जम्मू कश्मीर. 75 वर्षों के इतिहास में पहली बार है कि कश्मीर में किसी अंतरराष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है. जम्मू कश्मीर के श्रीनगर स्थित ‘शेर-ए-कश्मीर कन्वेंशन सेंटर’ में G-20 की बैठक चल रही है. आज बैठक का अंतिम दिवस है. बैठक में पर्यटन, फिल्म, आतंकवाद, और रोज़गार से जुड़े विषयों पर चर्चा हुई. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य को लेकर भी चर्चा हुई.
जम्मू कश्मीर में अंतिम बड़ा आयोजन – 1986 में भारत-ऑस्ट्रेलिया का मैच था. उसके बाद लगभग 37 साल बाद घाटी में ये सबसे बड़ा आयोजन है. घाटी में हो रहे परिवर्तन का ही परिणाम है कि वर्ष 2022 में रिकॉर्ड पौने 2 करोड़ से अधिक पर्यटक जम्मू कश्मीर पहुँचे थे. वहीं, इस बार ये आँकड़ा 2 करोड़ को पार कर सकता है. लेकिन यह सब अलगाववादी नेताओं और पाकिस्तान को रास नहीं आ रहा है.
अलगाववादी नेताओं से यह परिवर्तन देखा नहीं जा रहा है. इस बात को पचा पाना मुश्किल हो रहा है कि प्रदेश में इतने बड़े स्तर का आयोजन किया जा रहा है. यह सभी अलगाववादी नेता पाकिस्तान की भाषा बोल रहे हैं. G20 के आयोजन से पाकिस्तान को भी मिर्ची लगी है.
दरअसल, G20 की बैठक अलगाववादियों की राजनीति के लिए बड़े झटके से कम नहीं है. सब जानते हैं कि कैसे अलगाववादियों द्वारा यह बताने का प्रयास किया जाता रहा है कि प्रदेश में कुछ भी सामान्य नहीं है. कश्मीर की हालत बद्दतर है.
बहरहाल, इस इवेंट को आधार बनाकर फारूक अब्दुल्ला जम्मू संभाग पहुँचे थे और वहां लोगों को यह कहते हुए भड़काने का प्रयास किया कि देखिए कैसे श्रीनगर में बैठक का आयोजन हो रहा है, लद्दाख में बैठक का आयोजन हो रहा है. लेकिन जम्मू में नहीं हो रहा. यानि जो इंसान कल तक घाटी के लोगों के मन में ज़हर भरने का काम किया करता था, आज वही इंसान अब जम्मू पहुँचकर लोगों को भड़काने का काम कर रहा है. फारूक अब्दुल्ला ने G20 की बैठक को महज़ एक नाटक तक करार दे दिया.
G20 की सुरक्षा में तैनात सुरक्षाबलों को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने आरोप लगाया कि श्रीनगर में G20 की बैठक से पहले सुरक्षा बल घरों में घुसकर कश्मीरी नागरिकों की निजता का उल्लंघन कर रहे हैं. पीडीपी प्रमुख ने यह दावा आतंकी गतिविधियों में संलिप्त और जेल में बंद अलगाववादी नेता शब्बीर शाह की बेटी सहर शब्बीर शाह के घर की तलाशी लेने के बाद किया. यानि महबूबा यहाँ भी अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने में लगी रही.
बेंगलुरू में पत्रकारों से बात करते हुए महबूबा मुफ़्ती ने तो यहाँ तक कह दिया कि भाजपा ने इस पूरे समिट को हाईजैक कर लिया है. उनका आरोप है कि सरकार ने G20 का जो लोगो डिज़ाइन किया वो भाजपा के कमल का निशान है. वो यहीं नहीं रुकीं, उन्होंने आरोप लगाया कि G20 की आड़ में कश्मीर के मासूम युवाओं को गिरफ़्तार किया जा रहा है. उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है. घाटी में सैकड़ों युवाओं को जेल में डाल दिया गया है.
पर सच्चाई क्या है? हक़ीक़त यह है कि महबूबा जिन लोगों को युवा और मासूम बता रही हैं, वे दरअसल आतंकी मददगार हैं या फिर आतंकी गतिविधियों में संलिप्त हैं. ये वो लोग थे, जिन्हें उनके आकाओं से पूरे सम्मेलन का माहौल बिगाड़ने की ज़िम्मेदारी मिली थी.
महबूबा को इस बात की ख़ुशी नहीं है कि प्रदेश में इतना बड़ा आयोजन हो रहा है जो जम्मू कश्मीर को एक नई पहचान देगा. बल्कि वो तो हमेशा की भाँति आतंकियों के लिए आंसू बहाते हुए सुरक्षाबलों पर सवाल खड़ी करती नज़र आईं.
