प्रशांत पोळ
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की बुढाना तहसील में एक छोटा सा गांव है हुसैनपुर कलां. यह गांव किसी जमाने में व्यापार का केंद्र रहा करता था, और इसीलिए वहां पर व्यापार करने वाले जैन समुदाय की संख्या ज्यादा थी. समय बदलता गया. हुसैनपुर कलां गांव में धीरे-धीरे मुस्लिम आबादी बढ़ती गई. मुस्लिम आबादी बढ़ने के साथ दहशत भी बढ़ती गई. पिछले 10 वर्षों से दहशत की अनेक घटनाएं सामने आती रही और उन घटनाओं के कारण वहां से व्यवसायिक काम करने वाले जैन समुदाय का पलायन चालू रहा.
इस हुसैनपुर कला गांव में एक अतिशय प्राचीन जैन मंदिर है. इश्वाकु कुल में जन्मे आठवें तीर्थंकर, भगवान चंद्रप्रभु जी की मूर्ति वहां पर स्थापित है. मंदिर लगभग 500 वर्ष पुराना है. अब जब इस गांव में जैन समुदाय की संख्या ही नहीं बची, तो मंदिर की देखभाल करने वाला भी कोई नहीं बचा. बीच में एक पुजारी रखा था. वह भी ठीक से देखभाल नहीं कर पाता था. इसलिए जैन समुदाय ने निर्णय लिया है कि चंद्रप्रभु भगवान की प्राचीन मूर्ति को वह तहसील के मुख्यालय बुढाना में एक मंदिर में स्थानांतरित करेंगे.
इसी के अनुसार कल 25 मई को बैंड बाजा के साथ बड़ी श्रद्धा पूर्वक इस मूर्ति का की पुनर्स्थापना बुढाना में होगी. मैं जब हुसैनपुर कलां के बारे में देख रहा था, तब एक समाचार मिला. 23 अप्रैल, 2016 को एक हिन्दू युवती को कुछ मुस्लिम समुदाय के लोग भगा कर ले गए, ऐसा वह समाचार था. उस युवती का क्या हुआ, यह नहीं पता चला. लेकिन बाद में जब समाचार छाने, तो देखा कि ऐसे ही अनेक समाचार हुसैनपुर कलां गांव से आ रहे हैं. प्रश्न उठता है कि, जब इस प्रकार से समाचार आ रहे तब हुसैनपुर कलां के सुलझे हुए मुसलमान क्या कर रहे थे? क्या उन्होंने हिन्दू समाज के पलायन का विरोध नहीं किया? या वे भी चाहते थे कि इस गांव में अन्य धर्मी रहें ही ना..?
विगत दिनों अमेरिका के एक शहर के कार्यक्रम का वीडियो देख रहा था. कार्यक्रम में एक मुस्लिम महिला ने, मुसलमानों पर अन्याय की बात उठायी और कहा कि अधिकतर मुसलमान अच्छे होते हैं. इसके उत्तर में उस अमेरिकन महिला ने जो कहा, वह बहुत महत्वपूर्ण है. उसने कहा कि ‘हमने माना की 80% मुसलमान अच्छे होते हैं. वह आतंकी गतिविधियों में हिस्सा नहीं लेते. वे सीधे-साधे होते हैं, यह सब हमने माना. और स्वाभाविक रूप से 20% मुस्लिम इस प्रकार की दहशतगर्दी करते हैं, यह भी माना. लेकिन प्रश्न उठता है, कि जब इस प्रकार की वारदातें होती हैं…तब ये अच्छे 80% मुसलमान कहां रहते हैं?’
स्वाभाविक रुप से प्रश्न उठेगा ही, कि 90 के दशक में कश्मीर से हिन्दुओं को भगाया जा रहा था, मारा जा रहा था, खत्म किया जा रहा था, तब ये 80 प्रतिशत अच्छे मुसलमान कहां थे? सन् 1971 में जब बांग्ला देश में 2 लाख हिन्दुओं का कत्ले-आम किया गया, genocide किया गया, तब ये अच्छे मुसलमान कहां थे?
अभी कुछ ही महिने पहले इस देश में ‘सर तन से जुदा..’ के नारे लगाते हुए बड़े-बड़े मोर्चे निकले, अमरावती में उमेश कोल्हे को गला चीरकर मारा गया, उदयपुर में कन्हैयालाल की निर्मम हत्या की गई… तब ये 80% अच्छे मुसलमान कहां थे?
सारी समस्या यही है. अतिवादी मुस्लिमों का विरोध करने जब तक इस देश का सुलझा हुआ मुसलमान खड़ा नहीं रहेगा, तब तक यह समस्या बनी रहेगी. हिन्दू समाज में अतिवादी घटनाओं का तुरंत पुरजोर विरोध होता है. ऐसा यदि मुस्लिम समाज के पढ़े-लिखे, सुलझे हुए लोग करने लगे, तो शायद भगवान चंद्रप्रभु जी को स्थलांतर करने की आवश्यकता नहीं रहेगी..!
अतिवादी मुस्लिमों के विरोध में कब खड़े होंगे पढ़े-लिखे मुसलमान?
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