इंदौर. समलैंगिकता के विषय़ पर सर्वोच्च न्यायालय में चल रही सुनवाई को लेकर शहर के विभिन्न सामाजिक संगठनों की लगभग 2500 मातृशक्ति की उपस्थिति में 650 महिलाओं द्वारा हस्ताक्षरित ज्ञापन भेजा गया. ज्ञापन महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को संबोधित इंदौर कलेक्टर टी इल्लैयाराजा के माध्यम से प्रेषित किया.
ज्ञापन के माध्यम से समाज ने अपनी चिन्ता व निम्न बिंदुओं पर आपत्ति व्यक्त की –
- भारत ही नहीं सभी एशियाई देशों में विवाह कानूनी कांट्रेक्ट नहीं, अपितु संस्कार है. यह दो शरीरों का मिलन नहीं, दो परिवारों का विस्तार है. यह भारत की परिवार व्यवस्था ही है, जिसके कारण सैकड़ों विदेशी आघातों के बाद भी भारतीय परंपरा व संस्कृति जीवित है. अंग्रेजों और वामपंथियों द्वारा हुए सांस्कृतिक हमलों, षड्यंत्रों के बाद भी भारतीय समाज अपनी अस्मिता की रक्षा करता हुआ संगठित है. इसी प्राचीन परिवार व्यवस्था को छिन्नभिन्न करने की साजिश सर्वोच्च न्यायालय की आड़ में की जा रही है.
- माननीय सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या करने की संवैधानिक शक्ति का सम्मान करते हुए हम ये विनम्रता से कहना चाहते हैं कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देना एक कानूनी मुद्दे के साथ साथ एक जटिल सामाजिक मुद्दा भी है. अत: हमारा सर्वोच्च न्यायालय से केवल इतना निवेदन है कि इस जटिल मुददे पर जनता द्वारा चुने गए जन प्रतिनिधियों के माध्यम से केवल विधायिका को ही निर्णय लेने दिया जाए, साथ ही समाज के विभिन्न समूहों व सामाजिक -धार्मिक नेतृत्व से गंभीर विचार -विमर्श के उपरान्त ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जाए.
- स्पेशल मैरिज एक्ट के साथ साथ कई और प्रचलित कानूनों में बदलाव करने होंगे, जो अपने आप में एक बड़ा काम होगा. उदाहरण के लिए जिन-जिन कानूनों में महिलाओं को लिंग के आधार संरक्षण दिया गया है, वह सरंक्षण समलैंगिक जोड़े में से किसको मिलेगा. विशेषकर घरेलू हिंसा से महिलाओं का सरंक्षण अधिनियम, ऐसे ही दत्तक ग्रहण कानून जो किसी पुरुष को किसी बालिका को गोद लेने से प्रतिबंधित करता है.
- सामाजिक स्तर पर भी समलैंगिक विवाह को मान्यता हमारी स्थापित परिवार संस्था को विपरीत रूप से प्रभावित करेगी. जब इस तरह के जोड़े अगर वैधानिक रूप से किसी बालक या बालिका को गोद लेते है एवं अपना परिवार बनाते हैं तो उस बालक या बालिका के बाल मन एवं मस्तिष्क पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा. जिससे आगे चलकर वे समाज के प्रति आक्रोशित ही रहेंगे. इस तरह हमारे समाज की स्थापित परिवार नामक संस्था पर एक कुठाराघात होगा.
इस तरह से यह विषय गम्भीर प्रकृति का होकर किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं हैं, ऐसे विषय पर देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनवाई की जल्दबाजी अनेक संदेहों को जन्म देती है.
इस अवसर पर शहर के विभिन्न सामाजिक संगठनों प्रमुख लोग उपस्थित रहे….
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