संघ शाखाओं में मनाया गया स्वतंत्रता दिवस-नरेंद्र सहगल

Shiwani K

‘संघ ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग नहीं लिया’ – ‘संघ अंग्रेजों का दलाल था’ इस तरह के अनर्गल और आधारहीन आरोप संघ पर वही लोग लगाते हैं जो स्वयं अंग्रेजों की इच्छा, योजना और उद्देश्य के साथ तालमेल बिठाकर ‘स्वतंत्रता आंदोलन’ का नाटक करते रहे। जबकि संघ के स्वयंसेवक अपने तथा अपने संगठन के नाम से ऊपर उठकर प्रत्येक ढंग से लड़े जा रहे स्वतंत्रता संग्राम में बढ़चढ़ कर भाग लेते रहे।

संघ की स्थापना (1925) से 1947 तक संघ के स्वयंसेवकों ने क्रांतिकारियों का साथ भी दिया और महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में संचालित सभी सत्याग्रहों में भाग लेकर जेल की यातनाएं भी सहन की। संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार स्वयं दो बार कारावास में रहे। संघ के स्वयंसेवकों की स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण पार्श्व भूमिका का विस्तृत वर्णन तो मैं अपने आगामी लेखों में करूंगा इस लेख में 26 जनवरी 1930 को देशव्यापि आयोजित स्वतंत्रता दिवस का संक्षिप्त वर्णन ही होगा।

1925 में स्थापित संघ के स्वयंसेवक शाखा में भारत के सांस्कृतिक ध्वज और भारतीय राष्ट्र जीवन की पहचान एवं प्रतीक भगवा ध्वज के समक्ष एक प्रतिज्ञा करते थे जो इस प्रकार थी – “मैं अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए तन-मन-धन पूर्वक आजन्म और प्रामाणिकता से प्रयत्नरत रहने का संकल्प लेता हूँ।“ डॉ. हेडगेवार ने संघ स्थापना के समय घोषणा की थी “हमारा उद्देश्य हिन्दू राष्ट्र की पूर्ण स्वतंत्रता है, संघ का निर्माण इसी महान लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए हुआ है।“

अब हम अपने मूल विषय पर आते हैं। यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है कि ए. ओ. हयूम द्वारा गठित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपने जन्मकाल 1885 से लेकर 1929 तक कभी भी भारत की ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ की बात नहीं की। कांग्रेस ‘स्वराज्य’ पर ही टिकी रही, वह भी ब्रिटिश साम्राज्यवाद के अंतर्गत ‘उपनिवेश’ (डोमीनीयन स्टेट) के रूप में। परंतु दिसंबर 1929 को लाहौर में सम्पन्न कांग्रेस के अखिल भारतीय अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पारित कर दिया गया। परंतु ‘उपनिवेश’ नहीं चाहिए, ऐसा नहीं कहा गया।

अखंड भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के ध्वजवाहक डॉ. हेडगेवार ने पूर्ण स्वतंत्रता के इस आधे-अधूरे प्रस्ताव का भी स्वागत किया था। 26 जनवरी 1930 को देश के प्रत्येक प्रांत में स्वतंत्रता दिवस मनाने वाले नेहरू के आदेश पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए समस्त देश में संघ की शाखाओं में स्वतंत्रता दिवस मनाने का निर्देश दिया। कांग्रेस तथा संघ द्वारा देशभर में स्वतंत्रता दिवस मनाने का ये प्रसंग एक ऐतिहासिक दस्तावेज बन गया।

21 जनवरी 1930 को डॉ. हेडगेवार ने सभी संघ शाखाओं के नाम एक पत्र भेजा – “संघ के स्वयंसेवकों को इस बात से अपार प्रसन्नता हुई की अखिल भारतीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता के हमारे लक्ष्य को स्वीकार कर लिया है। उस लक्ष्य की ओर अग्रेसर होने वाली किसी भी संस्था को सहयोग करना हमारा कर्तव्य है। इसलिए संघ की सभी शाखाएं रविवार 26 जनवरी 1930 को सायंकाल छः बजे अपने-अपने संघ स्थानों पर सभी स्वयंसेवकों की सभा आयोजित करके राष्ट्रीय ध्वज का वंदन करें। भाषण के रूप में सभी को स्वतंत्रता का सही अर्थ और सही ध्येय व्याख्या सहित स्पष्ट करें तथा कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता के ध्येय को स्वीकार किया है, इसलिए कांग्रेस का अभिनंदन भी करें।“

आदेश मिलते ही सभी शाखाओं के अधिकारियों ने विभिन्न कार्यक्रमों की रचना की। 26 जनवरी सायं 6 बजे भगवा ध्वज की वंदना करने के बाद राष्ट्रभक्तिपूर्ण गीतों के साथ पूर्ण गणवेश में पथ संचलन भी निकाले गए। इन कार्यकर्मों में गणमान्य नागरिकों को भी बुलाया गया। स्वयंसेवकों ने स्वाधीनता प्राप्ति तक संघर्षरत रहने की प्रतिज्ञा की।

उल्लेखनीय है कि देशभक्त, कर्तव्यनिष्ठ, अनुशासित स्वयंसेवकों ने अपने तथा संगठन के नाम को पीछे करके किसी भी संस्था (विशेषतया कांग्रेस) द्वारा संचालित स्वतंत्रता आंदोलनों में देश सेवक के नाते पूरी शक्ति झोंक दी।

नरेंद्र सहगल

वरिष्ठ लेखक व पत्रकार

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