 जिलों में भी हिंदू अल्पसंख्यक कैसे हो गए हैं? कुछ गाँव और जिले ऐसे हैं जहाँ एक भी हिंदू नहीं है। लगातार हिंदुओं की आबादी क्यों घट रही है?
तथाकथित स्वतंत्रता के बाद हिंदू शिक्षा व्यवस्था को पुनः स्थापित करने के लिए प्रयास क्यों नहीं हुए, और आज भी क्यों नहीं हो रहे हैं? किसका दबाव है? अब हिंदू परिवार व्यवस्था को रणनीतिक तरीके से ध्वस्त करने का प्रयास शासन, कार्यपालिका, न्यायपालिका, मीडिया और फिल्म इंडस्ट्री द्वारा सुव्यवस्थित तरीके से किया जा रहा है, फिर भी सरकार और समाज के बड़े वर्ग द्वारा इसका विरोध क्यों नहीं किया जा रहा है? यदि यह यूँ ही चलता रहा, तो अगले 10 से 15 वर्षों में हिंदू परिवार व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो जाएगी, लेकिन इस पर कोई विचार नहीं कर रहा है। अगर देश में लोकतंत्र, संविधान और बराबरी का अधिकार सभी को मिला हुआ है, तो हिंदुओं की संख्या लगातार क्यों घट रही है? क्या आपने इस पर कभी चिंतन किया है?
हमने कभी इस विषय पर विचार किया है कि हिंदुओं की जनसंख्या क्यों घट रही है? इसके कारणों को जानने का प्रयास क्यों नहीं किया? कारणों को जानने के बाद समाधान खोजने का प्रयास क्यों नहीं किया गया? कई लोग मानते हैं कि हम एक विशेष हिंदू पार्टी को वोट देकर अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं, और वही हमारी सुरक्षा सुनिश्चित करेगी। लेकिन क्या किसी विशेष हिंदू पार्टी पर 100% विश्वास किया जा सकता है?
हमने विशेष हिंदू पार्टी को वोट दिया, ताकि वे हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करें। लेकिन क्या यह गारंटी है कि वह हिंदू पार्टी विधर्मियों के साथ मिलकर वही नहीं करेगी जो एक विशेष पार्टी और एक विशेष महात्मा ने स्वतंत्रता के 30 वर्ष पहले शुरू किया था, जिसका परिणाम हमने भारत विभाजन के रूप में देखा? इसमें लाखों आम हिंदुओं का नरसंहार हुआ था, करोड़ों लोगों को घर-बार छोड़कर दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी थीं। इसके बाद, पहले एक विशेष पार्टी ने इस देश को हिंदू-विहीन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दूसरी विशेष पार्टी में हिंदू बोध तो कूट-कूट कर भरा गया, लेकिन मित्र-बोध, शत्रु-बोध और सनातन हिंदू धर्म का बोध नहीं था। क्या उस विशेष हिंदू पार्टी पर 100% विश्वास किया जा सकता है? क्या उस पर विश्वास करके सब कुछ छोड़ा जा सकता है? क्या हम अपनी तैयारियाँ स्वयं नहीं कर सकते हैं?
“हिंदू समाज की जनसंख्या घटने, हिंदू शिक्षा व्यवस्था, हिंदू परिवार व्यवस्था और समाज व्यवस्था के ध्वस्त होने के क्या कारण हैं, इसका समाधान निकालने के विषय पर क्या हम चिंतन करेंगे? क्या हम वर्तमान राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था की समीक्षा करेंगे? क्या हम हिंदू धर्म के उत्थान के लिए कुछ कर सकते हैं, इस पर विचार करेंगे? जिस दिन हिंदू समाज इन प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयास करेगा और इन्हें समझेगा, उस दिन हिंदू समाज की सभी समस्याओं का समाधान मिल जाएगा।”
✍️ दीपक कुमार द्विवेदी