अपने पूर्वजों के संस्कारों की पूंजी को बचाना हमारा धर्म – विजय मनोहर तिवारी

Nikunj Sood

इंदौर. देवर्षि नारद जी के पत्रकारिता आदर्श को समाज के सम्मुख प्रस्तुत करने हेतु हर वर्ष सृष्टि के सर्वप्रथम संवाददाता देवर्षि नारद की जयंती पर कार्यक्रम आयोजित किया जाता है. इसी क्रम में एसजीएसआईटीएस के गोल्डन जुबली सभागार में विश्व संवाद केंद्र मालवा, प्रेस क्लब इन्दौर तथा पत्रकारिता विभाग देवी अहिल्या विवि द्वारा कार्यक्रम आयोजित किया गया. मां सरस्वती व देवर्षि नारद जी के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलित कर माल्यार्पण के साथ कार्यक्रम आरंभ हुआ. माधव शर्मा जी ने वैदिक पद्धति से श्री नारद स्तोत्र का पाठन किया.
इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविंद तिवारी जी ने गत वर्ष में पत्रकारिता जगत के वे स्तंभ जिनका निधन हुआ, उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. पद्मश्री अभय छजलानी, डॉ. वेद प्रताप वैदिक, महेन्द्र सेठिया, विमल झांझरी, प्रोफेसर सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी, श्रीकृष्ण बेडेकर, दिलीप सिंह ठाकुर, कल्याण सिंह निराला, सुरेन्द्र सिंह पवार, एस एम यूनुस को श्रद्धांजलि अर्पित की.
मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के अरविंद जवलेकर ने कार्यक्रम अध्यक्ष के रूप में प्रस्तावना रखते हुए कहा कि नारद जी का संचार का उद्देश्य लोक मंगल था. उन्होंने देव और असुरों के मध्य भी संवाद किया, ताकि समाज को उसका लाभ प्राप्त हो. स्वतंत्रता के पूर्व, पत्रकारिता का उद्देश्य देश की स्वतंत्रता था. किंतु अब पत्रकारिता अपने उद्देश्य से दूर होती दिखती है.
मुख्य वक्ता मध्यप्रदेश के सूचना आयुक्त और वरिष्ठ पत्रकार विजय मनोहर तिवारी जी ने कहा कि पत्रकारों का उद्देश्य मात्र समाचारों का प्रेषण करना नहीं है, बल्कि सम्पूर्ण इतिहास को जानना है. उदाहरण देते हुए कहा कि भोजशाला का जब विवाद चल रहा था, तब उस विषय को कवरेज करने वाले पत्रकारों को भी भोजशाला के इतिहास के विषय में पता नहीं था. वे केवल कवरेज के बारे में ही सोच रहे थे.
जब अंग्रेज देश में शोषण कर रहे थे, तब सामान्य भारतीयों ने अपनी क्षमता के अनुसार अनेकों समाचार पत्र प्रारंभ किए. आज पत्रकारिता को भारत के मूल्यों के संरक्षण के लिए कार्य करना होगा.
पुराने समय में पत्रकारों ने विषम परिस्थितियों में भी भारत की संस्कृति का व्यापक प्रचार प्रसार सीमित संसाधनों के बावजूद किया. परंतु आज के संसाधनों से भरपूर मीडिया की भूमिका अत्यंत संकुचित हो गई है. टीवी बहस किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचती है.
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान का भूगोल तो वही है, पर वहां भारत की संस्कृति कितनी कम हुई हमें यह समझना है. हमारे जिस भूभाग में एक भी भारतीय कम हुआ तो वहाँ उतनी ही भारत की संस्कृति कम हो जाती है. सच तो यह है कि हम भारत के खण्डित हो जाने के पश्चात आज बचे हुए भारत में उस विखण्डन के दुर्भाग्य को ढो रहे हैं.
अपने पूर्वजों के संस्कारों की पूंजी को बचाना हमारा धर्म है. इसे रक्षित कर अगली पीढ़ी को सौंपना है. उन्होंने कहा कि हम अपने 108 उपनिषदों में कुछ और जोड़ तो नहीं सकते, परंतु उनको संरक्षित कर सकते हैं तथा आगे की पीढ़ी को सौंप सकते हैं. विगत हजार वर्ष हमारी गुलामी के 1000 वर्ष नहीं, वरन हमारे संगठित संघर्ष का गौरवशाली इतिहास है. पत्रकारिता को भारत की संस्कृति को बचाने का हर संभव उपक्रम करना आज की आवश्यकता है.
विश्व संवाद केन्द्र के अध्यक्ष दिनेश गुप्ता ने आभार प्रकट किया. कार्यक्रम में इन्दौर के पत्रकार, साहित्यकार, विद्यार्थी तथा प्रबुद्ध नागरिक उपस्थित रहे.

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