खून की नदियाँ बहेंगी, तिरंगा उठाने वाला कोई नहीं मिलेगा, आतंकियों को मासूम और भटका हुआ बताने वाले ये वही लोग हैं जो अक्सर आतंकियों के लिए अपने ही देश की सेना पर सवाल खड़े करते आए हैं.
अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद आज तेज़ी से बदलते जम्मू कश्मीर में आतंकवाद को लेकर बात नहीं होती, अलगाववाद को लेकर बात नहीं होती, ना ही अलगाववादियों द्वारा प्रायोजित प्रदर्शन और पत्थरबाज़ी को लेकर बात होती है. अब विकास पथ पर तेज़ी से अग्रसर होते नए जम्मू कश्मीर में विकास की बात होती है और युवाओं को बेहतर शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य, बेहतर सड़क मार्ग, बेहतर रोज़गार और स्किल डेवलपमेंट से जुड़ी संभावनाओं की बात होती है.
शायद यही कारण है कि आतंकवाद का सबसे बड़ा मसीहा हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान को और भारत में बैठे उनके हमदर्द अलगाववादी नेताओं को यह सब कुछ पचाना संभव नहीं हो पा रहा. अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद इन अलगाववादियों की दुकानें पूरी तरह से बंद हो चुकी हैं. इनके कच्चे चिठ्ठे देश की जानता के सामने आ चुके हैं. लिहाज़ा बौखलाहट में यह प्रदेश में होने वाले तमाम बड़े राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर के सम्मेलनों पर सवाल खड़े करने में लगे हैं.
जिस जम्मू-कश्मीर को लेकर दुनिया भर के मंचों पर पहले गलतबयानी होती थी, आज उसी कश्मीर को 17 देशों के प्रतिनिधियों ने भारत का अभिन्न अंग स्वीकारा है. ये स्थिति तब है, जब कश्मीर को लेकर पाकिस्तान और चीन दुनिया भर को गीदड़ भभकी देने की कोशिश करते रहे. G-20 देशों में तुर्की, चीन और सउदी अरब को छोड़कर सभी देशों के प्रतिनिधि सम्मेलन में पहुंचे तो यहां के माहौल की जमकर प्रशंसा की. जो देश ना भी आए, उन्होंने कश्मीर में हुए आयोजन को लेकर कोई गलत शब्द नहीं कहा. ये एक नई शुरुआत है.
केंद्र सरकार के इस अथक प्रयास के बाद आज अलगाववादियों के मंसूबे टूट गए हैं. आतंकवाद पर निर्णायक चोट हुई है. सरकार ने ना सिर्फ कूटनीति, बल्कि विकास के हर स्तर पर दुनिया को यह दिखाया है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. G-20 का सम्मेलन इस बात का प्रमाणिक आयोजन है कि जम्मू कश्मीर कितना बदल चुका है. कभी अतीत में जिस घाटी को लेकर दुनिया में संशय दिखता था, आज वहाँ जी-20 के शिखर सम्मेलन के आयोजन ने दिखाया है कि हिंदुस्तान के जम्मू-कश्मीर का वर्तमान कितना बुलंद है.
तीन महत्वपूर्ण फायदे
1- पाकिस्तान जब से आस्तित्व में आया तभी से वो यह दावा करता आ रहा है कि जम्मू कश्मीर पर उसका अधिकार है. 80 और 90 के दशक में जम्मू कश्मीर में फैले पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के बाद विश्व के सामने जम्मू कश्मीर की एक अलग छवि बनी हुई थी. लोगों का मानना था कि वहाँ जाना खतरों से खाली नहीं है. लेकिन G20 देशों के प्रतिनिधियों ने जम्मू कश्मीर में आकर बता दिया कि जम्मू कश्मीर ना तो डिस्प्यूटेड एरिया है और ना ही अब पहले की भाँति यहाँ कोई ख़तरा है.
2- जम्मू कश्मीर जाने से पहले अपने ही देश के लोग डरा करते थे. लेकिन इस बैठक के बाद लोगों के मन का वहम भी दूर हो चुका है. अब जम्मू कश्मीर में पर्यटन को बढ़ावा देने से कोई नहीं रोक सकता. अनुच्छेद 370 के खात्में के बाद जम्मू कश्मीर में पर्यटकों की संख्या में भी ज़ोरदार वृद्धि हुई है. साथ ही उद्योग के भी नये अवसर खुलेंगे.
3- घाटी में फैले आतंकवाद के चलते किसी भी फिल्म की शूटिंग करने के लिए भी लोग डरते थे. लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है. अब फिल्म पर्यटन को भी तेजी से बढ़ावा मिलेगा. जिससे वहाँ के लोगों को रोज़गार मिलेगा.
G20 की ऐतिहासिक बैठक – पाकिस्तान और अलगावादी नेताओं में इतनी बौखलाहट क्यों?
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